भागवत कथा का पहला दिन bhagwat katha lyrics

भागवत कथा का पहला दिन bhagwat katha lyrics

अन्ततोगत्वा श्री व्यास जी के अनुरोध करने पर शुकदेवजी ने अपना भय बताया। उन्होंने गर्भ के भीतर से कहा कि उन्हें बाहर आनेपर माया से ग्रसित होने का भय है। यदि भगवान् श्रीकृष्ण द्वारा माया से ग्रसित नहीं होने का आश्वासन मिले तभी वे बाहर आयेंगे।
व्यासजी के अनुरोध से भगवान् श्रीकृष्ण ने शुकदेवजी को माया से ग्रसित नहीं होने का आश्वासन दिया, तब शुकदेवजी गर्भ से बाहर आये और जन्म लेते ही जंगल में तपस्या करने चल पडे तथा पुनः शुकदेवजी जो अपने पिता व्यास जी के बुलाने पर भी नही आये।
लेकिन व्यास जी के ब्रह्मचारी शिष्यों द्वारा गाये जाते हुए श्रीभागवतजी के मंत्रों से अपनी समाधी को तोड़ दीया अर्थात “बर्हापीडं नटवरपु….”-इस के मुख्य श्लोक को सुनकर श्लोक को पुरा-पुरा सुनकर श्रीशुकदेवजी ने समाधि तोड़ दी तथा “अहो वकी यं- से उन श्रीव्यासजी के शिष्यों के पीछे-पीछे चल दिये।
भागवत कथा का पहला दिन bhagwat katha lyrics
भागवत कथा का पहला दिन bhagwat katha lyrics
इस घटना का मुख्य कारण भागवत कथा ही है। इस पावन प्रसंग को सुनकर पुनः श्री शौनक जी ने कहा कि- “अज्ञानध्वान्तविध्वंसकोटि सूर्यसमप्रभम्
अर्थात हे सूत जी! आप अज्ञान रूपी अन्धकार का नाश करने के लिए करोड़ों सूर्यों के समान प्रकाश रूपी ज्ञान से सम्पन्न हैं तथा समस्त प्राणियों को कल्याण पहुँचाने वाले हैं। वह सूर्य का प्रकाश भले ही रात्रि में कामयाब नहीं हो परन्तु आपका ज्ञान रूपी प्रकाश हमेशा कल्या करने वाला है।

भागवत कथा का पहला दिन bhagwat katha lyrics

अतः आप श्रेष्ठ गुरु और संत तथा ज्ञानी हैं क्योंकि गुरू वही श्रेष्ठ है जो अपने को ज्ञानी या गुरू नहीं मानते हुए किसी को अज्ञानी या शिष्य नहीं समझते हुए सबमें परमात्मा का दर्शन करता है। उ
अतः हे सूतजी आप वैसे प्रकाश स्वरूप सूर्य हैं। इसलिए आप कृपया ऐसी कथा को सुनायें जो कान को मधुर लगे तथा जिससे श्रीवैष्णव लोग परमात्मा का बोध एवं भक्ति को प्राप्त कर संसार से वैराग्य को प्राप्त कर लें।
हे सूतजी ! आप यह भी बतलायें कि श्री वैष्णव लोग या भगवान् के भक्तलोग ज्ञान-वैराग्य-भक्ति को कैसे बढ़ाते हैं एवम् माया-मोह आदि से कैसे मुक्ति पाते हैं तथा इन कलियुगी जीवों को सुख-प्राप्ति के साथ-साथ भगवान् की प्राप्ति का सरल और सहज उपाय या साधन क्या है ? तथा सभी प्राणी जिस साधन का अधिकारी होकर उस उपाय से कल्याण प्राप्त कर सकें।
फिर आगे शौनकजी ने कहा कि हे सूतजी ! –
“चिन्तामणिर्लोकसुखं सुरद्रुः स्वर्गसम्पदम्। 
प्रयच्छति गुरुः प्रीतो वैकुण्ठं योगिदुर्लभम्”।। श्रीमद्भा० मा० १/८ 
अर्थात भले ही चिन्तामणि को धारण करने से संसार का सुख मिल जाए तथा कल्पवृक्ष की छाया में जाने से स्वर्ग का सुख मिल जाय परन्तु श्री गुरूदेवर्जी के प्रसन्न होने से भगवान का परमधाम श्रीवैकुण्ठ भी सहज में प्राप्त हो जाता है जो योगियों को भी दुर्लभ है, तथा जिस वैकुण्ठ को चिन्तामणि और कल्पवृक्ष भी देने में समर्थ नहीं हैं।

भागवत कथा का पहला दिन bhagwat katha lyrics

इस प्रकार सभी ऋषियों के मन के भावना को जानकर श्रीसूत जी ने कहा कि हे शौनक जी ! इस कलि के जीवों को कालरूपी काले महासर्प के डंसने के भय से मुक्ति हेतु एक दिव्य अमर कथा सुनाउँगा।

क्योंकि हम सभी प्राणी वैसे ही काल द्वारा नष्ट हो जाते हैं जैसे हवा के झोंके से पानी का बुलबुला नष्ट हो जाता है। उसी प्रकार कालरूपी सर्प के मुख में हमारा जीवन एवं जीवन का व्यवहार या सुख है।

अर्थात् जैसे एक सर्प मुख को खोलकर बैठा हो और उस सर्प के मुख में एक मेढक बैठा हो और उस मेढक के मुख में एक चिंटी बैठी हो तथा वह चींटी अपने मुख में गुड़ ली हो।

वस्तुतः वह मेढक और चिंटी तभी तक सुरक्षित हैं जबतक सर्प ने अपना मुख बन्द नहीं किया है, अन्यथा सर्प के मुख बन्द करते ही मेढक और चिंटी दोनों की सत्ता समाप्त हो जाएगी। अतः मेढक और चिंटी को सर्प के मुख बन्द करने से पहले ही बाहर निकल जाना चाहिए। उसी प्रकार जैसे-

“कालव्यालमुखग्रासत्रासनिर्णाशहेतवे। 

श्रीमद्भागवतं शास्त्रं कलौ कीरेण भाषितम्।।मा० १/११ 
अर्थात हम सभी जीव काल रूपी सर्प के मुख में हैं। अतः मृत्यु से पहले ही हम सभी प्राणी को सत्कर्म करके सुरक्षित होकर बच जाना चाहिए यानी जन्म-मरण के चक्कर से मुक्त हो जाना चाहिए। वह मृत्यु से बचने के लिए श्रीशुकदेजी ने श्रीभागवत कथा को गायन किया है।
अतः हे शौनक जी ! मैं आप सभी को सम्पूर्ण ज्ञान के सारभूत तथा जिससे माया मोह से मुक्ति प्राप्त होकर ज्ञान वैराग्य भक्ति की वृद्धि हो जाए ऐसी ही कथा को सुनाऊँगा। जो कथा अपात्रता के कारण देवताओं को भी दुर्लभ हो जाती है।

अर्थात एक बार जब राजा परीक्षित् शाप के कारण गंगातट पर वही भागवत की कथा सुनने के लिए बैठे थे तो श्री शुकदेवजी के सामने देवता लोग स्वर्ग से अमृत कलश लेकर कथा के बदले में राजा परीक्षित् को पिलाना चाहा तथा कथा को स्वयं देवताओं ने अपने कानरूपी प्याले से पीना या सुनना चाहा।

परन्तु उन देवताओं को उचित अधिकारी नहीं समझकर श्री शुकदेवजी ने डाँट कर हटा दिया तथा कथा रूपी अमृत नहीं पिलाया बल्कि पूर्ण अधिकारी राजा परीक्षित को ही श्री शुकदेवजी ने श्री मद्भागवत कथा रूपी अमृत पिलाया जिसके फलस्वरूप राजा परीक्षित् को सातवें दिन सद्यः मोक्ष प्राप्त हो गया। यानी-
“सुधाकुम्भ गृहीत्वैव देवास्तत्र समागमन् 
( अर्थात देवता लोग स्वर्ग से अमृत कलश लेकर कथा के बदले में राजा परीक्षित् को पिलाना चाहा तथा कथा को स्वयं देवताओं ने अपने कानरूपी प्याले से पीना या सुनना चाहा ) इधर राजा परीक्षित् की मुक्ति के बाद स्वयं ब्रह्माजी को बड़ा आश्चर्य हुआ तथा वह ब्रह्मा जी ने तराजु के एक पलड़े पर समस्त साधन जैसे यज्ञ, दान, तप, जप, ध्यान आदि को रखा एवं दूसरे पलड़े पर श्रीमद्भागवत महापुराण को रखा तो तराजू के भागवत वाला पलड़ा सबसे भारी सिद्ध हुआ।

भागवत कथा ऑनलाइन प्रशिक्षण केंद्र 

भागवत कथा सीखने के लिए अभी आवेदन करें-

  1. भागवत कथा/भाग-1 
  2. भागवत कथा/भाग-2
  3. भागवत कथा/भाग-3
  4. भागवत कथा/भाग-4 
  5. भागवत कथा/भाग-5 
  6. भागवत कथा/भाग-6 
  7. भागवत कथा/भाग-7 
  8. भागवत कथा/भाग-8 
  9. भागवत कथा/भाग-9 
  10. भागवत कथा/भाग-10 
  11. भागवत कथा/भाग-11
  12. भागवत कथा/भाग-12
  13. भागवत कथा/भाग-13
  14. भागवत कथा/भाग-14
  15. भागवत कथा/भाग-15
  16. भागवत कथा/भाग-16
  17. भागवत कथा/भाग-17
  18. भागवत कथा/भाग-18
  19. भागवत कथा/भाग-1 9
  20. भागवत कथा/भाग-20
  21. भागवत कथा/भाग-21
  22. भागवत कथा/भाग-22
  23. भागवत कथा/भाग-23
  24. भागवत कथा/भाग-24
  25. भागवत कथा/भाग-25
  26. भागवत कथा/भाग-26
  27. भागवत कथा/भाग-27

भागवत कथा ऑनलाइन प्रशिक्षण केंद्र 

भागवत कथा सीखने के लिए अभी आवेदन करें-

यह जानकारी अच्छी लगे तो अपने मित्रों के साथ भी साझा करें |

Leave a Comment