विद्या ददाति विनयम
विद्यां ददाति विनयं, विनयाद् याति पात्रताम्।
पात्रत्वात् धनमाप्नोति,धनात् धर्मं ततः सुखम्॥
“विद्या ददाति विनयम” यह संस्कृत श्लोक एक महत्वपूर्ण सन्देश देता है कि विद्या विनय को प्राप्त कराती है। इसका अर्थ है कि जो व्यक्ति विद्या के माध्यम से ज्ञान और सीख को प्राप्त करता है, वह शिक्षा और संश्रय की महत्वाकांक्षा से दूर रहता है।
विद्या हमें उचित मार्ग दिखाती है और हमें सच्चाई की ओर ले जाती है। विद्या ही हमें समाज में सही और गलत के बीच अंतर समझने में मदद करती है। विद्या न सिर्फ हमारे जीवन को बेहतर बनाती है, बल्कि हमें गर्व और सम्मान की भावना देती है।
हालांकि, अगर हम विद्या के साथ अहंकार में डूब जाते हैं और उसे सही दिशा में उपयोग नहीं करते हैं, तो हमारी विद्या का कोई महत्व नहीं रहता। यही कारण है कि आदमी का विनय और संवेदनशीलता भी उसकी विद्या के साथ होनी चाहिए।
विनीतता और विद्या का मेल, व्यक्ति को समर्थ और समझदार बनाता है। इससे उसकी व्यक्तित्व में संतुलन और समर्थ होता है, जिससे वह समाज में बेहतर तरीके से योगदान कर सकता है। इसलिए, विद्या ददाति विनयम के इस संदेश को अपनाकर हमें समझदार, सभ्य और समर्पित बनने का मार्ग दर्शाता है।
विद्या और विनय एक अद्भुत संयोजन हैं जो हमें एक समृद्ध और समर्पित जीवन जीने में मदद करते हैं। विद्या हमें ज्ञान का सच और गुण सिखाती है, जबकि विनय हमें समझदारी और संवेदनशीलता सिखाता है। एक समर्पित और समझदार व्यक्ति ही समाज में समर्थ होता है और उसे आगे बढ़ाने में मदद करता है।