भागवत कथा वाचक नाम लिस्ट bhagwat katha vachak list

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भागवत कथा वाचक नाम लिस्ट bhagwat katha vachak list

सभी भगवत प्रेमियों को राधे राधे भागवत कथा वाचन करने वाले कई प्रसिद्ध प्रवक्ता है जैसे-
  1. राजेंद्र दास जी महाराज 
  2. श्याम सुंदर पाराशर जी 
  3. स्वामी अवधेशानंद गिरी जी महाराज
  4. श्री कृष्ण चंद्र ठाकुर जी महाराज
  5. देवकीनंदन ठाकुर जी महाराज
  6. अनिरुद्ध आचार्य जी महाराज
  7. मृदुल कृष्ण शास्त्री जी 
  8. गौरव कृष्ण शास्त्री जी
  9. जया किशोरी जी
  10. चित्रलेखा जी
आदि कई भागवत कथा के प्रसिद्ध प्रवक्ता हैं। 
 
इन प्रवक्ताओं से कथा कराने के लिए हमारे पास प्रचुर मात्रा में धन का होना अति आवश्यक है। जिससे कि इनकी कथाओं में सारी व्यवस्थाएं सुचारू रूप से चल सके। 
 
सज्जनों मानव मात्र को अपने जीवन काल में भागवत कथा का श्रवण जरूर करना चाहिए। 
 
सामान्य वर्ग का मनुष्य इन फेमस प्रवक्ताओं से कथा कराने में सक्षम नहीं हो सकता इसीलिए आज हम उन सभी सामान्य अर्थव्यवस्था वर्ग वाले लोगों के लिए जानकारी प्रदान कर रहे हैं। 
 
 आप भी कथा का आयोजन करा कर भगवान की उस कथा अमृत सरिता पर गोता लगाकर अपने जीवन को धन्य बना सकते हैं । 
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हमारे ऋषि-मुनियों की कृपा से विश्व को अठारह पुराण प्राप्त हुए हैं |

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जिनमें से श्रीमद् भागवत महापुराण एक अनुपम पुराण है,, भगवत प्राप्ति कराने वाला है यह पुराणों में तिलक के रूप में जाना जाता है |

इस श्रीमद् भागवत महापुराण का निर्माण महर्षि वेदव्यास जी द्वारा तीसरे युग द्वापर के अंत में किया गया है | वेदव्यास जी त्रिकालज्ञ थे वह भूत भविष्य वर्तमान को जानने वाले थे, उन्होंने देखा कि कलयुग में जो आने वाला समय है वह प्राणियों का कल्याण के लिए बड़ा दुर्लभ समय आने वाला है | श्री वेदव्यास जी ने कृपा करके कलयुगी प्राणियों को भगवत प्राप्ति कराने का मार्ग अपनी लेखनी द्वारा निकाला |

उन्होंने सर्वप्रथम  महाभारत नामक इतिहास को लिखा जिसमें एक लाख श्लोक हैं, जोकि विश्व का पहला इतिहास है और सबसे बड़ा | उसके बाद उन्होंने वेद के चार भाग किए अन्य पुराणों की रचना की लेकिन उनके आत्मा को शांति नहीं मिली इन सबकी रचना करने के बाद भी |

उनके हृदय मे अशांति थी तब देवर्षि नारद आए और उन्होंने अशांति के कारण को बतलाया कि आपने ग्रंथों में धर्म अर्थ काम मोक्ष इन चारो पुरुषार्थों का वर्णन किया है, परंतु आपने किसी भी ग्रंथ में भगवान की सुंदर मधुर लीलाओं की रचना नहीं की |

व्यास जी कोई काम निष्काम भले ही हो लेकिन वह भगवान की लीलाओं से परे हो तो उसकी सार्थकता नहीं होती | हो ना हो वेदव्यास जी आपके दुख का यही कारण है इसलिए आप अपने दिव्य दृष्टि से भगवान की लीलाओं को देखिए और अपनी लेखनी के द्वारा ग्रंथ का निर्माण करके जगत का कल्याण करिए |

तब श्री वेदव्यास जी ने परमहंसो की पावन संहिता यह श्रीमद् भागवत महापुराण की रचना की और फिर अपने पुत्र श्री सुकदेव जी को उत्तम अधिकारी जानकर उन्हें पढ़ाया | वही श्री सुकदेव जी महाराज राजा परीक्षित को इस दिव्य ज्ञान को प्रदान करते हैं ,,

भागवत महापुराण में भगवान के सुंदर सुंदर चरित्रों का और उनके भक्तों के चरित्रों का वर्णन किया गया है जिसके श्रवण मात्र से जीवो के अंतर्गत पाप जलकर नष्ट हो जाते हैं और वह भगवत धाम के अधिकारी हो जाते हैं |

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परम मंगलमय ,परमपिता परमात्मा,,श्री राधा गोविंद सरकार राधारमण बाधा हरण श्री बांके बिहारी लाल उनका वाङ्गमय, शब्दमय विग्रह श्रीमद्भागवत महापुराण कोटि-कोटि नमन कोटि-कोटि प्रणाम इस परम पावन पुराण ग्रंथ को, परमाराध्याराध्य श्रीमद् यादवेंद्र पुरी स्वामीवर्य श्री गोविंद गोपकुल भूषण नंद नंदन यशोदानंदवर्धन लीला पुरुषोत्तम नंद नंदन यशोदा नंदन व्रजजन रंजन देवकी नंदन श्याम सुंदर श्री कृष्ण के पाद पद्मो पर कोटिशः नमन नतमस्तक वंदन एवं अभिनंदन, उनकी आह्लादिनी शक्ति कृष्णप्राणप्रिया जगत बंदनी वृषभानु नंदिनी भाश्वती जगदीश्वरी बरसाने वाली श्री किशोरी जी के पावन चरणारविंदो पर प्रणति, समस्त भूतादिक-

सीयराम मय सब जग जानी करहु प्रणाम जोर जुग पानी ।।

एक बार जब श्रीलक्ष्मी जी ने संसारी जीवों के कल्याण के लिए प्रभु से पूछा तो प्रभु ने श्रीलक्ष्मी जी से कहा कि यह श्रीमद्भागवत कथा ही सबसे सुगम और सरल कल्याण का उपाय है। इसी भागवत कथा को एकबार ब्रह्माजी के पूछने पर प्रभु ने उन्हें भी उपदेश दिया था। इसी कथा को भगवान् श्रीमन्नारायण से प्राप्तकर श्रीशंकर जी ने श्री पार्वती जी को सुनाया था। भागवत कथा वाचक नाम लिस्ट bhagwat katha vachak list

 

इसी कथा को अनुसंधान कर बारहों आदित्य, आदि अपना कार्य करते हैं। इसी कथा को एकबार सनकादियों ने भगवान् से सुना था तथा उन्हीं सनकादियों ने ब्रह्माजी से भी इसी कथा को पुनः सुना था। इसी कथा को एक बार श्रीनारदजी ने भगवान् से सुना था तथा पुनः ब्रह्माजी से भी सुना एवं फिर इसी कथा को श्री नारद जी ने सन्नकादियों से हरिद्वार में अनुष्ठान के रूप में सुना था। इसी कथा को श्री नारद जी ने व्यास जी को सुनाया था एवं इसी कथा को व्यास जी ने अपने पुत्र श्री शुकदेव जी को पढाया था इसी कथा को एक बार गोकर्ण जी ने अपने भाई धुन्धकारी के कल्याण के निमित सुनाया। इसी कथा को श्री शुकदेव जी ने महाराज परीक्षित् को सुनाया और इसी कथा को रोमहर्षण सुत के पुत्र श्रीउग्रश्रवा सूत ने शौनकादि, ऋषियों को नैमिषारण्य में सुनाया। इस प्रकार इस कथा को जगत् में सुनने और सुनाने की परम्परा आज भी कायम है। यह श्रीमद्भागवत पंचम वेद भी है। भागवत कथा वाचक नाम लिस्ट bhagwat katha vachak list

इतिहासपुराणानि पंचमो वेद उच्यते”

अर्थात् इतिहास और पुराण भी पंचमवेद हैं । अतः यह श्री भागवत इतिहास भी है और पुराण भी है।

उस श्रीमद्भागवत कथा की महिमा को जानने हेतु एक बार श्री ब्रह्माजी ने भगवान् श्रीमन्नारायण से संसारी जीवों की मुक्ति हेतु सहज उपाय पूछा तो प्रभु ने कहा- हे ब्रह्माजी, हमारी प्रसन्नता एवं प्राप्ति या हमारे सन्तोष के लिए श्रीमद्भागवत महापुराण की कथा ही केवल है। भागवत कथा वाचक नाम लिस्ट bhagwat katha vachak list

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‘‘श्रीमद्भागवतम् नाम पुराणम् लोकविश्रुतम् ।

इस “श्रीमद्भागवतमहापुराण कथा’ का मतलब होता है कि :श्री+मद्+भा–ग–व–त,+महा+पुराण, +क-था यानी श्रीमद् शब्द का अर्थ – “श्री” श्री ईश्वरभक्ति-वाचकः अर्थात् महालक्ष्मी (राधा) वाचक है। “मद” शब्दः सर्वगुणसम्पन्नतावाचकः अर्थात् परमात्मा के समस्त गुणों जैसे:दया, कृपा इत्यादि से सुशोभित होने का वाचक होता है। “भागवत” शब्द का अर्थ-

 

भाशब्दः कीर्तिवचनो, गशब्दो ज्ञानवाचकः,

सर्वाभीष्टवचनो वश्च त विस्तारस्य वाचकः

(भा माने कीर्ति, ग माने ज्ञान, व माने सर्वाभीष्ट अर्थात् अर्थ, धर्म काम मोक्ष इन चारों को देने वाला सूचक है। “त” माने विस्तार का वाचक है। अतः इसका वास्तविक अर्थ है कि जो कीर्ति, ज्ञान सहित अर्थ धर्म-काम-मोक्ष को विस्तार से सन्तुष्ट और पुष्ट करके हमेशा हमेशा के लिए अपने चरणों में भक्ति प्राप्त कराता है वह “भागवत” है। भागवत कथा वाचक नाम लिस्ट bhagwat katha vachak list

 

आगे महापुराण शब्द का अर्थ होता है कि “महा” माने सभी प्रकार से और सभी में श्रेष्ठ जो हो वह “महा” कहलाता है एवं “पुराण” का मतलब होता है कि जो लेखनी-ग्रन्थ- कथा या फल देने वालों में प्राचीन हो या जो लेखनी ग्रन्थ – कथा के रूप में पुराना हो परन्तु जगत् के जीवों को हमेशा नया ज्ञान, शान्ति एवं आनन्द देते हुए नया या सरल जीवन का उपेदश देते हुए सनातन प्रभु से सम्बन्ध जोड़ता है वह “पुराण” है। “कथा” का मतलब होता है कि “क” माने सुख या परमात्मा के सान्निध्य में निवास के सुख की अनुभूति “था” माने स्थापित करा दे वह “कथा” है। तात्पर्य जो जगत् मे रहने पर परमात्मा की अनुभूति की स्थपना करा दे या परमात्मा के तत्व का ज्ञान कराकर परमात्मा से सम्बन्ध जोड़ दे एवं शरीर त्यागने पर उन परमात्मा के दिव्य सान्निध्य में पहुँचाकर परमात्मा की सायुज्य मुक्ति यानी प्रभु के श्रीचरणों में विलय करा दे उसे “कथा’ कहते हैं। भागवत कथा वाचक नाम लिस्ट bhagwat katha vachak list

 

इसके साथ-साथ श्रीमद्भागवत कथा का अर्थ है कि जो श्री वैष्णव भक्ति का उद्गम ग्रन्थ हो उसे श्रीमद्भागवत कहते हैं।

 

श्री वैष्णव भक्ति का उद्गम ग्रंथ है।

स्वयं श्री भगवान् के मुख से प्रकट ग्रंथ है। पंचम वेद है।

वेदों एवं उपनिषदों का सार है।

भगवत् रस सिन्धु है ।

ज्ञान वैराग्य और भक्ति का घर या प्रसूति है 1

भगवत् तत्त्व को प्रभासित करने वाला अलौकिक प्रकाशपुंज है ।

मृत्यु को भी मंगलमय बनाने वाला है। विशुद्ध प्रेमशास्त्र है।

मानवजीवन को भागवत बनाने वाला है।

व्यक्ति को व्यक्ति एवं समाज को सभ्यता संस्कृति संस्कार देने वाला है। आध्यात्मिक रस वितरण का प्याऊ है।

परम सत्य की अनुभूति कराने वाला है।

काल या मृत्यु के भय से मुक्त करने वाला है ।

यह श्रीमद् भागवत कथा भगवान् का वाङ्मयस्वरूप है अथवा यह श्रीमद् भागवत भगवान् की प्रत्यक्ष मूर्ति है ।

यह श्रीमद्भागवत “विद्यावतां भागवते परीक्षा – विद्वान् की पहचान या परीक्षा का भी सूचक है। इसी श्रीमद् भागवत रूपी अमर कथा को सुनकर श्री महर्षि वेदव्यासजी ने शान्ति प्राप्त की थी । अर्थात श्रीव्यास जी ने श्रीमद्भागवत की रचना जब तक नहीं की थी तब तक उनका चित्त अप्रसन्न था। जिन व्यास जी को कृष्ण द्वैपायन भी कहते हैं क्योकि उन व्यास जी का जन्म यमुना के कृष्ण द्विप में हुआ था तथा कृष्ण रंग के भी थे। भागवत कथा वाचक नाम लिस्ट bhagwat katha vachak list

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जिनकी माता का नाम सत्यवती था । वह सत्यवती पुत्र पराशर नन्दन श्री वेदव्यास जी ने श्रीमद्भागवत महापुराण की रचना करने से पहले चारों वेदों की व्यवस्था सहित महाभारतादि की रचना कर ली थी तथा सोलह पुराणों की रचना भी कर ली थी एवं अपने पिता श्री पराशर जी द्वारा रचित श्री विष्णुपराण के भी स्वामित्व को भी प्राप्त कर चुके थे। फिर भी श्री व्यास जी को शान्ति नहीं थी। भागवत कथा वाचक नाम लिस्ट bhagwat katha vachak list

 

उस अशान्ति के दो कारण थे। पहला तो यह कि उन्हें कोई पुत्र उस समय तक नहीं था जो उनके बाद उनकी बौद्धिक विरासत को सम्भाल सके । अर्थात् श्रीव्यास जी को यह चिन्ता थी कि हमारे बाद हमारी बौद्धिक विरासत को कौन सम्भालेगा ? दूसरा कारण यह कि मेरे द्वारा की गयी रचनाओं में कहीं न कहीं राग-द्वेष की अभिव्यक्ति हुई है। अतः मेरे द्वारा पूर्णरूप से श्री भगवान् में समर्पण की कथा की रचना एक भी नहीं है। इन्हीं दोनो कारणों से श्री व्यास जी का मन पूर्ण रूप से प्रसन्न नहीं था। इसलिए श्री व्यास जी ने श्री नारद जी के उपदेश से भगवान के निर्मल चरित्र की कथा को लिखकर “श्रीमद्भागवत महापुराण कथा’ नाम रखकर शान्ति प्राप्त की। वही श्रीमद्भागवत महापुराण के माहात्म्य को हम आपके सामने निवेदन करेगें। भागवत कथा वाचक नाम लिस्ट bhagwat katha vachak list

 

श्रीमद् भागवत महात्म्य कथा प्रारम्भ

अब यहाँ पर यह प्रश्न होता है कि – माहात्म्य का मतलब क्या होता है ? अर्थात् माहात्म्य का मतलब होता है कि इस कथा से कथा की पद्धति आदि क्या है ?, श्रीमद्भागवत सुनने की पद्धति क्या है ?, भागवत कथा के श्रवण के नियम क्या हैं ? तथा कथा क्यों सुनी जाती है तथा इसके सुनने से क्या फल होता है एवं किन-किन लोगों ने कौन-कौन और कब-कब तथा क्या-क्या फल प्राप्त किया ? उपरोक्त सभी प्रश्नों का वर्णन जहाँ और जिस ग्रन्थ में किया गया हो वह “माहात्म्य” कहा जाता है। भागवत कथा वाचक नाम लिस्ट bhagwat katha vachak list

 

पद्म पुराण के उत्तर खण्ड के प्रथम् से लेकर षष्ठम् अध्याय तक इस भागवत के महात्म्य में परम मंगलमय श्री बालकृष्ण की वाङ्मयी प्रतिमूर्त्ति स्वरुप इस भागवत के माहात्म्य को कहने से पहले प्रभु श्री कृष्ण को प्रणाम करके वन्दना करते हुये श्री महर्षी वेदव्यासजी ने जो प्राचीन समय में मंगलाचरण के श्लोक का गान किया है उसी श्लोक का गायन करते हुये नैमीशारण्य के पावन क्षेत्र में अठास्सी हजार संतो के बीच शौनकादी ऋषियों के सामने श्री व्यासजी के शिष्य श्रीसुतजी मंगलाचरण करते हुये महात्म के प्रथम श्लोक में कहते हैं- भागवत कथा वाचक नाम लिस्ट bhagwat katha vachak list

सच्चिदानन्दरूपाय विश्वोत्पत्त्यादिहेतवे ।

तापत्रयविनाशाय श्रीकृष्णाय वयं नुमः ।।

श्रीमद्भा० मा० १/१

 “सच्चिदानन्दरूपाय अर्थात् सत्+चित्+आनन्द यानी सत् का मतलब त्रिकालावधि जिसका अस्तित्व सत्य हो । चित् माने प्रकाश होता है अर्थात् जो स्वयं प्रकाश वाला है और अपने प्रकाश से सबको प्रकाशित करता है। आनन्द माने आनन्द होता है अर्थात् जो स्वयं आनन्द स्वरूप होकर समस्त जगत् को आनन्द प्राप्त कराता हो इस प्रकार ऐसे कार्यों को करने वाले को सच्चिदानन्द कहते हैं। “वे सच्चिदानन्द श्रीमन्–नारायण स्वरूप श्रीकृष्ण ही हैं। अर्थात् सत् भी कृष्ण हैं, चित् भी कृष्ण हैं एवं आनन्द भी श्रीकृष्ण ही हैं, तथा जिनका आदि, मध्य और अन्त तीनों ही सत्य है तथा सत्य था एवं सत्य रहेगा। ऐसे शाश्वत सनातन श्रीकृष्ण को ही सच्चिदानन्द कहते हैं। भागवत कथा वाचक नाम लिस्ट bhagwat katha vachak list

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अतः “सत्” माने शाश्वत – सनातन सत्य एवं चित् माने प्रकाश तथा आनन्द माने आनन्द। “रूपाय” माने ऐसे गुण या धर्म या रूप वाले। “विश्वोत्पत्यादिहेतवे” यानी जो विश्व की उत्पत्ति, पालन, संहार एवं मोक्ष के हेतु हैं, अथवा कारण हैं। “तापत्रयविनाशाय” यानी जो तीनों तापों जैसे- दैहिक, दैविक, भौतिक या जीवों के शरीरादि में उत्पन्न रोग, दैवप्रकोप जैसे आधि-व्याधि – ग्रहादी का प्रकोप एवं भौतिकप्रकोप यानी जीवों द्वारा जो अनेक जीवों से प्राप्त दुःख या कष्ट होता है। अथवा “तापत्रय” का मतलब तीनों लोकों के कष्ट या उन तीनों प्रकार के कष्ट को विनाश करता है। ऐसे “श्रीकृष्णाय” यानी श्रीकृष्णको । वयं नुमः अर्थात् हम सभी प्रणाम करते हैं ।

 

अतः इस श्लोक का शाब्दिक अर्थ है- कि सत्य स्वरूप एवं प्रकाशस्वरूप तथा आनन्दस्वरूप होकर जो संसार के उत्पत्ति – पालन – संहार के अलावा मोक्ष को भी देने वाले हैं तथा संसार के प्राणियों के दैहिक – दैविक-भौतिक कष्ट को दूर करते हैं, ऐसे श्रीकृष्ण यानी राधा कृष्ण को हम सभी प्रकार एवं सभी अंगों यानी आठों अंगों से प्रणाम करते हैं। भागवत कथा वाचक नाम लिस्ट bhagwat katha vachak list

यं प्रव्रजन्तमनुपेतमपेतकृत्यं द्वैपायनो विरहकातर आजुहाव ।

पुत्रेति तन्मयतया तरवोऽभिनेदु स्तं सर्वभूतहृदयं मुनिमानतोऽस्मि ।।

श्रीमद्भा० मा० १ /२

जो प्रभु की कृपा से माता के गर्भ में सोलह वर्षों तक समाधिस्थ रहकर प्रभु का ध्यान करते रहे तथा प्रभु द्वारा माया से विजय प्राप्ति का वरदान पाकर पिता की आज्ञा से अपनी माता पिंगला देवी या अरणी देवी से इस पृथ्वी पर प्रकट हुए तथा प्रकट होते या जन्म लेते ही व्यावहारिक जगत् के जनेउ संस्कार इत्यादि को बिना पूर्ण किये ही आध्यात्मिक ज्ञान स्वरूप परमात्मा को ध्यान- चिन्तन-धारणा करने का संकल्प रूपी जनेउ को धारण करते हुए सन्यासी ज्ञानियों के समान घर द्वार को त्याग कर जन्म लेते ही सोलह वर्ष के बालक जैसा प्रतीत होते हुए जंगल की यात्रा जिन्होंने तय कर दी और वह घटना देखकर श्री वेदव्यास जी ने पुत्र मोह से मोहित होकर ‘बेटा बेटा’ कहकर पुकारा तो उस समय मानो श्रीव्यास जी की ओर द्रवित होकर वृक्षों – पर्वतों जलाशयों इत्यादि ने भी उन व्यास लाडले को रुकने को कहा । अथवा उन प्रकृतियों ने श्री व्यास जी को समझाकर सबके हृदय स्वरूप भगवान के भक्त उन शुकदेव की महिमा बताया ।

 

जिनका दर्शन करने के लिए जलाशय में स्नान करती हुई देवियों ने समीप से आकर प्रणाम किया तथा श्री व्यासजी को देखकर उन्हीं देवियों ने दूर से ही प्रणाम किया। उन देवियों की ऐसी घटना को देखकर श्री व्यासजी को क्षोभ हुआ, परन्तु उन देवियों ने कहा कि यह आपके पुत्र हम समस्त संसार के प्राणियों के हृदय हैं तब श्री व्यास जी को प्रसन्नता हुई। ऐसे सभी प्राणियों के हृदय स्वरूप व्यासनन्दन भगवत् भक्त श्री शुकदेवजी को मैं प्रणाम करता हूँ। भागवत कथा वाचक नाम लिस्ट bhagwat katha vachak list

 

नैमिषे सूतमासीनमभिवाद्यमहामतिम् ।

कथामृतरसास्वादकुशलः शौनकोऽब्रवीत् ।।

श्रीमद्भा० मा० १/३

तीरथ परम नैमिष विख्याता । अति पुनीत साधक सिद्धिदाता ।। 

एक बार पावन भूमि नैमिषारण्य में प्रातः काल के अनेक अनुष्ठानों को पूर्ण करके अवकाश मिलने पर श्रीशौनक जी ने ८८ हजार सन्तों का प्रतिनिधित्व करते हुए सभामण्डप में उपस्थित हुये। उस सभा में आये हुए श्रीसूतजी को व्यास गद्दी पर बैठाकर एवं प्रणाम करके उन सूत जी से श्रीशौनकजी ने कहा कि आप व्यास जी के शिष्य एवं पुराणों के वक्ता हैं । अतः हमारे प्रश्नों का समाधान करें तथा व्यास गद्दी को स्वीकार करें। भागवत कथा वाचक नाम लिस्ट bhagwat katha vachak list

श्री सूत जी ने कहा कि हे महानुभावों ! हमारे जैसे को भी आप सभी बड़े महानुभाव होने पर इतनी क्यों प्रतिष्ठा देते हैं। तब शौनक जी सहित सभी ऋषियों ने कहा कि- हे सूत जी उम्र में भले ही छोटे हैं लेकिन आप गुणों में बड़े (मोटे) हैं क्योंकि शास्त्र में कहा गया है कि –

 

“धनवृद्धा बलवृद्धा आयुवृद्धास्तथैव च ।

ते सर्वेऽपि ज्ञानवृद्धाश्च किंकरा शिष्यकिंकराः ।। ।

यानी धन से बड़ा या बल से बड़ा या आयु से बड़ा भले ही कोई हो परन्तु भगवत् भक्ति संपन्न जो ज्ञान में बड़ा है वहीं वस्तुतः बड़ा है और सबके आदर का पात्र है। इसलिए हे सूत जी ! आप वैसे ही ज्ञानियो में श्रेष्ठ हैं। भागवत कथा वाचक नाम लिस्ट bhagwat katha vachak list 

अतः आप ऐसी कथा सुनावें जिससे मानवों की ममता – मोह-अज्ञान दूर हो जायें तथा भगवत् प्रेम पाकर भगवान् को प्राप्त करे या उन्हें श्रीगोविन्द की प्राप्ती हो जायें। आगे आप यह भी बतलायें कि गोविन्द कैसे मिलते हैं ? क्योंकि इस संसार में प्रभु के अलावा सभी वस्तुएँ नश्वर हैं और अन्त में यह संसार भी परमात्मा में विलय या लय हो जाता है।

इस प्रकार उस पावन क्षेत्र नैमिषारण्य में श्री शौनकादि ऋषियों द्वारा प्रार्थना करने पर श्री सूतजी प्रसन्न हो गये और उनके हृदय में भगवान् का गुण और स्वरूप एवं नाम उभर आये । यहाँ पर सूत का मतलब होता है –

“क्षत्रियात् विप्रकन्यायां सूतो भवति जातकः”

क्षत्रिय पुरुष एवं विप्र कन्या के संतान गृहस्थ धर्म से जिनका जन्म हो वह सूत कहलाता है।

 

शौनक जी ! भगवान श्रीमन् नारायण के गुणों को जिस भागवत में वर्णन है उस भागवत को सुनने से ही भगवान की प्राप्ति होती है। क्योकि जब बहुत जन्मों का पुण्य उदय होता है या जब अनन्त जन्मों के भाग्य का उदय होता है तो सत्संग का लाभ प्राप्त होता है। उस सत्संग का तात्पर्य श्रीमद्भागवत कथा होती है। श्रीमद्भागवत कथा का संयोग पूर्वजन्म के पुण्य से ही होता है। पूर्वजन्म का पुण्य भगवान् की कृपा से ही होता है।

“भाग्योदयेन बहुजन्मसमर्जितेन सत्संगम् च लभते पुरूषो यदा वै” ।।

प्रभु श्रीमन् नारायण के अलावा इस संसार में हम सभी म्रियमाण हैं। यानी जिसने भी जन्म लिया है उसे संसार से जाना है। अतः हम मरणशील मनुष्यों के उद्धार के लिए, अशान्त मन की शान्ति के लिए, चित्त के विकारों की शुद्धि के लिए भक्तों में भक्ति की भावना सुदृढ़ करने के लिए श्रीमद्भागवतपुराण की रचना श्री व्यासजी महाराज ने की है।

इसी भागवत कथा का उपदेश उन्होंने अपने पुत्र श्री शुकदेवजी को दिया था तथा अध्ययन कराया था। श्री शुकदेवजी ने म्रियमाण राजा परीक्षित् को गंगा नदी के तट पर लगातार ७ दिनों तक वही कथा सुनायी, जिससे राजा परीक्षित की मुक्ति हो गयी। उसी भागवत पुराण की कथा का श्रवण हमलोग यहाँ करेंगे।

भागवत कथा के श्रवणकर्ता ऐसे भक्तजन निश्चय ही खेती व्यपार नौकरी अध्यन अध्यापन के साथ इस लोक में सुखपूर्वक जीवन जीते हुए अन्त में वैकुण्ठलोक की प्राप्ति करते हैं। भागवत कथा वाचक नाम लिस्ट bhagwat katha vachak list

अमर कथा

इसी भागवत कथा को सुनकर श्री शंकर जी अमर हैं। अतः इस भागवत कथा को अमरकथा भी कहा जाता है। इसी अमर कथा को एक समय श्री कर जी ने अपनी पत्नी पार्वती को सुनाया था, परन्तु श्रीपार्वती जी इस अमरकथा को पूरा-पूरा नहीं सुन पायीं तथा बीच में ही निद्राग्रस्त हो गयीं ।

अर्थात् इस प्रसंग का विस्तार से अन्यत्र ग्रन्थों में कथा है कि एक बार श्रीकृष्ण भगवान् महालक्ष्मी श्री राधाजी के साथ अपने वैकुण्ठ यानी गोलोक धाम में बैठे थे तो अचानक भगवान् श्री कृष्ण ने कहा कि हे राधा जी मैं अब पृथ्वी लोक पर जाऊँगा, आप भी चलें। श्री राधाजी ने कहा कि मैं पृथ्वीलोक पर तभी चलूँगी जब पृथ्वीलोक पर इस गोलोक के समान गोवर्धन – वृन्दावन, आदि उपस्थित हों ( प्रभु की कृपा से श्री राधा जी की कामना के अनुसार वृन्दावन, गोकुल एवं गोवर्धन पर्वत आदि पृथ्वी लोक में प्रकट हो गये) ।

 

इधर जब श्रीराधा जी पृथ्वी लोक पर चलने लगीं तो गोलोक के श्रीराधाजी का लीलापक्षी श्रीशुकदेवजी ने भी साथ चलने को कहा तो वहीं राधाजी की आज्ञा से भगवान् की अमरकथा रूपी भागवत कथा के प्रचार करने के लिए गोलोक के लीलापक्षी श्रीशुकदेवजी एक सुग्गी के गर्भ के अण्डे के रूप में प्रकट होकर अमरनाथ में प्रकट हुए थे।

वह अण्डा हवा के झकोरों के कारण फूट गया था तथा अमरनाथ में फूटा हुआ पड़ा था। इधर एक बार श्री नारद जी घूमते-घूमते कैलास पर्वत पर पहुँचे तो श्री पार्वती जी ने नारद को सत्कार करने के बाद पूछा की नारद जी आप कहाँ से आ रहे हैं तो नारद जी ने कहा कि मैं हर जगह घूमते हुए आ रहा हूँ परन्तु अब घुमना कम कर दिया हॅू क्योकि लोगों पर विश्वास नहीं है इसका कारण लोगों में प्रेम एक दूसरे के प्रति नहीं है केवल दिखावा का प्रेम है वस्तुतः नही ।

तब पार्वती जी ने कहा कि हे नारद जी ! इस जगत् के लोगों में आपस में प्रेम है या नहीं, मैं नहीं जानती, लेकिन, हमारे और हमारे पति भूतभावन शंकर जी में तो बहुत प्रेम है। यानी श्री शंकरजी हमसे बहुत प्रेम करते हैं। तब श्रीनारद जी ने कहा कि हे पार्वतीजी ! जब आपके पतिदेव श्री शंकरजी आपसे प्रेम करते हैं तो यह जरूर बतलाये होंगे कि श्री शंकर जी जो अपने गले में माला पहनते हैं वह कैसी और किसकी माला है, तब पार्वती ने कहा कि हे नारदजी! यह माला पहनने का रहस्य तो वे अभी तक नहीं बतलायें है। भागवत कथा वाचक नाम लिस्ट bhagwat katha vachak list

तब नारद जी ने कहा कि फिर आपके प्रति आपसे झूठा या दिखावे का प्रेम करते हैं। वस्तुतः प्रेम नहीं करते हैं। इतना कहकर श्रीनारदजी वहाँ से चल दिये। इधर वही एक बार पार्वतीजी ने भोलेनाथ से अनुरोध किया कि कृपया यह बतलायें कि आपकी गले में किसकी माला है तथा यह वर दें कि हे स्वामी मुझे आपसे वियोग नहीं हो और हमेशा आत्मज्ञान बना रहे, इसका कोई उपाय बतायें। आगे श्री शंकरजी ने कहा कि इस आत्मज्ञान को मैं समय से बतलाऊँगा। भागवत कथा वाचक नाम लिस्ट bhagwat katha vachak list

परंतु श्रीनरद द्वारा जो भेद वचन है उन भेद वचनों के समाधान को करते हुये श्रीशंकरजी ने कहा कि हे पार्वती यह हमारे गले में जो मुण्डों की माला है वह मुण्डमाला तुम्हारे ही मुण्डों की है जिनको मैंने तुम्हारे बार-बार मरने पर तुम्हारी यादगारी में माला के रूप में धारण किया है क्योकि मैं तुमसे अति प्रेम करता ह। तब पार्वती जी ने कहा कि मैं बार-बार मर जाती हूँ और आपकी मृत्यु नही होती इसका कारण क्या है ? भागवत कथा वाचक नाम लिस्ट bhagwat katha vachak list

 

तब श्री शंकर जी ने कहा कि हे पार्वती ! मैने अमर कथा सुना है जिससे मैं अमर हूँ। यह घटना सुनकर श्री पार्वती जी ने अमर कथा सुनने के लिये श्री शंकर जी से प्रार्थना की तब शंकर जी ने कहा कि हे पार्वती इस समय मैं तुझमे अमरकथा सुनने का पुर्ण लक्षण नहीं देख रहा हूँ फिर भी तुम्हारे आग्रह करने के कारण मैं अवश्य कथा सुनाउगाँ यानी आज आपको अति गोपनीय कथा सुना रहा हूँ जिसको सुनकर तुम भी अमर हो सकती हो। भागवत कथा वाचक नाम लिस्ट bhagwat katha vachak list

इसलिए आप जरा बाहर देख आइये कि कहीं कोई है तो नहीं। श्री पार्वतीजी ने बाहर आकर चारों तरफ अच्छी तरह देखा तो वहाँ एक शुक शावक के विगलित अंडे के सिवा कुछ नहीं था।

उन्होंने श्री शंकरजी से कहा कि बाहर कोई नहीं नहीं है। तब श्री शंकरजी ने ध्यानस्थ मुद्रा में ‘अमरकथा’ का अमृत प्रवाह शुरू किया। बीच-बीच में पार्वती जी हुँकारी भरती थीं। दशम स्कन्ध की समाप्ति पर वे निद्राग्रस्त हो गई एवं बारहवें स्कन्ध की समाप्ति पर पार्वतीजी ने शंकर जी से कहा कि हे प्रभो क्षमा करेंगे, मुझे दशम स्कन्ध के बाद नींद आ गयी थी। भागवत कथा वाचक नाम लिस्ट bhagwat katha vachak list

मैं आगे की कथा नहीं सुन सकी हूँ। अर्थात् श्री कृष्ण उद्धव संवाद जो ग्यारहवे स्कन्ध में है उसको मैंने नहीं सुना तथा बारहवें स्कन्ध की कथा भी नहीं सुनी। इधर यह जानने हेतु कि फिर कथा के बीच में हुंकारी कौन भर रहा था ? यह जानने के लिए शिवजी बाहर निकले। उन्होंने एक सुन्दर शुक शावक को देखा।

श्री शंकरजी ने पार्वती जी से पूछा- आखिर यह शुक शावक कहाँ से आ गया ? पार्वतीजी ने विनीत वाणी में कहा कि यह तो विगलित अंडे के रूप मे पडा था श्री भागवत कथा रूपी अमृत पान से जीवित हो गया। इस प्रकार अमर कथा की गोपनीयता भंग होने से शंकर जी शुक- शावक को पकड़ने के लिए झपटे । भागवत कथा वाचक नाम लिस्ट bhagwat katha vachak list

शुक शावक उड़ गया और उड़ते-उड़ते भय से श्री बद्रिकाश्रम के निकट स्थित व्यास आश्रम पर श्रीव्यास जी की पत्नी पिंगला के मुख में प्रवेश कर गया। फिर शंकर जी ने श्रीव्यासजी द्वारा सन्तावना प्राप्त कर वापस अपने आश्रम पर लौट गये। इधर श्री शुकदेवजी १६वर्षों तक पिंगला के गर्भ में रहे ।

अन्ततोगत्वा श्री व्यास जी के अनुरोध करने पर शुकदेवजी ने अपना भय बताया। उन्होंने गर्भ के भीतर से कहा कि उन्हें बाहर आनेपर माया से ग्रसित होने का भय है। यदि भगवान् श्रीकृष्ण द्वारा माया से ग्रसित नहीं होने का आश्वासन मिले तभी वे बाहर आयेंगे। व्यासजी के अनुरोध से भगवान् श्रीकृष्ण ने शुकदेवजी को माया से ग्रसित नहीं होने का आश्वासन दिया, तब शुकदेवजी गर्भ से बाहर आये ।

शौनक जी ! मैं आप सभी को सम्पूर्ण ज्ञान के सारभूत तथा जिससे माया मोह से मुक्ति प्राप्त होकर ज्ञान वैराग्य भक्ति की वृद्धि हो जाए ऐसी ही कथा को सुनाऊँगा । जो कथा अपात्रता के कारण देवताओं को भी दुर्लभ हो जाती है । भागवत कथा वाचक नाम लिस्ट bhagwat katha vachak list

एक बार जब राजा परीक्षित् शाप के कारण गंगातट पर वही भागवत की कथा सुनने के लिए बैठे थे तो श्री शुकदेवजी के सामने देवता लोग स्वर्ग से अमृत कलश लेकर कथा के बदले में राजा परीक्षित् को पिलाना चाहा तथा कथा को स्वयं देवताओं ने अपने कानरूपी प्याले से पीना या सुनना चाहा।

परन्तु उन देवताओं को उचित अधिकारी नहीं समझकर श्री शुकदेवजी ने डाँट कर हटा दिया तथा कथा रूपी अमृत नहीं पिलाया बल्कि पूर्ण अधिकारी राजा परीक्षित को ही श्री शुकदेवजी ने श्री मद्भागवत कथा रूपी अमृत पिलाया जिसके फलस्वरूप राजा परीक्षित् को सातवें दिन सद्यः मोक्ष प्राप्त हो गया। भागवत कथा वाचक नाम लिस्ट bhagwat katha vachak list

“सुधाकुम्भं गृहीत्वैव देवास्तत्र समागमन्”

 ( अर्थात देवता लोग स्वर्ग से अमृत कलश लेकर कथा के बदले में राजा परीक्षित् को पिलाना चाहा तथा कथा को स्वयं देवताओं ने अपने कानरूपी प्याले से पीना या सुनना चाहा ) इधर राजा परीक्षित की मुक्ति के बाद स्वयं ब्रह्माजी को बड़ा आश्चर्य हुआ तथा वह ब्रह्मा जी ने तराजु के एक पलड़े पर समस्त साधन जैसे यज्ञ, दान, तप, जप, ध्यान आदि को रखा एवं दूसरे पलड़े पर श्रीमद्भागवत महापुराण को रखा तो तराजू के भागवत वाला पलड़ा सबसे भारी सिद्ध हुआ। भागवत कथा वाचक नाम लिस्ट bhagwat katha vachak list

मेनिरे भगवद्रूपं शास्त्र भागवते कलौ । पठनाच्र्छवणात्सद्यो वैकुण्ठफलदायकम् ।।

उस समय समस्त ऋषियों ने माना इस भागवत को पढ़ने से श्रवण से वैकुंठ की प्राप्ति निश्चित होती है ।

श्रीमद्भागवत महापुराण की कथा को पहले ब्रह्माजी ने देवर्षि नारद जी को सुनाया परन्तु सप्ताह विधि से इस कथा को श्री नारदजी ने सनक – सनन्दन – सनातन सनत्कुमार अर्थात् सनकादि ऋषियों से सुना था। वह सप्ताह कथा जो सनकादियों ने श्री नारदजी को सुनायी थी। वही कथा को एक बार मैं ( श्रीसुतजी) श्री शुकदेवजी से सुनी थी उसी कथा को हे शौनकजी मैं आपलोगों के बीच आज नैमिषारण्य में सुनाऊँगा।

इस प्राचीन कथा को कहने और सुनने की परम्परा को सुनकर श्री शौनकजी ने कहा कि हे सूतजी ! यह कथा कब और कहाँ पर श्री नारदजी ने सनकादियों से सुनी थी इसको विस्तार से बतलायें ?

तब श्री सूतजी ने कहा कि हे शौनकजी! एक समय श्री बद्रीनारायण की तपोभूमि विशालापुरी में एक बड़े ज्ञान यज्ञ का आयोजन हुआ था जिसमें बहुत से ऋषियों सहित सनकादि ऋषि भी पधारे थे। संयोग से उस समय उस स्थल पर श्री नारदजी ने सनकादियों को देखा तो प्रणाम किया एवं मन ही मन वे उदासी का अनुभव कर रहे थे। भागवत कथा वाचक नाम लिस्ट bhagwat katha vachak list

कथं ब्रह्मन्दीनमुखं कुतश्चिन्तातुरो भवान् । त्वरितं गम्यते कुत्र कुतश्चागमनं तव ।।

यह देखकर सनकादियों ने नारदजी से उदासी का कारण पूछा तो श्री नारदजी ने कहा-

अहं तु प्रथवीं यातो ज्ञात्वा सर्वोत्तमामिति ।

 हे मुनीश्वरों मैं अपनी कर्मभूमि तथा सर्वोत्तम लोक समझकर एवं वहाँ के पवित्र तीर्थों का दर्शन करने पृथ्वी लोक पर आया था । परन्तु इस पृथ्वी के तीर्थों को भ्रमण करते हुए मैंने अनुभव किया कि सम्पूर्ण तीर्थ जैसे काशी, प्रयाग, गोदावरी, पुष्कर में भी कलियुग का प्रभाव है जिससे इन तीर्थों में नास्तिकों, भ्राष्टचारियों का बोलबाला एवं अधिकांशतः वास हो गया है।

जिससे तीर्थ का सारतत्त्व प्रायः नष्ट हो गया है। अतः मुझे तीर्थों में जाने से भी शान्ति नहीं मिली। इस कलियुग के प्रभाव से सत्य, तप, दया, दान आदि सद्गुणों का लोप हो गया है। सबकोई अपना ही पेट भरने या अपना पोषण में लगा है। भागवत कथा वाचक नाम लिस्ट bhagwat katha vachak list

पाखण्ड निरताः सन्तो विरक्ताः सपरिग्रहाः ।।

साधु-सन्त विलासी, पाखण्डी, दम्भी, कपटी आदी हो गये हैं।

तपसि धनवंत दरिद्र गृही । कलि कौतुक तात न जात कही ।।

इधर गृहस्थ भी अपने धर्म को भूल गये हैं तथा घर में बूढ़े बुजुर्गों का सेवा आदर नहीं है। पुरुषलोग स्त्री के वश में होकर धर्म-कर्म एवं माता-पिता. भाई-बन्धु आदि को त्याग कर केवल साले साहब से सलाह एवं रिश्ता जोड़े हुए हैं। प्रायः स्त्रियों का ही शासन घर परिवार एवं पति पर चल रहा है एवं तीर्थों-मन्दिरों में विद्यर्मियों ने अधिकार जमा लिया है। भागवत कथा वाचक नाम लिस्ट bhagwat katha vachak list

इस प्रकार सर्वत्र कलियुग का कौतूहल चल रहा है-

“तरुणी प्रभूता गेहे श्यालको बुद्धिदायकः”।

यानि घर में स्त्रीयों का शासन चल रहा है एवं साले साहब सलाहहकार बने हुये है। आगे श्री नारद जी कहते हैं कि मैं यह सर्वत्र कौतूहल देखते हुए प्रभु भगवान् श्रीकृष्ण की लीलाभूमि जब व्रज में यमुना के तट पर पहुँचा तो वहाँ मैंने एक आश्चर्य घटना देखा कि एक युवती के दो बूढ़े पुत्र अचेत पड़े हैं तथा वह युवती आर्त भाव से रो रही है और उस युवती को धैर्य धारण कराने के लिए बहुत सी स्त्रियाँ उपस्थित हैं। भागवत कथा वाचक नाम लिस्ट bhagwat katha vachak list

“घटते जरठा माता तरुणौ तनयाविति ।

जगत् में यह देखा जाता है कि माता बूढ़ी होती है और पुत्र युवा होते हैं। इस प्रकार श्री नारद जी को देखकर वह रोती हुई स्त्री ने आवाज लगाते हुये कहा कि हे महात्मा जी !

भो भो साधो क्षणं तिष्ठ मच्चिन्तामपि नाशय ।।

आप थोडा रूककर मेरी चिन्ता एवं दुख को दूर करे तब श्रीनारद जी वहाँ पहुँचकर कहा कि हे देवी तुम्हारा परिचय क्या है ? और यह घटना कैसे घटी ? आगे उस देवी ने कहा-

अहं भक्तिरिति ख्याता इमौ मे तनयौ मतौ । ज्ञान वैराग्यनामानौ कालयोगेन जर्जरौ ।।

 महात्मन् ! मेरा नाम भक्ति देवी है तथा ये दोनों वृद्ध मेरे पुत्र ज्ञान – वैराग्य हैं और ये सभी स्त्रियाँ अनेक पवित्र नदियाँ हैं।

उत्पन्ने द्रविणेसाहं वृध्दिं कर्णाटके गता ।  क्वचित्क्वचिन्महाराष्ट्रे गुर्जरे जीर्णतां गता ।।

हे महात्मन् ! मैं द्रविड़ देश में उत्पन्न हुई एवं कर्णाटक देश में मेरी और मेरे वंश की वृद्धि हुई तथा महाराष्ट्र में कहीं-कहीं मेरा आदर हुआ एवं गुजरात देश में मेरे और मेरे पुत्रों को बुढ़ापे ने घेर लिया और मैं वृन्दावन में आकर स्वस्थ्य तथा युवती हो गयी लेकिन मेरे पुत्र यहाँ आने पर भी वे अस्वस्थ्य और बूढ़े ही रह गये । अतः मैं इसी चिन्ता में रो रही हूँ।

उस भक्ति देवी के कष्ट को सुनकर श्री नारद जी ने कहा कि हे देवि ! भगवान् श्री कृष्ण के जाते ही जब कलियुग पृथ्वी पर आया तो राजा परीक्षित ने कलियुग के केवल एक गुण की महिमा के कारण (कलियुग में केवल प्रभु के नाम आदि का कीर्तन करने से अन्य तीनों युगों का फल और अनेक धर्म के साधन का फल प्राप्त हो जाता है) कलियुग को मारा नहीं या अपने राज्य से निकाला नहीं । भागवत कथा वाचक नाम लिस्ट bhagwat katha vachak list

 यह सुनकर श्री भक्ति देवी ने श्री नारद जी को प्रणाम किया। इस प्रकार भक्ति देवी के प्रणाम करने पर श्री नारद जी ने कहा कि-

वृथा खेदयसे बाले अहो चिन्तातुराकथम्, श्रीकृष्णचराणाम्भोजं स्मर दुःखम् गमिष्यति ।। ( श्रीमद् भा० मा० २ / १ )

हे बाले ! तुम व्यर्थ ही खेद क्यों करती हो एवं चिन्ता से व्याकुल क्यों हो रही हो ? वह भगवान् आज भी हैं अतः उन प्रभु के श्रीचरणों का स्मरण करो उन्हीं श्रीकृष्ण की कृपा से तुम्हारा दुःख दूर हो जाएगा। भागवत कथा वाचक नाम लिस्ट bhagwat katha vachak list

 

हे भक्ति देवी ! तुमको परमात्मा ने अपने से मिलाने के लिए प्रकट किया था तथा ज्ञान वैराग्य को तुम्हारा पुत्र बनाकर इस जगत् में भेजा एवम् मुक्ति देवी को भी तुम्हारी दासी बनाकर भेजा था।

परन्तु कलियुग के प्रभाव से मुक्ति देवी तो वैकुण्ठ में चली गई अब केवल तुम ही यहाँ दिखाई देती हो। अतः मैंने भक्तों के घर-घर में एवं हृदय में भक्ति का प्रचार नहीं कर दिया तो मेरा नाम नारद नहीं समझा जाएगा या मैं सही में भगवान् का भक्त अथवा दास नहीं कहलाऊँगा । इसके बाद श्रीनारद जी ने वेद आदि का पाठ कर उन ज्ञान वैराग्य को जगाया। भागवत कथा वाचक नाम लिस्ट bhagwat katha vachak list

इसके बाद भी ज्ञान – वैराग्य को होश नहीं आया। उसी समय नारद जी को सत्कर्म करने की आकाशवाणी हुई। इस प्रकार सत्कर्म करने की आकाशवाणी को सुनकर नारदजी विस्मित हुए और वे तीर्थों में घूमते हुए महात्माओं से सत्कर्म के बारे में पूछने लगे, लेकिन उन महात्माओं से संतोषजनक उत्तर नहीं मिला तथा उनके प्रश्न को सुनकर ऋषि-मुनि कहते हैं कि जब नारदजी ही सत्कर्म के बारे में नहीं जानते तो इनसे बढ़कर और कौन ज्ञानी और भक्त होगा जो सत्कर्म के बारे में संतोषजनक उत्तर दे सकें। अन्त में थक-हारकर तपस्या द्वारा स्वयं सत्कर्म जानने की इच्छा से श्रीनारद जी बदरिकाश्रम के लिए चल पड़े।  क्योंकि-

तपबल रचे प्रपंच विधाता तपबल विश्व सकल जग त्राता ।

तपबल रुद्र करे संघारा तपबल शेष धरे महि भारा ।।

वहाँ पहुँचकर अभी तप का विचार कर ही रहे थे कि-

“तावद्-ददर्श पुरतः सनकादीन् मुनीश्वरान”,

वहाँ सनकादि ऋषियों के दर्शन हुए। इस प्रकार श्रीनारदजी ने उन्हें प्रणाम निवेदन किया और सत्कर्म के बारे में आकाशवाणी की बात बतायी तथा सनकादि ऋषियों से उन्होंने सत्कर्म के बारे में बताने का अनुरोध किया। श्री सनकादि ऋषियों ने कहा कि आप चिन्ता न करें। सत्कर्म का साधन अत्यन्त सरल एवं साध्य है। भागवत कथा वाचक नाम लिस्ट bhagwat katha vachak list

हालाकि सत्कर्म करने के बहुत से उपाय पूर्व में ऋषियों ने बताया हैं, लेकिन वे सब बड़े कठिन है एवं परिश्रम के बाद भी स्वल्प फल देनेवाले हैं। श्रीवैकुण्ठ प्राप्त करानेवाला सत्कर्म तो गोपनीय है। कोई-कोई ज्ञाता बड़े भाग्य से मिलते हैं जो सत्कर्म को जानने के लिए इच्छुक या प्यासे हों। अतः आप सत्कर्म को सुने-

‘सत्कर्मसूचको नूनं ज्ञानयज्ञः स्मृतो बुधैः । श्रीमद्भागवतालापः स तु गीतः शुकादिभिः ।।

श्रीमद् भा० मा० २/ ६०

सत्कर्म का अर्थ विद्वानों ने ज्ञानयज्ञ कहा है। ज्ञानयज्ञ को ही भागवत कथा कहते हैं। भागवत कथा की ध्वनि से ही कलि के दोष एवं दैहिक दैविक, भौतिक कष्टों का निवारण हो जाता ।

भक्ति की प्राप्ति होती है और ज्ञान-वैराग्य का प्रचार एवं प्रसार होता है। नारदजी द्वारा जिज्ञासा करने पर कि वेद, उपनिषद्, वेदान्त एवं गीता में भी भागवत कथा ही वर्णित है, फिर अलग से भागवत कथा क्यों ? सनकादि ऋषियों ने बताया कि जिस तरह आम्रवृक्ष में आम का रस जड़ से पत्ते तक विद्यमान रहता है, लेकिन उसका फल ही आम का रस देता है।

वेदोपनिषदां साराज्जाता भागवती कथा ।।

 उसी तरह वेद, वेदान्त, उपनिषद् में व्याप्त भक्ति रस आम के वृक्ष के सदृश हैं या दूध में घी की तरह सार रूप में है। परन्तु यह भागवत आम वृक्ष के फल के समान परम मधुर एवं लोकोपकारी तथा मुक्तिदायक है। वही भागवत कथा को आप श्रवण करके उन भक्ति देवी के पुत्रों को स्वस्थ्य कर सकते हैं।

 हे ऋषिगण ! अब आपलोग कृपया बतायें कि आयोजन का स्थान कौन सा हो और यह कितने दिनों तक कथा चलेगी ? नारद जी की सहज उत्कंठा देखकर शनकादि ऋषियो ने हरिद्वार में गंगा नदी के तट पर आनन्दवन नामक स्थान में एक सप्ताह के लिए भागवत कथा आयोजित करने की बात कही। इसके बाद सनकादि मुनियों के साथ नारदजी हरिद्वार के आनन्द वन में गंगातट पर पहुँचे । इनके पहुँचते ही तीनों लोकों में चर्चा फैल गयी। भागवत कथा वाचक नाम लिस्ट bhagwat katha vachak list

 

भगवान् के भक्त भृगु, वसिष्ठ, गौतम, च्यवन, विव्यास इत्यादि सभी ऋषि महर्षि अपनी सन्ततियों के साथ वहाँ आ गये। वेद वेदांत मंत्र यंत्र तंत्र 17 पुराण गंगा आदि नदियां और समस्त तीर्थ मूर्तिमान होकर कथा सुनने के लिए प्रकट हो गए क्योंकि—-

तत्रैव गगां यमुना त्रिवेणी गोदावरी सिन्धु सरस्वती च ।

वसन्ति सर्वाणि तीर्थानि तत्र यत्राच्युतो दार कथा प्रसंगः ।।

जहां भगवान श्री हरि की कथा होती है वहां गंगा आदि नदियां समस्त तीर्थ है मूर्तिमान होकर प्रकट हो जाते हैं, आनन्दवन में भागवत कथा पारायण का आयोजन किया गया, मंडप बनाया गया। चारों दिशाओं में भागवत कथा समारोह आयोजन की चर्चा होने लगी ।

 

भक्त श्रोतागण चारों तरफ से जय-जयकार करते, शंख ध्वनि करते, नगाड़ा बजाते हुए समारोह स्थल पर एकत्रित होने लगे इस प्रकार सनकादि ऋषियों में सबसे बड़े सनत्कुमार ने भागवत कथा की महिमा बतलाते हुए प्रवचन शुरू किया और कहा –

‘सदा सेव्या सदा सेव्या श्रीमद्भागवतीकथा । यस्याः श्रवणमात्रेण हरिश्चित्तं समाश्रयेत् ।।

श्रीमद् भा० मा० ३/२५

हे नारदजी ! यह भागवत कथा को हमेशा और बार- बार सुनना चाहिए क्योंकि भागवत कथा के श्रवण मात्र से भगवान् हृदय में विराजमान हो जाते हैं, अज्ञान एवं अमंगल का नाश हो जाता है। विविध वेदों, उपनिषदों के पढ़ने से, जो लाभ होता है, उससे अधिक लाभ भागवत कथा के श्रवण मात्र से होता है।

कल्याणकामी मनुष्य यदि प्रतिदिन कम-से-कम एक या आधा श्लोक भी पढ़े तो उसका कल्याण होगा। जो व्यक्ति प्रतिदिन सरल भाषा में भागवत कथा के अर्थ को आमलोगों को सुनाता है, उसके करोड़ों जन्मों के पापों का नाश हो जाता है।

मनुष्य का जीवन धारण कर जिसने एक बार भी भागवत कथा का श्रवण नहीं किया, उसका मनुष्य योनि में जन्म लेना निरर्थक है। उसका जीवन तो चाण्डाल एवं गदहे के समान व्यर्थ हैं— ऐसा समझा जाय। भागवत के श्रवण का सुअवसर करोड़ों जन्मों के भाग्यफल के उदय होने पर होता है। अतः इस श्री भागवत को बार-बार तथा हमेशा एवम् हर समय श्रवण करना चाहिए। भागवत कथा वाचक नाम लिस्ट bhagwat katha vachak list

लेकिन जीवन की अनिश्चितता एवं सिमित आयु को देखते हुए भागवत कथा को सप्ताह में श्रवण का विधान किया गया है। कलियुग में यज्ञ, दान तप, ध्यान, स्वाध्याय, यम, नियम- ये सभी साधन कठिन है। लेकिन भागवत कथा सर्वसुलभ है। इन सभी साधनाओं का फल केवल भागवत कथा सप्ताह श्रवण से संभव है।

यह भक्ति, ज्ञान, वैराग्य को जीवन्त कर उनका प्रचार-प्रसार करनेवाला है। सप्ताह के सामने तप, ध्यान, योग सभी की गर्जना समाप्त हो जाती है। अर्थात् श्री भगवान् की कथा रूपी कीर्तन या नामरूपी कीर्तन से कलियुग में भगवान् शीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं-

यत्फलं नास्ति तपसा न योगेन समाधिना । तत्फलं लभते सम्यक् कलौ केशवकीर्तनात् ।।

जो फल तप, योग, ध्यान, समाधि से प्राप्त करना कठिन है वह फल सम्यक् प्रकार से कलियुग में केशवनारायण के कीर्तन (कथा) से सहज में प्राप्त होता है । इस प्रकार भगवान् के प्रसन्न करने के अनेक साधन हैं। जैसे-

उक्तं भागवतं नित्यं कृतं च हरिचिन्तनम् । तुलसी पोषणं चैव धेनूनां सेवनं समम् ।। श्रीमद् भा० मा० ३ / ३६

इन साधनों में मुख्यतः भगवान् के नाम का जप, भागवत कथा श्रवण, गाय की सेवा, तुलसी रोपने एवं सींचने से वे प्रभु अति प्रसन्न होते हैं।

 

भगवान् ने अपना वे भगवान् श्रीकृष्ण जब इस लीला विभूति के लीला शरीर को छोड़कर जाने लगे तो उद्धवजी ने पूछा- हे भगवन् ! आप जा रहे हैं और इधर कलियुग आनेवाला है। चारों तरफ दुष्टों, अत्याचारियों की बाढ़ होगी। सत्पुरुष नष्ट या विचलित हो जायेंगे। हे प्रभो कोई उपाय बातयें । प्रत्युत्तर में दिव्य तेज भागवत में निहित कर दिया और स्वयं उसी में प्रविष्ट हो गय। अतः यह भागवत-

“तेनेयं वांगमयी मूर्तिः प्रत्यक्षा वर्तते हरेः । सेवनाच्छ्रवणात्पाठाद दर्शनात्पापनाशिनी” श्रीमद् भा० मा० ०३ / ६२

यह भागवत स्वयं भगवान का स्वरूप है। यह भागवत साक्षात् भगवान् की मूर्ति ही है। अतः इस भागवत के सेवन, दर्शन, श्रवण, पठन से सभी प्रकार के पापों का नाश होता है। भागवत कथा वाचक नाम लिस्ट bhagwat katha vachak list

 

आगे श्री सूतजी ने कहा कि हे शौनकजी ! जब सनकादि ऋषिगण भागवत कथा के महत्त्व का वर्णन कर रहे थे, उसी समय तरुणी भक्ति देवी –

भक्तिः सुतौ तौ तरुणौ गृहीत्वा प्रेमैकरूपा सहसाऽविरासीत् ।

श्रीकृष्ण गोविन्द हरे मुरारे नाथेति नामानि मुहुर्वदन्ती ।। श्रीमद् भा० मा० ३ / ६७

अर्थात वह तरुणी भक्ति देवी अपने दोनों तरुण पुत्रों ज्ञान और वैराग्य को लेकर उस समारोह स्थल पर भगवत् नाम कीर्त्तन करती प्रकट हो गई यानी भागवतजी की महिमा से स्वस्थ होकर वह वृन्दावन – मथुरा से हरिद्वार के पावन कथा स्थल पर पहुँच गयी । वह दिव्य रूप में भक्ति माता, उनके तरुण दिव्य दोनों पुत्रों-ज्ञान एवं वैराग्य को देखकर सभी लोग आश्चर्यचकित हो गये। सभी ने प्रश्न किया कि भक्ति देवी अपने ज्ञान-वैराग्य पुत्रों के साथ कैसे पहुँच गई ?

सनत्कुमार ने कहा कि भक्ति देवी भागवत कथा के प्रेरस से आविर्भूत हुई हैं। भक्ति देवी ने सनकादि ऋषिकुमारों से कहा ‘आपने भागवत कथा रस से हमें परिपुष्ट कर दिया अब कृपया बतायें कि मैं कहाँ निवास करुँ ?’ सनकादि ऋषियों ने उन्हें सदा भक्तों के हृदय में निवास करने को कहा अत: तभी से भक्ति बराबर भक्तों के हृदय में निवास करती है। इसीलिए भक्तों के पुकारने पर भगवान चले आते हैं।

सकलभुवनमध्ये निर्धनास्तेऽपिधन्या, निवसति हृदि येषां श्रीहरेर्भक्तिरेका ।

हरिरपि निजलोकं सर्वथातो विहाय प्रविशति हृदि तेषां भक्तिसूत्रोपनद्धः ।।

श्रीमद् भा० मा० ३/७३

वह मनुष्य धन्य है जिसके हृदय में भगवान् निवास करते हैं। भक्ति देवी के आ जाने से वहाँ का वातावरण उत्साह से भर गया । सभी लोग हर्षित हो उठे और वे जोर जोर से शंखध्वनि तथा नगाड़े बजाने लगे, अबीर गुलाल उड़ाने लगे। जब भक्ति देवी आ गई तो भगवान् नारायण भी सभा मण्डप में सपरिवार दिव्य रूप में आ पहुँचे । इससे सभामण्डप में हर्ष एवं उल्लास सहित जय-जयकार करते हुए भक्त श्रोतागण अपने अनेक वाद्योंसहित शंख ध्वनि करने और लगे नगाड़े बजाने लगे। भागवत कथा वाचक नाम लिस्ट bhagwat katha vachak list

 

श्री नारदजी भागवत कथा सप्ताह की अद्भुत महिमा से चकित हैं देवर्षि नारद ने भक्ति ज्ञान वैराग्य की तरुणावस्था को देखा तो कहने लगे मुनिस्वरों  मैंने भगवान की अलौकिक महिमा को देख लिया । भागवत कथा वाचक नाम लिस्ट bhagwat katha vachak list

  के के विशुध्दयन्ति वदन्तु मह्यं ।

अब यह बताएं इस भागवत को सुनने से कौन-कौन से लोग पवित्र हो जाते हैं सनकादि मुनीश्वरों  ने कहा—–

 

ये मानवाः पापकृतस्तु सर्वदा सदा दुराचाररता, विमार्गगाः ।

क्रोधाग्निदग्धाः कुटिलाश्च कामिनः सप्ताहयज्ञेन कलौ पुनन्ति ते ।।श्रीमद्भा० ०४/११

जो महापापी, कुलकलंकी, क्रोधी, कुमार्गी, कुटिल तथा कामी हैं, उनका पापकर्म केवल सप्ताह भागवत कथा श्रवण करने से समाप्त हो जाता है। गोघाती, सुवर्ण चुरानेवाले, मदिरा पीनेवाले वगैरह सभी तरह के नीच कर्म करनेवाले व्यक्तियों अथवा अपने पापकर्म को करके मरकर प्रेत बना जीव भी सप्ताह श्रवण से उद्धार पा लेता है । भागवत कथा वाचक नाम लिस्ट bhagwat katha vachak list

 

यह कथा सुनकर श्रीनारदजी ने कहा कि आज तक किसी ऐसे प्रेत का उद्धार हुआ है ? अगर उद्धार हुआ है तो उसका नाम क्या था । तब फिर श्री सनत्कुमारजी ने इस संबंध में एक प्राचीन इतिहास सुनाया और कहा कि हे नारदजी ! प्राचीन काल में तुंगभद्रा नदी के तट पर अवन्ती या उत्तम नामक एक नगर था । इस नगर में आत्मदेव नामक विद्वान् ब्राह्मण रहते थे। वे आर्थिक दृष्टि से भी सम्पन्न थे। उनकी पत्नी का नाम धुंधली था ।

धुन्धुम  अज्ञानं कलहं लाति या सा धुन्धली ।

जो सदा अज्ञानता के कारण लड़ाई में लगी रहती है ।  आत्मदेव विद्वान्, चरित्रवान्, निगमशास्त्र के वेत्ता, दयालु एवं विनम्र ब्राह्मण थे। लेकिन उनकी पत्नी धुंधली क्रूर, ईर्ष्यालु, पति से बराबर झगड़ा करनेवाली, दुराग्रही थी। वह जो कहती, उसी की पुष्टि पति से कराती । वह हमेशा तनाव की स्थिति में रहती तथा पति के साथ अपमानजनक व्यवहार करती। भागवत कथा वाचक नाम लिस्ट bhagwat katha vachak list

हम सभी के शरीर के अन्दर भी हमेशा आत्मा रूपी आत्मदेव एवं बुद्धिरूपी धुंधली वर्तमान हैं। यह धुंधुली बात न मानकर धुंधुली रूपी तर्क-वितर्क के द्वारा अपना ही कार्य इस शरीर से कराती है। धुंधुली भी अपने पति आत्मदेव से हर हालत में अपनी इच्छा के अनुसार ही कार्य कराती है। भागवत कथा वाचक नाम लिस्ट bhagwat katha vachak list

 

आत्मदेव सम्पन्न एवं विद्वान् होते हुए ब्राह्मणधर्म के अनुसार भिक्षाटन से ही जीवन चलाते थे। उनके पास सुख-सुविधा, समृद्धि, विद्वता, कुलीनता सब थी। लेकिन धुंधुली की कर्कशता उनके लिए भारी दुःख का कारण था और प्रतिफल यह की आत्मदेवजी को कोई संतान नहीं थी । पुत्र नहीं होने से आत्मदेव दुःखी रहते ।

उनको भारी चिंता सताती । वे बराबर सोचते- उनके धराधाम से जाने पर उनका उत्तराधिकारी कौन होगा ? पितरों को तर्पण कौन करेगा ? निःसन्तान होने के चलते लोग उनपर ताना कसते। इन समस्याओं से उत्पीड़ित होकर आत्मदेव एक दिन आत्महत्या के लिए चल पड़े। वे वन में एक सरोवर के पास पहुँचे ।

पानी पीकर वहीं आत्महत्या करने की बात सोचने लगे। तब तक उस सरोवर के पास संध्या वन्दन करने के लिए एक संन्यासी महाराज पहुँच गये। आत्मदेव उनके चरणों में गिरकर अपना दुखड़ा रोने लगे कि उनका दुःख दूर करें अन्यथा वे आत्महत्या कर लेंगे। भागवत कथा वाचक नाम लिस्ट bhagwat katha vachak list

संन्यासी महाराज ने उनके दुःख का कारण पूछा तो बोले कि उन्हें पुत्र प्राप्ति का वरदान दें और नहीं तो वे उसी समय सरोवर में डूबकर आत्महत्या कर लेंगे । सन्यासी महाराज के सामने आत्मदेव एक समस्या के रूप में खड़े हो गये । इन्होनें आत्मदेवजी को उपाय बताया कि आप गृहस्थ आश्रम को छोड़कर सन्यास ग्रहण कर लें ।

आत्मदेवजी ने निवेदन किया कि गृहस्थ आश्रम का सरस जीवन छोड़कर सन्यास ग्रहण करना उनसे सम्भव नहीं। सन्यास आश्रम नीरस एवं उनके लिए कठिन है । सन्यासी महाराज ने आत्मदेव का ललाट देखा और बताया कि अगले सात जन्मों तक आपको पुत्र रत्न पाने या कोई संतान पाने का योग नहीं है। भागवत कथा वाचक नाम लिस्ट bhagwat katha vachak list

सप्तजन्मावधि  तव  पुत्र नैव च नैव च ।

लेकिन आत्मदेव फिर पुत्र प्राप्ति के आशीर्वाद के लिए आग्रह करते रहे और अपनी आत्महत्या के हठ पर अड़े रहे। सन्यासी महाराज ने कहा कि पुत्र का योग नहीं होने पर साधु-महात्माओं की आज्ञा को त्याग कर यदि किसी को भी जो पुत्र होता है, वह पिता के लिए दुःख का कारण हो जाता है। ऐसे पुत्र से पिता का उद्धार नहीं होता बल्कि कुल का नाश हो जाता है। लेकिन सन्यासी महाराज के बार-बार समझाने के बाद भी आत्मदेव पुत्र प्राप्ति के आग्रह से नहीं हटे । आत्मदेव ने कहा कि सन्यासी महाराज हमने सुना है कि-

“दानेन पाणिर्न कंकणेन श्रोत्रम् श्रुतेनैव न कुण्डलेन,

विभाति कायः करुणापराणाम् परोपकारेण न चन्दनेन्

हाथ की शोभा दान से है केवल कंगन पहनने से नही है। इसीप्रकार कान की शोभा भगवत कथा सुनने से है केवल कुण्डल से नही । इसीतरह शरीर की शोभा परोपकार, करुणा आदि से है केवल शरीर सुन्दरता से नही । अतः आप जैसे संत चंदन के समान संसार के परोपकार के लिए ही होते हैं।

‘परोपकराय सताम् विभूतयः”

फिर आगे आत्मदेवजी पुनः कहते हैं-

पुत्रादिसुखहीनोऽयं सन्यासः शुष्क एव हि । गृहस्थ: सरसो लोकेपुत्रपौत्रसमन्वितः ।। श्रीमद्भा०मा० ४ / ३८

महात्मन ! पुत्र आदि का सुख से विहीन यह सन्यास नीरस है तथा गृहस्थ के पुत्र-पौत्र आदि से संपन्न जीवन सरस है। इस प्रकार आत्मदेव पुत्रैषणा के चलते दुराग्रह कर रहे थे एवं सन्यासी महाराज से हर हालत में पुत्र प्राप्ति का आशीष चाहते थे, अन्यथा सरोवर पर आत्महत्या की बात पर अड़े थे।

सारी स्थिति जानते हुए भी भावी प्रबल समझकर सन्यासी महाराज ने आत्मदेव को एक आम का फल दिया और पत्नी को खिला देने को कहा। आत्मदेवजी ने उस फल को अपने घर लाया। उन्होंने अपनी पत्नी धुंधली को वह फल देते हुए कहा कि भगवान् का नाम लेकर फल खा ले, पुत्र रत्न की प्राप्ति होगी।

धुंधली अपने मन में कुतर्क करने लगी। गर्भ धारण करने में तो बहुत कष्ट होगा, कहीं बच्चा पेट में टेढ़ा हो गया तो जान ही न चली जाय । यदि बच्चा हो जायेगा तो उसके पालन-पोषण का बोझ भी आ जाएगा। इससे तो अच्छा है कि वह वन्ध्या ही रहे और शारीरिक सुख भोगे। इसी बीच उसकी छोटी बहन आ गयी, जिसको पहले से ही ४ – ५ बच्चे थे और वह गर्भवती भी थी।

धुंधली ने पति द्वारा संतान प्राप्ति हेतु मिले फल की बात अपनी छोटी बहन को बताया और अपने मन की बात बोली की वह गर्भवती नही होना चाहती। उसकी छोटी बहन ने कहा की मै स्वयं गर्भवती हूँ इसलिए हे धुंधली ! तुम फल खाने एवं गर्भवती होने का नाटक अपने पति से करो और घर में ही रहो और जब मुझे बच्चा हो जायगा तो अपना बच्चा तूझे लाकर के दे दूँगी। अपने यहाँ कह दूँगी कि मेरा बच्चा गर्भ में ही मर गया।

फिर हे धुंधली बहन ! तुम अपने पति से यह कहना है कि मुझे दूध नहीं होता है, इसलिए बच्चे का दूध पिलाने के लिए मेरी छोटी बहन को बुला लें। बदले में आत्मदेवजी मेरे पति को कुछ धन दे देंगे। बच्चे को मैं तुम्हारे घर में ही रहकर पोषण कर दूँगी । इस प्रकार धुंधली ने अपनी बहन के साथ हुई मंत्रणा के अनुसार आत्मदेवजी से कह दिया कि उसने फल खा लिया है और वह गर्भवती हो गयी है।

इधर संन्यासी महाराज से प्राप्त फल को धुंधली ने आत्मदेवजी की गाय को खिला दिया। संन्यासी महाराज के आशीर्वादयुक्त फल खाकर गाय गर्भवती हो गयी । इधर सात माह में धुंधुली की बहन को बच्चा हुआ जिसे उसने शीघ्र अपनी बहन के पास पहुँचा दिया-यह घटना आत्मदेवजी को कुछ भी मालूम नहीं थी। वे पुत्ररत्न पाकर आनन्दित हो गये ।

धुंधली ने अपनी बहन की मंत्रणा के अनुसार आत्मदेव से कहा कि मुझे बालक को पिलाने हेतु मेरे पास दूध नहीं है। बच्चे के पोषण के लिए उसकी छोटी बहन को बुला लें। यह बच्चे को अपना दूध पिला देगी। बदले में उसके पति को कुछ आर्थिक योगदान कर दिया करेंगे । आत्मदेव ने अपने नवजात पुत्र के लिए धुंधली की सलाह के अनुसार उसकी छोटी बहन को बुला लिया।

धुंधली की बहन बच्चे का पालन पोषण करने लगी। इधर तीन माह बाद आत्मदेव की गर्भवती गाय को भी संन्यासी महाराज का दिया आम का फल खाने से एक बच्चा हुआ, जिसका शरीर तो सुन्दर बालक का था, लेकिन कान गाय के समान थे। इस बच्चे का नाम रखा गया ‘गोकर्ण‘ । उधर धुंधुली के नाटक से प्राप्त बच्चे का नाम ‘धुंधकारी’ रखा गया।

धुन्धुम कलहं क्लेश करोति कारयति सः सः धुन्धकारी ।।

जो स्वयं तो लड़े और दूसरों को भी लड़ाये उसे धुंधकारी कहते हैं । आत्मदेव दोनों बच्चों का पालन–पोषण एवं शिक्षा-दीक्षा करने लगे। धुंधकारी बाल्यकाल से ही दुष्ट स्वभाव का हो गया। वह अपने साथ खेलनेवाले बच्चों को धक्का देकर कुएँ में गिरा देता । सयाना हुआ तो शराबी एवं वेश्यागामी हो गया। सम्पत्ति का नाश करने लगा ।

गोकर्ण साधु स्वभाव के थे। वे विद्या अध्ययन एवं ज्ञान प्राप्ति की ओर उन्मुख हो गये । धुंधकारी ने पिता आत्मदेव की सारी अर्जित सम्पत्ति को शराब एवं वेश्या-गमन में नष्ट कर दिया और अन्ततोगत्वा एक दिन उसने धन नहीं रहने पर पिता आत्मदेव द्वारा छिपाकर रखी सम्पत्ति के लिए अपनी माँ को बहुत मारा-पीटा और छिपाकर रखे गहने, चांदी के वर्तन वगैरह बहुमूल्य वस्तुएँ उनसे छीन ली। आत्मदेव सम्पत्ति के नाश एवं पुत्र धुंधकारी के चांडाल कर्म के कारण विलख-विलख कर रोने लगे। इस प्रकार-

“गोकर्णः पंडितो ज्ञानी धुन्धुकारी महाखलः” ।।

एक दिन धुन्धुकारी के कर्म से चिंतित वृद्ध आत्मदेव को रोते देख गोकर्ण ने उन्हें सांत्वना दी और समझाया कि पुत्र एवं सम्पत्ति के लिए रोना ठीक नहीं। सुख एवं दुःख आते-जाते रहते हैं।

न चेन्द्रस्य सुखं किचिन्न सुखं चक्रवर्तिनः । सुखमस्ति विरक्तस्य मुने रेकान्तजीविनः ।।

इस संसार में ना तो इंद्र को सुख हैं और ना चक्रवर्ती को सुख है यदि कोई सुखी है तो वह है एकांत जीवी  विरक्त महापुरुष-

दीन कहे धनवान सुखी धनवान कहे सुख राजा को भारी

राजा कहे महाराजा सुखी महाराजा कहे सुख इंद्र को भारी ।

इंद्र कहे चतुरानन सुखी है चतुरानन कहे सुख शिव को भारी

तुलसी जी जान बिचारी कहे हरि भजन बिना सब जीव दुखारी ।।

संत कहते हैं——

कोई तन दुखी कोई मन दुखी कोई धन बिन रहत उदास ।

थोड़े थोड़े सब दुखी सुखी राम के दास ।।

पिताजी संतान रूपी अज्ञानता का त्याग कर दीजिए और सब कुछ छोड़कर वन में चले जाइए पिता आत्मदेव ने कहा बेटा वन में जाकर मुझे किस प्रकार का साधन भजन करना चाहिए यह बताने की कृपा करो गोकर्ण जी कहते हैं ।

 

इसलिए बुद्धि सम रखनी चाहिए। हाड़, मांस, रक्त, मज्जा से बने इस शरीर के प्रति मोह नहीं करनी चाहिए। आप स्त्री पुत्र का मोह छोड़कर वन में जाकर भगवत् भजन करें एवं श्री भागवत पुराण के दशम स्कन्ध का पाठ करें क्योंकि इस संसार को क्षण भंगुर समझकर प्रभु का भक्त बनकर भगवत् भजन कीजिऐ एवं दुष्टों का संग त्यागकर साधुपुरुष का संग कीजिये ।

किसी के गुण-दोष की चिन्ता मत करें क्योंकि पुत्र का पहला धर्म है कि पिता की उचित आज्ञा का पालन, दूसरा पिता की मृत्यु के बाद श्राद्ध करना, न केवल ब्राह्मणों को बल्कि सभी जाति के लोगें को भूरि-भूरि भोजन यानी तबतक खिलाना जबतक खानेवाला अपने दोनों हाथों से पत्तल को छापकर भोजन करानेवाले को रोक न दे।

और तीसरा कार्य है- गया में पिंडदान एवं तर्पण कार्य करना परन्तु ये तीनों लाभ आत्मदेवजी को धुंधकारी से नहीं मिला। गोकर्णजी कहते हैं कि हे पिताजी – इस नश्वर शरीर के मोह को त्याग कर भक्ती करते हुये वैराग से रहकर साधु पुरुषों का संग करते हुये प्रभु को भजे ।

देहेऽस्थिमांसरुधिरेऽभिमतिं त्यज त्वं जायासुतादिषु सदा ममतां विमुंच । 1

पश्यानिशं जगदिदं क्षणभंगनिष्ठं, वैराग्यरागरसिको भव भक्तिनिष्ठः ।।

श्रीमद् भा० मा० ४/७६

धर्मं भजस्व सततं त्यज लोकधर्मान् सेवस्व साधुपुरुषाञ्जहि कामतृष्णाम् ।

अन्यस्य दोषगुणचिन्तनमाशु – मुक्त्वा सेवाकथारसमहोनितरां पिब त्वं ।।

श्रीमद् भा० मा० ४/८०

हे पिताजी यह शरीर जो हाड़, मांस, रक्त, मज्जा आदि से बने है इसके प्रति मोह को त्यागकर एवं स्त्री पुत्र आदि के मोह को भी छोड़कर इस संसार को क्षणभंगुर देखते जानते हुए वैराग्य को प्राप्त कर भगवान की भक्ति में लग जायें । पुनः संसारीक व्यहारों को त्यागकर निरन्तर धर्म को करते हुए कामवासना को त्यागकर साधुपुरुषों का संग करे एवं दुसरे के गुण दोषों की चिंता को त्याग करते हुए निरन्तर भगवान की मधुरमयी भागवत कथा को आप पान करें।

इसप्रकार गोकर्ण जी ने उपरोक्त श्लोको के माध्यम से अपने पिताजी को समझाया तो वह आत्मदेवजी जंगल में जाकर भजन करके परमात्मा को प्रप्त किये। परंतु वही आत्मदेवजी ने प्रारम्भ में सन्यासी महाराज का आज्ञा नहीं माने तो संपती एवं यश को समाप्त करके भारी कष्ट को सहे। इसलिए इस कथा से उपदेश मिलता है कि साधु-महात्माओं के वचनों को, उनके उपदेशों को मानना चाहिए। अन्यथा आत्मदेव जैसा कष्ट उठाना पड़ता है।

 

धुंधुकारी की मुक्ति के लिए गोकर्ण का प्रयास

 

गोकर्णजी का उपदेश है कि भागवतपुराण के दशम स्कन्ध का पाठ किया जाए तो आत्मदेव जैसा आज भी मुक्ती मिलती है। अतः भगवत भक्तो को शास्त्रों की कथाओं को सुनकर अगली पीढ़ी हेतु उचित-अनुचित का विचार कर किसी कार्य का संकल्प और विकल्प करना चाहिए।

ऋषियों ने “जीवेम शरदः शतम्”,पश्येम शरदः शत्म’ का उद्घोष किया है। सौ वर्ष जीयें, सौ वर्ष देखें। लेकिन संसर्ग दोष, पर्यावरण दोष से सौ वर्ष जीने एवं सौ वर्ष तक देखने की कामना पूर्ण नहीं होती। आयु सौ वर्ष तक नहीं पहुँच पाती। खेती, व्यापार नौकरी, अध्ययन अध्यापन करते हुए भगवान् का भजन करना चाहिए।

 

ईश्वर का भजन करने वाले यदि मरते समय भगवान को याद नही कर पाते तो श्री कृष्ण भगवान कहते है कि उन्हें मै स्वयं याद करता हूँ एवं परमगति को प्राप्त कराता हूँ। जो भगवान् को भजता है, उसे भगवान् भजते हैं, और उनका उद्धार करते हैं। यह अकाट्य है, इसलिए स्वस्थ शरीर द्वारा भगवान् का भजन अवश्य करना चाहिए।

 

आत्मदेवजी वन में जाकर भगवान् की शरणागति की और श्रीगोकर्ण द्वारा कहे गये उपदेश का पालन करके श्रीमद्भागवत के दशम स्कन्ध का पाठ करते हुए देह को त्याग कर भगवान् श्रीकृष्ण को प्राप्त किया ।

 

इधर धुंधुकारी ने धन के लोभ में अपनी माता धुंधली को खूब पीटा और उसने पूछा कि धन कहाँ छिपाकर रखा गया है यह बता दो नहीं तो हत्या कर दूँगा । धुंधली भय से व्याकुल होकर रात में घर से भाग गयी और अंधेरे की वजह से एक कुएँ में गिरकर मर गयीं। उसे अधोगति प्राप्त हुई। इधर वह गाय के पुत्र गोकर्णजी को अपने कानों से केवल भगवत् भजन सुनना ही अच्छा लगता था । पिताजी को वन में जाकर भजन करने की सलाह देकर वे स्वयं तीर्थों के भ्रमण में चले गये थे।

अब घर पर धुंधकारी अकेले रह गया था। वह जुआ, शराब और वेश्याओं के साथ जीवन बिताने लगा । पाँच वेश्याओं को उसने अपने घर ही रख लिया था। वह चोरी से धन लाकर वेश्याओं के साथ रमण करता था । वेश्याएँ तो केवल धन के लोभ से धुंधुकारी के घर आयी थीं। एक दिन धुंधुकारी ने बहुत से आभूषण चोरी कर लाया। राजा के सिपाही चोरी का पता लगाने के लिए छानबीन करने लगे।

वेश्याओं ने सोचा कि धुंधुकारी की हत्या कर सारा धन लेकर अन्यत्र चली जायें । एक रात सोये अवस्था में वेश्याओं ने धुंधकारी के हाथ पैर बांध दिया और वे गले में फंदा डालकर उसे कसने लगीं । धुंधुकारी के प्राण निकलते नहीं देख उन सबने उसके मुँह में दहकते आग का अंगारा ढूँस दिया ।

सुधामयं वचो यासां कामिनां रसवर्धनम् । ह्रदयं क्षुरधराभां प्रियः के नामयोषिताम् ।।

स्त्रियों की वाणी तो अमृत के समान कमियों के हृदय में रस का संचार करती है किंतु ह्रदय छूरे की धार के समान तीक्ष्ण होता है भला इन स्त्रियों का कौन प्यारा होता है अन्त में धुंधुकारी तड़प-तड़प कर कष्ट सहकर मर गया। वेश्याओं ने वहीं गड्ढा खोदकर धुंधुकारी की शव को गाड़ दिया और ऊपर से मिट्टी से ढंक दिया। सारे आभूषण एवं सम्पत्ति लेकर वेश्यायें वहाँ से अन्यत्र चली गयीं । धुंधुकारी जैसों का ऐसा ही अन्त होता है।

धुंधुकारी के बारे में कुछ दिन तक किसी ने पूछताछ नहीं की। समय बीतता गया। पूछताछ करने पर वेश्याएँ बता देती कि वह कहीं कमाने चला गया है, एक वर्ष में आ जायेगा । मृत्यु के बाद धुंधुकारी बहुत बड़ा प्रेत बन गया । वह वायु रूप धारण किये रहता था । भूख-प्यास से व्याकुल होकर चिल्लाता और भटकता रहता था।

धीरे-धीरे उसकी मृत्यु की बात लोगों को मालूम हो गयी। गोकर्णजी तीर्थयात्रा से लौटकर घर आये तो कुछ दिनों के बाद धुंधुकारी की मृत्यु की बात उन्हें भी मालूम हो गयी। गोकर्ण ने धुंधुकारी को अपना भाई समझ घर पर श्राद्ध किया ।

गया में पिण्डदान एवं तर्पण किया। प्रेतशिला गया में प्रेत योनि का श्राद्ध होता है। धर्मारण्य में भी पिण्डदान किया जाता है। अतः पितरों को सद्गति के लिए सही कर्मकांडी से पिण्डदान कराना चाहिए । गोकर्ण द्वारा श्राद्धकर्म करने के बाद भी धुंधुकारी की प्रेतयोनि नहीं बदली ।

एक दिन गोकर्णजी अपने आंगन में सोये थे। धुंधुकारी बवंडर के रूप में आया । वह कभी हाथी, कभी घोड़ा और कभी भेंड़ का रूप बनाकर गोकर्ण के पास खड़ा हो जाता। गोकर्ण ने धैर्य से पूछा- “तुम कौन हो ? प्रेत हो, पिशाच हो, क्या हो ? वह संकेत से बताया कि इसी स्थान पर मारकर उसे गाड़ा गया है।

अन्यत्र ग्रन्थों में ऋषियों द्वारा कहा गया है कि गीता के ११वें अध्याय के ३६वें श्लोक का मंत्र सिद्ध कर एक हाथ से जल लेकर मंत्र पढ़कर प्रेतरोगी पर छींटा जाय तो अवरूद्ध पाणीवाला प्रेतरोगी बोलने लगता है। गोकर्ण ने भी मंत्र पढ़कर जल छिड़क दिया। जल का छींटा पड़ने से प्रेत धुंधुकारी बोलने लगा। उसने कहा- “

अहं भ्राता तवदीयोऽस्मि धुंधुकारीतिनामतः स्वकीयेनैव दोषेण ब्रह्मत्वं नाषितं मया‘।

मैं आपका भाई धुंधुकारी हू, अपने ही पाप-कर्म के कारण आज इस योनी को प्राप्त किया हू। वह धुंधकारी की व्यथा को सुनकर गोकर्ण रो पड़े। उन्होंने पूछा कि श्राद्ध करने के बाद भी तुम्हारी मुक्ति क्यों नहीं हुई तो धुंधकारी ने बताया कि मैंने इतने पाप किए हैं कि सैंकड़ों श्राद्ध से भी मेरा उद्धार नहीं हो सकता।

उसने कोई दूसरा उपाय करने की बात कही। गोकर्ण ने कहा- ‘दूसरा उपाय तो दुःसाध्य है। अभी तुम जहाँ से आये हो वहाँ लौट जाओ। मैं विचार करके दूसरा उपाय करूँगा।’ विचार करने पर भी गोकर्ण को कोई भी उपाय नहीं सूझा । पंडितों ने भी कोई राह नहीं बतायी। फिर कोई उपाय न देख गोकर्ण जी ने सूर्यदेव की आराधना करते हुए सूर्य का स्तवन कर सूर्य से ही धुंधुकारी की मुक्ति हेतु प्रार्थना की।

तुभ्यं नमो जगत्साक्षिन् ब्रूहि मे मुक्तिहेतुकम् ।

सूर्य ने कहा कि भागवत सप्ताह के पारायण से ही मुक्ति होगी और दूसरा कोई उपाय नहीं है। इस प्रकार श्रीगोकर्ण ने स्वयं भागवत कथा का सप्ताह पाठ शुरू किया। शास्त्र वचन है कि स्वयं से कोई धार्मिक अनुष्ठान करने या करवाने पर फल अच्छा होता है।

गोकर्ण द्वारा भागवत सप्ताह पारायण का आयोजन सुनकर बहुत लोग आने लगे । धुंधुकारी भी प्रेत योनि में रहकर भी कथा श्रवण के लिए स्थान खोजने लगा । वहीं एक बांस गाड़ा हुआ था । वह उसी बांस में बैठकर ( वायु रूप में) भागवत कथा श्रवण करने लगा। पहले दिन की कथा में ही बांस को एक पोर फट गया ।

एवं सप्तदिनैश्चैव सप्तगृन्थिविभेदनम् ।

इसप्रकार प्रतिदिन बांस का एक-एक पोर फटने लगा और सातवां दिन बांस का सातवां पोर फटते ही वह प्रेत धुंधुकारी ने प्रेतयोनि से मुक्ति पाकर और देवता के जैसे दिव्य स्वरूप में प्रकट होकर गोकर्ण को प्रणाम किया। इसप्रकार धुंधुकारी भागवत कथा श्रवण कर भगवान् के पार्षदों द्वारा लाये गये विमान में बैठकर दिव्य लोक में प्रस्थान कर गया ।

अत्रैव बहवः सन्ति श्रोतारो मम निर्मलाः । आनीतानि विमानानि न तेषां युग यत्कुतः ।।

गोकर्णजी ने भगवान् के पार्षदों से पूछा कि अन्य श्रोताओं को धुंधुकारी जैसा फल क्यों नहीं प्राप्त हुआ, तो पार्षदों ने कहा कि हे महाराज  धुंधुकारी ने उपवास रखकर स्थिर चित्त से सप्ताह कथा को श्रवण किया है। ऐसा अन्य श्रोताओं ने नहीं किया है। इसीलिए फल में भेद हुआ है। भगवान् के पार्षद धुंधुकारी को विमान में बैठाकर गोलोक लेकर चले गये ।

वह गोकर्णजी ने श्रावण मास में पुरे नगरवासियों के कल्याण हेतु पुनः भागवत सप्ताह का प्रारम्भ की। इस बार सभी श्रोताओं ने उपवास व्रत एवं स्थिर चित्त से भागवत सप्ताह कथा का श्रवण किया।

भगवान् विष्णु स्वयं प्रकट हो गये। सैंकड़ों विमान उनके साथ आ गये । भगवान् ने गोकर्ण को हृदय से लगाकर उन्हें अपना स्वरूप दे दिया। चारों तरफ जय-जयकार एवं शंख ध्वनि होने लगी। सभी श्रोता दिव्य स्वरूप पाकर विमानों पर सवार होकर गोलोक चले गये । भगवान् विष्णु गोकर्ण को अपने साथ विमान में लेकर गोलोक चले गये। विमान का मतलब-

“विगतं मानं यस्य इति विमानः”

यानी मान का नष्ट होना विमान है। → यह सारा प्रकरण सुनाकर सनत्कुमार ने नारदजी से कहा कि हे नारदजी ! सप्ताह कथा के श्रवण के फल अनन्त हैं, उनका वर्णन संभव नहीं। जिन्होंने गोकर्ण द्वारा कही गयी सप्ताह कथा का श्रवण किया, उसे पुनः मातृ गर्भ की पीड़ा सहने का योग नहीं मिला ।

वायु – जल पीकर, पत्ते खाकर, कठोर तपस्या से, योग से जो गति नहीं मिलती, वह सब भागवत सप्ताह कथा श्रवण से प्राप्त हो जाती है। इस कथा से यह उपदेश मिलता है कि धुंधुकारी रूपी अहंकार को गोकर्णरूपी विवेक से भागवत कथा रूपी ज्ञान द्वारा शान्त या मुक्त किया जा सकता है।

 

वह मुनीश्वर शाण्डिल्य चित्रकुट पर इस पुण्य इतिहास को पढ़ते हुए परमानन्द में मग्न रहते हैं। पार्वण श्राद्ध में इसके पाठ से पितरों को अनन्त तृप्ति होती है। प्रतिदिन इसका श्रद्धापूर्वक पाठ करने से मनुष्य पुनः जन्म नहीं लेता। यह श्रीमद्भागवत कथा वेद-उपनिषद् का सार या रस ही है जैसे वृक्षों का सार या रस ही फल होता है । अतः ऐसी श्री भागवतकथा को सुनने से गंगास्नान, जीवनपर्यन्त तीर्थ यात्रा आदि करने का जो फल प्राप्त होता है वह फल केवल श्रीमद्भागवत सप्ताह सुनने से ही प्राप्त होता है।

भागवतकार श्रीव्यासजी ने भागवत पारायण को स्वान्तः सुखाय बताते हुए पारायण के कुछ नियम बताये हैं। भागवत की उसी विधि को एक बार श्रीसनत्कुमार ने भी श्री नारद जी को सप्ताह कथा की विधि का नियम बताया था । यदि किसी व्यक्ति को स्वतंत्र रूप से भागवत की कथा को सप्ताह रूप में श्रवण की क्षमता नहीं हो तो आठ सहायकों के साथ सप्ताह कथा श्रवण का समारोह आयोजित करना चाहिए और यदि संभव हो तो भागवत कथा अकेले करायें।

 

सबसे पहले तो किसी अच्छे ज्योतिषी से शुभ मुहुर्त्त पूछ लें। पद्मपुराण में भी सप्ताह कथा श्रवण का नियम बताया गया है। पौष एवं चैत्र मास में सप्ताह कथा श्रवण नहीं करना चाहिए। क्षय तिथि में सप्ताह कथा श्रवण का प्रारम्भ नहीं करना चाहिए। द्वादशी को कथा श्रवण वर्जित है। क्योकि सूतजी का देहावसान द्वादशी तिथि को ही हुआ था ।

इसलिए द्वादशी के दिन कथा प्रारम्भ का निषेध है- सूतक लगता है। परन्तु कथा में सप्ताह कथा के बीच में द्वादसी तिथी आने पर कथा श्रवण व नही है। निष्कामी या प्रपन्न श्रीवैष्णव पर यह उपर का नियम लागू नहीं होगा क्योंकि भगवान् की कथा में तिथि- काल – स्थान का दोष नहीं लगता है। भगवान् की कथा से ही समस्त दोष दूर होते हैं। इस प्रकार पहले नान्दी श्राद्ध करके मंडप बनायें तथा श्रीफल सहित कलश स्थापन करें।

श्री भागवत जी को तथा पौराणिक आचार्यों का प्रतिदिन पूजन करें। मंडप में शालिग्राम शिला अवश्य रखें तथा हो सके तो योग्यता के अनुसार स्वर्ण की विष्णुप्रतिमा बनवाकर उसे प्रधान कलश पर रखें या सवा वित्ते लम्बे-चौड़े ताम्रपत्र को विष्णु मानकर पूजा करे। पाँच, सात या तीन या व्यवस्था के अनुसार अधिक ब्राह्मण कथा के आरम्भ से अन्त तक रखकर गायत्री तथा द्वादशाक्षरादि मंत्र का जाप करायें। एक शुद्ध श्रीवैष्णव ब्राह्मण से मूल भागवत का पाठ करावें ।

इस सप्ताह यज्ञ में निमंत्रण पत्र भेजकर देशभर में जहाँ कहीं भी अपने कुटुम्ब के लोग हों, उन्हें इस समारोह में बुलावें। ज्ञानी, महात्मा, सन्तजनों को भी विशेष रूप से निमंत्रित कर बुलावें ।

दैवज्ञं तु समाहूय मुहूर्तं प्रच्छपयत्नतः । विवाहे यादृशं वित्तं तादृशं परिकल्पयेत ।।

विवाह के समारोह में जैसी व्यवस्था होती है, उसी तरह व्यवस्था करें। तीर्थ में भागवत कथा को श्रवण करना चाहिए या वन- उपवन में कथा श्रवण समारोह आयोजित करना चाहिए। यह संभव नहीं हो तो घर में भागवत कथा श्रवण की व्यवस्था करें।

 च्यास गद्दी पर बैठे वक्ता से श्रोता का आसन नीचे होना चाहिए। किसी भी हालत में ऊँचा नहीं होना चाहिए। अन्यत्र ग्रन्थो में एक कथा आती है कि महाभारत युद्ध के आरम्भ में श्रीकृष्ण भगवान् ने कुरुक्षेत्र में रथ का सारथी बनकर अर्जुन को गीता का उपदेश दिया रथ की ध्वजा पर हनुमानजी विराजमान थे। गीता के उपदेश की समाप्ती पर अर्जुन ने कहा कि मैं आपका शिष्य हूँ, अतः पूजन करूँगा और अर्जुन ने श्रीकृष्ण भगवान् की पूजा की।

हनुमानजी प्रकट होकर बोले कि मैंने भी गीता के उपदेश को श्रवण किया है। मैं भी शिष्य हूँ पूजन करूँगा । भगवान् श्रीकृष्ण ने कहा कि आपने ध्वजा पर विराजमान होकर मुझसे उँचे स्थान से उपदेश श्रवण का अपराध किया है। इसलिए आपको पिशाच योनि मिलेगी। शाप के भय से भयभीत श्री हनुमानजी कृष्ण भगवान् की स्तुति करने लगे। भगवान् ने कहा कि आप गीता का भाष्य करेंगे तो शाप से मुक्त हो जायेंगे। हनुमानजी ने गीता पर पिशाच्य भाष्य लिखा और शाप से मुक्त हुए।

अतः श्रोता को व्यास से उँचे आसन पर कभी नहीं बैठना चाहिए। कथावाचक व्यास को सिर और दाढ़ी के बाल बना लेना चाहिए ।

व्यास गद्दी पर जो हो उसे साक्षात् व्यास रूप मानना चाहिए। सबके लिए वह पूजनीय होता है। व्यास गद्दी पर बैठनेवाला  यदि किसी को प्रणाम नहीं करे तो कोई बात नहीं । वैष्णव मानकर कथावाचक किसी को प्रणाम करता है । तो कोई हर्ज नहीं। अच्छी बात है। व्यासगद्दी पर बैठा हुआ व्यक्ति, माता-पिता एवं गुरु से भी श्रेष्ठ माना गया है। किसी की मंगल कामना एवं आशीर्वचन भी उसे नहीं करना चाहिए । वास्तव में आचार्य ब्राह्मण को ही बनाना चाहिए। कलियुग में ब्राह्मणत्व जन्म से ही प्राप्त होता है तथा इसके अलावा तप आदि से ब्राह्मणत्व पूर्ण और शुद्ध हो जाता है।

 

इस भागवत कथा को आषाढ़ में गोकर्णजी ने धुंधुकारी के निमित्त सुनाया तथा पुनः श्रावण में सभी ग्रामवासियों के लिए सुनाया। भादो में शुकदेवजी ने परीक्षित् को सुनाया, भगवान् ने ब्रह्मा को पढ़ाया, क्वार में मैत्रेय जी उद्धवजी को, कार्तिक में नारदजी ने व्यासजी को, एवं अगहन में व्यास जी ने शुकदेव जी को भागवत कथा पढ़ाया।

कथा की समाप्ति पर कीर्तन करें जैसे ही श्रोता ने यह  सुना की कथा की समाप्ति पर कीर्तन करना चाहिए प्रह्लाद जी ने करताल उठा ली उद्धव जी झांझ बजाने लगे देवर्षि नारद वीणा बजाने लगे अर्जुन राग अलापने लगे इन्द्र मृदंग बजाने लगे सनकादि कुमार जय जयकार करने लगे श्री सुखदेव जी अपने भावों के द्वारा कीर्तन के भाव प्रदर्शित करने लगे और भक्ति ज्ञान वैराग्य तीनों नृत्य करने लगे।

इतना दिव्य कीर्तन हुआ कि भगवान श्रीहरि प्रकट हो गए उन्होंने कहा सनकादि मुनियों मैं तुम्हारी कथा और कीर्तन से प्रसन्न हूं तुम्हारी जो इच्छा हो वह वरदान मांगो सनकादि मुनियों ने कहा प्रभु जहां कहीं भी भागवत की कथा हो वहां आप अपने भक्तों के साथ अवश्य पधारें भगवान ने तथास्तु कहकर अंतर्ध्यान हो गए ।

।। श्रीमद्भागवत महापुराण माहात्म्य कथा समाप्त ।।

भागवत कथा वाचक नाम लिस्ट bhagwat katha vachak list

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