गायत्री ध्यान मंत्र gayatri mata dhyan mantra
ॐ आयातु वरदे देवि! त्र्यक्षरे ब्रह्मवादिनि!
गायत्रिच्छन्दसां मातः ! ब्रह्मयोने नमोऽस्तु ते ॥4॥-सं.प्र.
अर्थात्- हे वरदायिनि देवि! त्र्यक्षर स्वरूपा (अ, उ, म्) ब्रह्मवादिनी (मन्त्र प्रवक्ता), ब्रह्म की उद्भाविका गायत्री देवि! आप छन्दों (वेदों) की माता हैं! आप यहाँ आयें, आपको नमस्कार है ।
ॐ स्तुता मया वरदा वेदमाता प्रचोदयन्तां पावमानी द्विजानाम् ।
आयुः प्राणं प्रजां पशुं कीर्तिं द्रविणं ब्रह्मवर्चसम् ।
मह्यं दत्त्वा व्रजत ब्रह्मलोकम् ।
-अथर्व. 19.71.1
– अर्थात् हम साधकों द्वारा स्तुत (पूजित) हुई, अभीष्ट फल प्रदान करने वाली, वेदमाता (गायत्री) द्विजों को पवित्रता और प्रेरणा प्रदान करने वाली हैं। आप हमें दीर्घ जीवन, प्राणशक्ति, सुसन्तति, श्रेष्ठ पशु (धन), कीर्ति, धन-वैभव और ब्रह्मतेज प्रदान करके ब्रह्मलोक के लिए प्रस्थान करें ।