श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में -2 bhagwat katha in hindi

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय

प्रथम स्कन्ध

( अथ प्रथमो अध्यायः )

मंगलाचरण

श्लोक- 1,1,1-2-3

सृष्टि की रचना उसका पालन तथा संघार करने वाला परमात्मा जो कण-कण में विद्यमान है जो सबका स्वामी है जिसकी माया से बड़े-बड़े  ब्रह्मा आदि देवता भी मोहित हो जाते हैं | जैसे तेज के कारण मिट्टी में जल का आभास होता है उसी तरह परमात्मा के तेज से यह मृषा संसार सत्य प्रतीत हो रहा है | उस स्वयं प्रकाश परमात्मा का हम ध्यान करते हैं | सभी प्रकार की कामनाओं से रहित जिस परमार्थ धर्म का वर्णन इस भागवत महापुराण में हुआ है , जो सत पुरुषों के जानने योग्य है फिर अन्य शास्त्रों से क्या प्रयोजन

जो भी इसका श्रवण की इच्छा करते हैं भगवान उसके ह्रदय में आकर बैठ जाते हैं |

यह भागवत वेद रूपी वृक्षों का पका हुआ फल है तथा सुखदेव रूपी तोते की चोंच लग जाने से और भी मीठा हो गया है ,इस फल में छिलका गुठली कुछ भी नहीं है इस रस का पान आजीवन बार-बार करते  रहें | एक समय की बात है कि नैमिषारण्य नामक वन में सोनकादि अठ्ठासी हजार ऋषियों ने भगवत प्राप्ति के लिए एक महान अनुष्ठान किया और उसमें श्री सूत जी महाराज से प्रश्न किया कि हे ऋषिवर

आप सभी पुराणों के ज्ञाता हैं, उन शास्त्रों में कलयुग के जीवों के कल्याण के लिए सार रूप थोड़ी में क्या निश्चय किया है | उसे सुनाइए भगवान श्री कृष्ण बलराम ने देवकी के गर्भ से अवतरित होकर क्या लिलायें कि उनका वर्णन कीजिए |

इति प्रथमो अध्यायः

श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi, श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi, श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi, श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi, श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi, श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi, श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi, श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi, श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi, श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi, श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi, श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi, श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi, श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi, श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi, श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi, श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi, श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi,

( अथ दुतीयो अध्यायः )

सौनकादिक ऋषियों का यह प्रश्न सुनकर सूत जी श्री सुखदेव जी व्यास जी नरनारायण ऋषि एवं सरस्वती देवी को प्रणाम कर कहने लगे- हे ऋषियों आपने संसार के कल्याण के लिए यह  बहुत ही सुंदर प्रश्न किया है क्योंकि यह प्रश्न भगवान श्री कृष्ण के संबंध में है | आपकी मती भगवत भक्ति में लगी है | पवित्र तीर्थों का सेवन भगवान की कथाएं में रुचि भगवान का कीर्तन यह सभी आत्मा को शुद्ध करते हैं | उनके ह्रदय में स्वयं भगवान आकर विराजमान हो जाते हैं |

श्लोक- 1,2,23

प्रकृति के तीन गुण हैं सत रज तम इनको स्वीकार करके इस संसार की स्थिति उत्पत्ति और प्रलय के लिए परमात्मा ही विष्णु ब्रह्मा रुद्र यह तीन रूप धारण करते हैं | फिर भी मनुष्यों का परम कल्याण तो सत्व गुण धारी श्रीहरि ही करते हैं |

इति द्वितीयो अध्याय:

यह भी देखें आपके लिए उपयोगी हो सकता है…

भागवत कथा वाचक कैसे बने? bhagwat katha kaise sikhe

  1. धार्मिक कहानियाँ
  2. दुर्गा-सप्तशती
  3. विद्यां ददाति विनयं
  4. गोपी गीत लिरिक्स इन हिंदी अर्थ सहित
  5. भजन संग्रह लिरिक्स 500+ bhajan 
  6. गौरी, गणेश पूजन विधि वैदिक लौकिक मंत्र सहित
  7. कथा वाचक कैसे बने ? ऑनलाइन भागवत प्रशिक्षण

( अथ तीसरा अध्याय )

भगवान के अवतारों का वर्णन—-

श्लोक- 1,3,4-5

योगी लोग दिव्य दृष्टि से भगवान के जिस रूप का दर्शन करते हैं , भगवान का वह रूप हजारों पैर जंघे, भुजाएं और मूखों के कारण अत्यंत विलक्षण है | उसमें हजारों सिर कान आंखें और नासिकाएं हैं, मुकुट वस्त्र कुंडल आदि आभूषणों   से सुसज्जित रहता है |

भगवान का यही पुरुष रूप जिसे नारायण कहते हैं, अनेक अवतारों का अक्षय कोष है इसी से सारे अवतार प्रगट होते हैं | इस रूप के छोटे से छोटे अंश से देवता मनुष्य पशु पक्षी आदि योनियों की सृष्टि होती है | उसी प्रभु ने क्रमशः सनकादिक ,  वाराह , नर नारायण, कपिल, दत्तात्रेय, यज्ञ ,ऋषि पृथु , मत्स्य , कच्छप , धनवंतरी , मोहिनी, नरसिंह, बामन ,परशुराम, व्यास, राम, बलराम ,कृष्ण,  बुद्ध इस प्रकार और भी अनेक अवतार भगवान धारण किए है |

इति: तृतीयो अध्याय:

( अथ चतुर्थो अध्यायः )

महर्षि व्यास का असंतोष— सरस्वती नदी के किनारे विराजमान महर्षि व्यास के मन में आज बड़ा ही असंतोष है , अहो मैंने सहस्त्र पुराणों की रचना की एक ही वेद के चार भाग किए , महाभारत जैसे बडे ग्रंथ की रचना करके तो मैंने पांचवा वेद ही लिख दिया |यद्यपि मैं ब्रह्म तेज से संपन्न एवं समर्थ हूँ तथा फिर भी मेरे ह्रदय अपूर्ण काम सा जान पड़ता है | निश्चय ही मैंने भगवान को प्राप्त करने वाले धर्मों का निरूपण नहीं किया वे ही धर्म परमहंसो को तथा भगवान को प्रिय हैं | व्यास जी इस प्रकार खिन्न हो रहे थे तभी वहां नारद जी आए | व्यास जी खड़े हो गए और नारद जी की पूजा की |

इति चतुर्थो अध्यायः

श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi, श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi, श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi, श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi, श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi, श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi, श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi, श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi, श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi, श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi, श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi, श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi, श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi, श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi, श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi, श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi, श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi, श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi,

( अथ पंचमो अध्याय: )

भगवान के यश कीर्तन की महिमा |

देवऋषि नारद जी का पूर्व चरित्र ||

नारदजी ने व्यास जी से पूछा अनेक पुराणों के रचयिता भगवान के अंशावतार व्यास जी इतने ग्रंथों की रचना करने के बाद भी ऐसा लगता है कि आपके मन को समाधान नहीं है | व्यास जी बोले आप सत्य कह रहे हैं अनेकों रचना के बाद भी मेरे मन संतुष्ट नहीं है | कृपया आप बता दें मेरे प्रयास में कहां क्या कमी है | नारद जी बोले व्यास जी आपने भगवान नारायण के निर्मल यस का वर्णन जितना होना चाहिए नहीं किया पुराणों में भी आपने देवताओं के ही गुण गाए हैं—

श्लोक- 1,5,13

इसलिए हे महाभाग व्यास जी आपकी दृष्टि अमोघ है, आपकी कीर्ति पवित्र है , आप सत्य पारायण एवं द्रढवृत हैं | इसलिए आप संपूर्ण जीवो को बंधन से मुक्त करने के लिए समाधि के अचिंत्य शक्ति भगवान की लीलाओं का स्मरण कीजिए और उनका वर्णन कीजिए |

पिछले कल्प मै एक वेद वादी ब्राह्मणों  की दासी का पुत्र था |

वे योगी वर्षा ऋतु में चातुर्मास कर रहे थे मैं बचपन से ही उनकी सेवा में था उनका  उच्चिष्ट भोजन एक बार खा लेता था और उनसे भगवान श्री कृष्ण की कथाएं सुनता रहता  था जिससे मेरा ह्रदय शुद्ध हो गया भगवान में मेरी रुचि हो गई | चातुर्मास की समाप्ति पर  जाते समय वे संत मुझे नारायण मंत्र प्रदान कर गए मेरा जीवन बदल गया |

इति पंचमो अध्याय:

श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi, श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi, श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi, श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi, श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi, श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi, श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi, श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi, श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi, श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi, श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi, श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi, श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi, श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi, श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi, श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi, श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi, श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi,

( अथ षष्ठो अध्याय: )

नारद जी का शेष चरित्र– उनके चले जाने के बाद मैं भगवान का भजन करता रहा इसी अवधि में मेरी माता का स्वर्गवास हो गया |  मैं अकेला रह गया मैंने उसे भगवान की कृपा  समझा और उत्तर दिशा की ओर प्रस्थान किया और हिमालय में जाकर भगवान का भजन करने लगा | भगवान ने मुझे दर्शन दिया और कहा अगले जन्म में तुम ब्रह्मा की गोद से जन्म लेकर मुझे पूर्ण रूप से प्राप्त  करोगे , वही नारद आपके सामने हैं अब आप अपने कार्य में जुट जाएं |

इति षष्ठो अध्यायः

( अथ सप्तमो अध्याय: )

अश्वत्थामा द्वारा द्रोपदी के पांच पुत्रों का मारा जाना अर्जुन द्वारा अश्वत्थामा का मान मर्दन– नारद जी के चले जाने के बाद व्यास जी ने सरस्वती नदी के किनारे पर बैठकर आचमन कर  अपने मन को समाहित किया और भगवान का ध्यान कर श्रीमद् भागवत महापुराण की रचना की  | सूत जी बोले हे सोनक सर्वप्रथम मैं भागवत के श्रोता श्री परीक्षित जी के जन्म की कथा कहता हूं |

श्लोक- 1,7,13

जिस समय धृतराष्ट्र के निन्यानवे पुत्रों के मारे जाने के बाद और दुर्योधन की जंघा टूट जाने के बाद अश्वत्थामा अपने मित्र दुर्योधन का प्रिय करने के लिए रात्रि में चोरी से पांडवों के शिविर में घुसकर पांडव समझ कर सोते हुए द्रोपती के पांच पुत्रों के सिर काट ले लाया | जब द्रोपती को पता चला वह बिलख उठी अर्जुन ने उसे सांत्वना दिलाई की अधम ब्राह्मण का सिर अभी लाता हूं कहकर भगवान् को सारथी बना अश्वत्थामा का पीछा किया अर्जुन को पीछे आते हुए देख अपने प्राणों को संकट में समझ अश्वत्थामा ने ब्रह्मास्त्र छोड़ा |

उधर ब्रह्मास्त्र को आते देख अपनी रक्षा के लिए अर्जुन  ने भी ब्रह्मास्त्र चला दिया

दोनों ब्रह्मास्त्र आपस में टकराए जिनकी ज्वाला से त्रिलोकी भस्म होने लगी तो अर्जुन ने दोनों ब्रह्मास्त्रों को लौटा लिया और अश्वत्थामा को पकड़ लिया | अर्जुन की परीक्षा लेने के लिए भगवान बोले अर्जुन इसे छोड़ना नहीं मार डालो किंतु अर्जुन उसे मारना नहीं चाहता थे द्रोपती को ले जाकर सौंप दिया | द्रोपदी बोली इसके मारे जाने से मेरे पुत्र तो जीवित होंगे नहीं इसे छोड़ दो भीमसेन कहते हैं यह आतताई है इसको मारना उचित है |भगवान बोले—–

श्लोक- 1,7,53

पतित ब्राह्मण का भी वध नहीं करना चाहये और आततायी को मार ही डालना चाहिए | इसलिए मेरी दोनों आज्ञा का पालन करो ? अर्जुन समझ गए उन्होंने अश्वत्थामा के सिर की मणि तलवार से बालों सहित निकाल ली वह ब्रम्ह तेज से हीन हो गया और उसे वहां से निकाल दिया और अपने पुत्रों की  अंत्येष्टि की |

इति सप्तमो अध्याय:

श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi, श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi, श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi, श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi, श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi, श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi, श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi, श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi, श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi, श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi, श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi, श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi, श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi, श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi, श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi, श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi, श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi, श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi,

( अथ अष्टमो अध्याय: )

अपमानित हुए अश्वत्थामा चले जाने के बाद भी शांत नहीं हुआ उन्होंने उत्तरा के गर्भ को लक्षित कर जिसमें कि पांडवों के पुत्र अभिमन्यु का अंश पल रहा था ब्रह्मास्त्र का संधान किया | भगवान द्वारका के लिए प्रस्थान कर रहे थे उत्तरा ब्रह्मास्त्र के भय से व्याकुल होकर दौड़ती हुई आई और कहने लगी |

श्लोक- 1,8,9

हे  देवाधि देव जगतपति भगवान मेरी रक्षा करें रक्षा करें | यह ब्रह्मास्त्र मेरे गर्भ को नष्ट ना करे इसी  समय  पांच बाण पांचों पांडवों की ओर भी  आ रहे थे भगवान ने सब को अपने सुदर्शन चक्र से शांत कर दिया | इस समय कुंती भगवान की स्तुति करने लगी |

श्लोक- 1,7,18

कुंती की ऐसी प्रार्थना सुनकर भगवान जब द्वारिका के लिए चलने लगे तो युधिष्ठिर ने उन्हें रोक लिया और  कहने लगे प्रभु महाभारत में मैंने अपने ही स्वजनों को मारकर प्राप्त किया हुआ राज्य मुझे अच्छा नहीं लगता इस खून से सने हुए राज्य को भोगने की मेरी इच्छा नहीं है | यद्यपि भगवान ने उन्हें समझाया किंतु युधिष्ठिर को उस से समाधान नहीं  हुआ ड

इति अष्टमो अध्याय:

श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi, श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi, श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi, श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi, श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi, श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi, श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi, श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi, श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi, श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi, श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi, श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi, श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi, श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi, श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi, श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi, श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi, श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi,

श्री मद भागवत महापुराण सप्ताहिक कथा

( अथ नवमो अध्याय: )

भगवान श्री कृष्ण ने देखा कि बहुत समझाने के  बाद भी युधिष्ठिर  का शोक दूर नहीं हो रहा है बे उन्हें लेकर पितामह भीष्म के पास गए, अन्य ऋषि गण भी वहां आए पितामह ने ऋषियों को तथा भगवान को प्रणाम किया | पांडवों को भगवान की महिमा बताई कि जिन्हें वे ममेरा भाई समझ रहे हैं, वह साक्षात परमात्मा है | महाभारत के नाम  पर जो कुछ हुआ वे सब उनकी लीला मात्र थी पितामह ने भगवान की स्तुति की—

श्लोक-1.9.33

जिनका शरीर त्रिभुवन सुंदर है   श्याम तमाल के समान सांवला है , जिन पर सूर्य के समान पीतांबर लहरा रहा है , मुख पर घुंघराले अलकें लटकी हैं, उन अर्जुन सखा श्री कृष्ण में मेरी निष्कपट प्रीति हो  इस प्रकार स्तुति करते हुए उनके  प्राण परमात्मा  मैं विलीन हो गये, वे शांत हो गए | आकाश में  बाजे बजने लगे फूलों की वर्षा होने लगी पांडव हस्तिनापुर लौट आए तथा युधिष्ठिर धर्म पूर्वक राज्य करने लगे |

इति नवमो अध्यायः

श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi, श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi, श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi, श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi, श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi, श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi, श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi, श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi, श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi, श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi, श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi, श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi, श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi, श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi, श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi, श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi, श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi, श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi,

अथ दसमो अध्यायः

द्वारिका गमन– पितामह भीष्म से ज्ञान प्राप्त कर युधिष्ठिर समस्त पृथ्वी का धर्म पूर्वक एक छत्र राज्य करने लगे  महाभारत का उद्देश्य पूर्ण कर भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर से द्वारिका चलने की आज्ञा  ली, सबने अश्रु पूरित नेत्रों से भगवान को विदा किया | अर्जुन सारथी बन रथ में बैठा भगवान को पहुंचाने चले, रास्ते में स्थान स्थान पर उनका स्वागत  हुआ जहां  रात्रि  हो जाती वही स्नान संध्या कर विश्राम करते |

इति दशमो अध्यायः

अथ एकादशो अध्यायः

द्वारका में श्री कृष्ण का राजोचित स्वागत–

द्वारका में प्रवेश करते समय भगवान ने अपना पाञ्चजन्य शंख बजाया, शंख की ध्वनि सुनते ही  द्वारका बासी भगवान के दर्शनों के लिए दौड़ पढ़े और बाहर भगवान की अगवानी करने आए और अनेक भेंट रखकर भगवान का भव्य स्वागत किया | सर्वप्रथम भगवान अपने माता-पिता से मिले फिर अपने परिवार जनों से मिले |

इति एकादशो अध्यायः

अथ द्वादशो अध्यायः

परीक्षित का जन्म– अश्वत्थामा के अस्त्र से अपनी मां के गर्भ में ही जब  परीक्षित जलने लगे तब गर्भ में ही रक्षा करते हुए भगवान के दर्शन उन्हें हो गए थे ! एक अगुंष्ट मात्र ज्योति उनके चारों ओर घूम रही शुभ समय पाकर वे गर्भ से बाहर आए | युधिष्ठिर बहुत प्रसन्न हुए उन्होंने ब्राह्मणों को बुलवाकर स्वस्तिवाचन करवाया और बालक के भविष्य को पूछा ब्राह्मणों ने बताया बड़ा तेजस्वी होगा इसका नाम विष्णुरात होगा इसे परीक्षित के नाम से भी  जानेंगे |

श्लोक-1.12.30

ब्राह्मणों को दक्षिणा देकर विदा किया |

इति द्वादशो अध्यायः

श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi, श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi, श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi, श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi, श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi, श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi, श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi, श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi, श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi, श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi, श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi, श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi, श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi, श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi, श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi, श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi, श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi, श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi,

अथ त्रयोदषो अध्यायः

विदुर जी के उपदेश से धृतराष्ट्र गांधारी का वन गमन– विदुर जी तीर्थ यात्रा कर हस्तिनापुर लौट आए उन्हे देख युधिष्ठिर बहुत प्रसन्न हुए पांचों भाई पांडव कुंती द्रोपती धृतराष्ट्र गांधारी भी उन्हें देखकर बड़ा प्रसन्न हुए | विदुर जी ने अपनी तीर्थ यात्रा के समाचार सुनाएं,  वे धृतराष्ट्र से बोले–

श्लोक-1.13,21-22

आपके पिता भ्राता पुत्र सगे संबंधी सभी मारे जा चुके हैं आप की अवस्था भी ढल चुकी पराए घर में पड़े हुए हैं , यह जीने की आशा कितनी प्रबल है  जिसके कारण भीम का दिया हुआ टुकड़ा खाकर कुत्ते के समान जीवन जी रहे हैं ,निकलो यहां से | वन में जा कर  भगवान का भजन करो | यह सुनते हि धृतराष्ट्र गांधारी विदुर के साथ रात्रि में वन में चले गए , आज जब युधिष्ठिर को पता चला तो वह बड़े दुखी हुए  वन में धृतराष्ट्र ने अपने  प्राण त्याग दिए गांधारी सती हो गई |

इति त्रयोदशो अध्यायः

अथ चतुर्दशो अध्यायः

अपशकुन देखकर महाराज युधिष्ठिर का शंका करना अर्जुन का द्वारका से लौटना—  एक समय अर्जुन भगवान से मिलने द्वारका गए थे, बहुत समय बाद भी जब वे नहीं लौटे तो युधिष्ठिर को  अपशकुन होने लगे दिन में उल्लू बोल रहे हैं , उल्कापात हो रहे हैं, गाय दूध नहीं देती, इन्हें देख वे बड़े चिन्तित हुए लगता हैं, बहुत खराब समय आ गया है लगता है हमारे ऊपर कोई बड़ी विपत्ति आने वाली है |

इस प्रकार युधिष्ठिर चिंतित हो रहे थे  इतने में कांति हीन होकर नेत्रों से अश्रु पात्र गिराते हुए अर्जुन उनके चरणों में अ पड़े हैं, उसकी यह दशा देख युधिष्ठिर ने पूछा द्वारका में सब कुशल है से हैं ना, और तुम कुशल हो , तुम कोई  पाप करके  तो नहीं आये  हो श्री हीन कैसे हो गए हो |

इति चतुर्दशो अध्यायः

श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi, श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi, श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi, श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi, श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi, श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi, श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi, श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi, श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi, श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi, श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi, श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi, श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi, श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi, श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi, श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi, श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi, श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi,

अथ पंचदशो अध्यायः

कृष्ण विरह व्यथित पाण्डवों का परिक्षित को राज्य देकर स्वर्ग सिधारना–  इस प्रकार युधिष्ठिर के पूछने पर अर्जुन बोले– हे भाई भगवान श्री कृष्ण हमें छोड़ कर चले गए इसलिए मैं तेज हीन हो गया, अब हमारा कोई नहीं रहा | भगवान के गोलोक धाम जाने की बात सुनकर पांडवों ने  स्वर्गारोहण का निश्चय किया उन्होंने परिक्षित को राज्य सिहांसन पर बिठालकर रिमालय की ओर प्रस्थान किया- केदारनाथ, बद्रीनाथ होते हुए सतोपथ पहुंचे वहीं से क्रमशः   द्रौपदी, सहदेव, नकुल ,अर्जुन, भीम गिरते गए पर किसी ने भी मुडकर नहीं देखा |

युधिष्ठिर सदेह स्वर्ग को चले गये, विदुर ने भी प्रभास क्षेत्र में अपना शरीर छोड़ दिया, पांडवों की यह महाप्रयाण कथा बडी पुण्य दायी है |

इति पंचदशो अध्यायः

(अथ षोडषो अध्याय: )

परीक्षित की दिग्विजय तथा धर्म और पृथ्वी का संवाद—  पांडवों के महाप्रयाण के पश्चात परीक्षित धर्म पूर्वक राज्य करने लगे उन्होंने कई   अश्वमेघयज्ञ किए | जब दिग्विजय कर रहेथे तब उनके शिविर के पास  एक अद्भुत घटना घटी वहां धर्म एक बैल के रूप में एक पैर से घूम रहा था वहां उसे गाय के रूप में पृथ्वी मिली जो दुखी होकर रो रही थी | धर्म ने पृथ्वी से पूछा कल्याणी तुम क्यों रो रही हो तुम्हारा स्वामी कहीं दूर चला गया है अथवा तुम मेरे लिए दुखी हो रही हो कि  मेरा पुत्र एक पैर से है | पृथ्वी बोली धर्म तुम जानते हो कि जब से भगवान गोलोक धाम गए हैं  तुम्हारे एक ही चरण रह गया संसार कलियुग की कुदृष्टि का शिकार हो गया है बस इसी का मुझे दुख है |

इति षोडशो अध्यायः

श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi, श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi, श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi, श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi, श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi, श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi, श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi, श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi, श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi, श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi, श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi, श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi, श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi, श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi, श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi, श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi, श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi, श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में bhagwat katha in hindi,

( अथ सप्तदशो अध्यायः )

महराजा परीक्षित द्वारा कलियुग का दमन-  दिग्विजय करते हुए परीक्षित जब पूर्व वाहिनी सरस्वती के तट पर पहुंचे तो देखा कि एक राजवेश धारी  शूद्र  गाय बैल के एक जोड़े को मार रहा है ! उसे परीक्षित ने   ललकारा और कहा ठहर दुष्ट तुझे मैं अभी देखता हूं , हाथ में तलवार ली राजा को आते देख कलियुग बोला – हे राजन्  मैं जहां जहां जाता हूं  आप सामने दिखते  हैं कृपया मुझे  रहने को स्थान बताइए |

राजा ने कहा—–

श्लोक-1.17.38-39

मदिरा पान, जुआ, स्त्री संग,हिंसा इन चार स्थानों के बाद और मागने पर स्वर्ण में भी स्थान दे दिया |

इति सप्तदशो अध्याय:

श्री मद भागवत महापुराण सप्ताहिक कथा

( अथ अष्टादशो अध्याय: )

राजा परीक्षित को श्रृंगी ऋषि का श्राप–एक दिन राजा परीक्षित वन में शिकार के लिए गए   वहां हिरणों के   पीछे  दौड़ते दौड़ते वे बहुत थक गए  उन्हें भूख और प्यास लगी इधर-उधर जलाशय देखने पर भी नहीं मिला वह पास ही एक ऋषि के आश्रम में घुस गए, वहां एक मुनि ध्यान में बैठे थे  उनसे राजा ने जल मांगा जब मुनि ने कोई जवाब नहीं दिया तो उन्होंने अपने को  अपमानित समझ क्रोध से मुनि के गले में एक मरा हुआ सांप डाल दिया और अपनी राजधानी को लौट आए |

उन  शमीक मुनि का पुत्र श्रृंगी तेजस्वी बालक ने जब देखा कि राजा परीक्षित ने मेरे पिता के गले में सांप डाल दिया है वे क्रोधित होकर बोले—-

श्लोक-1,18,37

कौशिकी नदी का जल शाप दे दिया इस मर्यादा उल्लंघन करने वाले कुलांगार को आज से सातवें दिन तक्षक सर्प डसेगा वह पिता के पास आकर जोर जोर से रोने लगा इससे मुनि की  समाधि खुल गई पिता को श्राप सहित सारी बात बता दी जिसे सुनकर ऋषि को बड़ा दुख हुआ बे बोले परीक्षित श्राप योग्य नहीं थे, वह बड़े धर्मात्मा राजा हैं |

इति अष्टादशो अध्यायः

यह भी देखें आपके लिए उपयोगी हो सकता है…

भागवत कथा वाचक कैसे बने? bhagwat katha kaise sikhe

  1. धार्मिक कहानियाँ
  2. दुर्गा-सप्तशती
  3. विद्यां ददाति विनयं
  4. गोपी गीत लिरिक्स इन हिंदी अर्थ सहित
  5. भजन संग्रह लिरिक्स 500+ bhajan 
  6. गौरी, गणेश पूजन विधि वैदिक लौकिक मंत्र सहित
  7. कथा वाचक कैसे बने ? ऑनलाइन भागवत प्रशिक्षण
यह जानकारी अच्छी लगे तो अपने मित्रों के साथ भी साझा करें |

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *