श्रीमद्भागवत दृष्टांत माला bhagwat katha ke drishtant
सूरदास जी का पद गायन
सूरदास जी से ईर्ष्या करने वाले लोग सूरदास जी भगवान के परम भक्त थे, कृष्ण भक्ति उनके रोम-रोम पर विद्यमान थी वह पृथ्वी के महान विभूति और एक महान कवि थे ।
ब्रज में निवास करते थे वहीं पास में ही भगवान श्री कृष्ण का मंदिर था तो वे रोज उस मंदिर में जाते और प्रभु का जैसा उस दिन का श्रृंगार होता वैसा ही वे पद बनाकर गाते थे उनकी कीर्ति वहां चारों ओर फैलने लगी।
कुछ व्यक्ति थे वह सूरदास जी से ईर्ष्या करते थे और उन्होंने विचार बनाया कि इसे परेशान किया जाये, उन्होंने कहा यह जो सुन रहे हैं हम कि ये जन्मांध है, सूरदास है जिसे बिल्कुल दिखाई ही नहीं देता वह भगवान के श्रृंगार का आभूषण का कैसे वर्णन कर सकता है ?
हां अब समझ में आया इसने किसी के मुख से सुन लिया होगा कि प्रभु का श्रंगार किस प्रकार करते हैं, उसे ही वह गाता है और दुनिया को पागल बनाता है।
वह सूरदास जी से विरोध और ईर्ष्या करने वाले लोग मिलकर योजना बनाई कि आज इसकी परीक्षा लेते हैं, उन सभी ने पुजारी को मना लिया बोला कि आज तुम ठाकुर जी को वस्त्र आभूषण कुछ मत पहनाना फिर देखते हैं।
उस सूरदास को क्या कहता है, वह पुजारी दूसरे दिन भगवान कृष्ण को वस्त्रआभूषण कुछ नहीं पहनाया और जैसे ही वह सूरदास जी आए और परमात्मा का ध्यान करते गायन किया- आंखों से आंसुओं की झड़ी लग गई ।
अपने पद में उन्होंने कहा- आज हरहिं हम देखे नंगम नंगा प्रभु आप का दिव्य श्रृंगार तो रोज देखता था आज आपको नंगम नंगा देखा । जैसे उन व्यक्तियों ने यह बात सुनी सूरदास जी के चरणों में गिर गये पश्चाताप करने लगे उनसे क्षमा मांगने लगे ।
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