भागवत कथा का पहला दिन PDF
Part-6
“यत्फलं नास्ति तपसा न योगेन समाधिना । तत्फलं लभते सम्यक् कलौ केशवकीर्तनात् ।।
जो फल तप, योग, ध्यान, समाधि से प्राप्त करना कठिन है वह फल सम्यक् प्रकार से कलियुग में केशवनारायण के कीर्तन (कथा) से सहज में प्राप्त होता है । इस प्रकार भगवान् के प्रसन्न करने के अनेक साधन हैं। जैसे-
उक्तं भागवतं नित्यं कृतं च हरिचिन्तनम् । तुलसी पोषणं चैव धेनूनां सेवनं समम् ।। श्रीमद् भा० मा० ३ / ३६
इन साधनों में मुख्यतः भगवान् के नाम का जप, भागवत कथा श्रवण, गाय की सेवा, तुलसी रोपने एवं सींचने से वे प्रभु अति प्रसन्न होते हैं।
भगवान् ने अपना वे भगवान् श्रीकृष्ण जब इस लीला विभूति के लीला शरीर को छोड़कर जाने लगे तो उद्धवजी ने पूछा- हे भगवन् ! आप जा रहे हैं और इधर कलियुग आनेवाला है। चारों तरफ दुष्टों, अत्याचारियों की बाढ़ होगी। सत्पुरुष नष्ट या विचलित हो जायेंगे। हे प्रभो कोई उपाय बातयें । प्रत्युत्तर में दिव्य तेज भागवत में निहित कर दिया और स्वयं उसी में प्रविष्ट हो गय। अतः यह भागवत-
“तेनेयं वांगमयी मूर्तिः प्रत्यक्षा वर्तते हरेः । सेवनाच्छ्रवणात्पाठाद दर्शनात्पापनाशिनी” श्रीमद् भा० मा० ०३ / ६२
यह भागवत स्वयं भगवान का स्वरूप है। यह भागवत साक्षात् भगवान् की मूर्ति ही है। अतः इस भागवत के सेवन, दर्शन, श्रवण, पठन से सभी प्रकार के पापों का नाश होता है।भागवत कथा का पहला दिन PDF rashi-ke-naam
आगे श्री सूतजी ने कहा कि हे शौनकजी ! जब सनकादि ऋषिगण भागवत कथा के महत्त्व का वर्णन कर रहे थे, उसी समय तरुणी भक्ति देवी –
भक्तिः सुतौ तौ तरुणौ गृहीत्वा प्रेमैकरूपा सहसाऽविरासीत् ।
श्रीकृष्ण गोविन्द हरे मुरारे नाथेति नामानि मुहुर्वदन्ती ।। श्रीमद् भा० मा० ३ / ६७
अर्थात वह तरुणी भक्ति देवी अपने दोनों तरुण पुत्रों ज्ञान और वैराग्य को लेकर उस समारोह स्थल पर भगवत् नाम कीर्त्तन करती प्रकट हो गई यानी भागवतजी की महिमा से स्वस्थ होकर वह वृन्दावन – मथुरा से हरिद्वार के पावन कथा स्थल पर पहुँच गयी । भागवत कथा का पहला दिन PDF
वह दिव्य रूप में भक्ति माता, उनके तरुण दिव्य दोनों पुत्रों-ज्ञान एवं वैराग्य को देखकर सभी लोग आश्चर्यचकित हो गये। सभी ने प्रश्न किया कि भक्ति देवी अपने ज्ञान-वैराग्य पुत्रों के साथ कैसे पहुँच गई ? सनत्कुमार ने कहा कि भक्ति देवी भागवत कथा के प्रेरस से आविर्भूत हुई हैं।
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भक्ति देवी ने सनकादि ऋषिकुमारों से कहा ‘आपने भागवत कथा रस से हमें परिपुष्ट कर दिया अब कृपया बतायें कि मैं कहाँ निवास करुँ ?’ सनकादि ऋषियों ने उन्हें सदा भक्तों के हृदय में निवास करने को कहा अत: तभी से भक्ति बराबर भक्तों के हृदय में निवास करती है। इसीलिए भक्तों के पुकारने पर भगवान चले आते हैं।
सकलभुवनमध्ये निर्धनास्तेऽपिधन्या, निवसति हृदि येषां श्रीहरेर्भक्तिरेका ।
हरिरपि निजलोकं सर्वथातो विहाय प्रविशति हृदि तेषां भक्तिसूत्रोपनद्धः ।।
श्रीमद् भा० मा० ३/७३
वह मनुष्य धन्य है जिसके हृदय में भगवान् निवास करते हैं। भक्ति देवी के आ जाने से वहाँ का वातावरण उत्साह से भर गया । सभी लोग हर्षित हो उठे और वे जोर जोर से शंखध्वनि तथा नगाड़े बजाने लगे, अबीर गुलाल उड़ाने लगे। जब भक्ति देवी आ गई तो भगवान् नारायण भी सभा मण्डप में सपरिवार दिव्य रूप में आ पहुँचे । भागवत कथा का पहला दिन PDF
इससे सभामण्डप में हर्ष एवं उल्लास सहित जय-जयकार करते हुए भक्त श्रोतागण अपने अनेक वाद्योंसहित शंख ध्वनि करने और लगे नगाड़े बजाने लगे।
श्री नारदजी भागवत कथा सप्ताह की अद्भुत महिमा से चकित हैं देवर्षि नारद ने भक्ति ज्ञान वैराग्य की तरुणावस्था को देखा तो कहने लगे मुनिस्वरों मैंने भगवान की अलौकिक महिमा को देख लिया । भागवत कथा का पहला दिन PDF
के के विशुध्दयन्ति वदन्तु मह्यं ।
अब यह बताएं इस भागवत को सुनने से कौन-कौन से लोग पवित्र हो जाते हैं सनकादि मुनीश्वरों ने कहा—–
ये मानवाः पापकृतस्तु सर्वदा सदा दुराचाररता, विमार्गगाः ।
क्रोधाग्निदग्धाः कुटिलाश्च कामिनः सप्ताहयज्ञेन कलौ पुनन्ति ते ।।श्रीमद्भा० ०४/११
जो महापापी, कुलकलंकी, क्रोधी, कुमार्गी, कुटिल तथा कामी हैं, उनका पापकर्म केवल सप्ताह भागवत कथा श्रवण करने से समाप्त हो जाता है। गोघाती, सुवर्ण चुरानेवाले, मदिरा पीनेवाले वगैरह सभी तरह के नीच कर्म करनेवाले व्यक्तियों अथवा अपने पापकर्म को करके मरकर प्रेत बना जीव भी सप्ताह श्रवण से उद्धार पा लेता है । भागवत कथा का पहला दिन PDF
यह कथा सुनकर श्रीनारदजी ने कहा कि आज तक किसी ऐसे प्रेत का उद्धार हुआ है ? अगर उद्धार हुआ है तो उसका नाम क्या था । तब फिर श्री सनत्कुमारजी ने इस संबंध में एक प्राचीन इतिहास सुनाया और कहा कि हे नारदजी ! प्राचीन काल में तुंगभद्रा नदी के तट पर अवन्ती या उत्तम नामक एक नगर था । इस नगर में आत्मदेव नामक विद्वान् ब्राह्मण रहते थे। वे आर्थिक दृष्टि से भी सम्पन्न थे। उनकी पत्नी का नाम धुंधली था । rashi-ke-naam
धुन्धुम अज्ञानं कलहं लाति या सा धुन्धली ।
जो सदा अज्ञानता के कारण लड़ाई में लगी रहती है । आत्मदेव विद्वान्, चरित्रवान्, निगमशास्त्र के वेत्ता, दयालु एवं विनम्र ब्राह्मण थे। लेकिन उनकी पत्नी धुंधली क्रूर, ईर्ष्यालु, पति से बराबर झगड़ा करनेवाली, दुराग्रही थी। वह जो कहती, उसी की पुष्टि पति से कराती । वह हमेशा तनाव की स्थिति में रहती तथा पति के साथ अपमानजनक व्यवहार करती।
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हम सभी के शरीर के अन्दर भी हमेशा आत्मा रूपी आत्मदेव एवं बुद्धिरूपी धुंधली वर्तमान हैं। यह धुंधुली बात न मानकर धुंधुली रूपी तर्क-वितर्क के द्वारा अपना ही कार्य इस शरीर से कराती है। धुंधुली भी अपने पति आत्मदेव से हर हालत में अपनी इच्छा के अनुसार ही कार्य कराती है।भागवत कथा का पहला दिन PDF
आत्मदेव सम्पन्न एवं विद्वान् होते हुए ब्राह्मणधर्म के अनुसार भिक्षाटन से ही जीवन चलाते थे। उनके पास सुख-सुविधा, समृद्धि, विद्वता, कुलीनता सब थी। लेकिन धुंधुली की कर्कशता उनके लिए भारी दुःख का कारण था और प्रतिफल यह की आत्मदेवजी को कोई संतान नहीं थी ।
पुत्र नहीं होने से आत्मदेव दुःखी रहते । उनको भारी चिंता सताती । वे बराबर सोचते- उनके धराधाम से जाने पर उनका उत्तराधिकारी कौन होगा ? पितरों को तर्पण कौन करेगा ? निःसन्तान होने के चलते लोग उनपर ताना कसते। भागवत कथा का पहला दिन PDF
इन समस्याओं से उत्पीड़ित होकर आत्मदेव एक दिन आत्महत्या के लिए चल पड़े। वे वन में एक सरोवर के पास पहुँचे । पानी पीकर वहीं आत्महत्या करने की बात सोचने लगे। तब तक उस सरोवर के पास संध्या वन्दन करने के लिए एक संन्यासी महाराज पहुँच गये। आत्मदेव उनके चरणों में गिरकर अपना दुखड़ा रोने लगे कि उनका दुःख दूर करें अन्यथा वे आत्महत्या कर लेंगे। भागवत कथा का पहला दिन PDF
संन्यासी महाराज ने उनके दुःख का कारण पूछा तो बोले कि उन्हें पुत्र प्राप्ति का वरदान दें और नहीं तो वे उसी समय सरोवर में डूबकर आत्महत्या कर लेंगे । सन्यासी महाराज के सामने आत्मदेव एक समस्या के रूप में खड़े हो गये । इन्होनें आत्मदेवजी को उपाय बताया कि आप गृहस्थ आश्रम को छोड़कर सन्यास ग्रहण कर लें । भागवत कथा का पहला दिन PDF
आत्मदेवजी ने निवेदन किया कि गृहस्थ आश्रम का सरस जीवन छोड़कर सन्यास ग्रहण करना उनसे सम्भव नहीं। सन्यास आश्रम नीरस एवं उनके लिए कठिन है । सन्यासी महाराज ने आत्मदेव का ललाट देखा और बताया कि अगले सात जन्मों तक आपको पुत्र रत्न पाने या कोई संतान पाने का योग नहीं है।
सप्तजन्मावधि तव पुत्र नैव च नैव च ।
लेकिन आत्मदेव फिर पुत्र प्राप्ति के आशीर्वाद के लिए आग्रह करते रहे और अपनी आत्महत्या के हठ पर अड़े रहे।
सन्यासी महाराज ने कहा कि पुत्र का योग नहीं होने पर साधु-महात्माओं की आज्ञा को त्याग कर यदि किसी को भी जो पुत्र होता है, वह पिता के लिए दुःख का कारण हो जाता है। भागवत कथा का पहला दिन PDF
ऐसे पुत्र से पिता का उद्धार नहीं होता बल्कि कुल का नाश हो जाता है। लेकिन सन्यासी महाराज के बार-बार समझाने के बाद भी आत्मदेव पुत्र प्राप्ति के आग्रह से नहीं हटे । आत्मदेव ने कहा कि सन्यासी महाराज हमने सुना है कि-
“दानेन पाणिर्न कंकणेन श्रोत्रम् श्रुतेनैव न कुण्डलेन,
विभाति कायः करुणापराणाम् परोपकारेण न चन्दनेन्
हाथ की शोभा दान से है केवल कंगन पहनने से नही है। इसीप्रकार कान की शोभा भगवत कथा सुनने से है केवल कुण्डल से नही । इसीतरह शरीर की शोभा परोपकार, करुणा आदि से है केवल शरीर सुन्दरता से नही । अतः आप जैसे संत चंदन के समान संसार के परोपकार के लिए ही होते हैं। rashi-ke-naam
‘परोपकराय सताम् विभूतयः”
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