सत्संग के दृष्टांत कहानियां bhagwat katha ke drishtant pdf
गोपियों का अनंत प्रेम
एक बार की बात है भगवान श्री कृष्ण द्वारिकाधीश बन जब द्वारिकापुरी में थे तब प्रेम की बात आई और प्रभु के मुख से निकल गया कि ब्रज की गोपियों का प्रेम अनंत है ।
रुकमणी आदि रानियां बोलीं क्या प्रभु वे गोपियां हमसे भी ज्यादा आपको प्रेम करती हैं, भगवान ने कहा उनके जैसा प्रेमी कोई नहीं है ।
रुक्मणी आदि रानी यह बात मानने को तैयार नहीं हुई तब भगवान श्रीकृष्ण ने कहा देवी समय आने दो आपको उनके प्रेम का पता अपने आप चल जाएगा ।
जब कुछ दिन व्यतीत हो गए तो प्रभु ने पेट दर्द का बहाना किया अब रुक्मणी आदि रानियां खूब परेशान कई हकीम वैध आए पर प्रभु का पेट दर्द नहीं बंद हुआ, हो भी कैसे औषधि से ठीक, प्रभु तो गोपियों का अनंत प्रेम रुकमणी आदि रानियों के सम्मुख लाना चाहते थे ।
भगवान ने कहा देवी अब एक ही उपाय है जिससे मेरे पेट का दर्द खत्म हो सकता है वह यह है कि आप अपने पैरों के नीचे की मिट्टी मेरे मुख में डाल दो तब मैं स्वस्थ हो जाऊंगा।
रुकमणी आदि रानियों ने कहा ना प्रभु यह आप क्या बोल रहे हैं आप हमारे स्वामी हैं हम ऐसा घोर पाप कभी नहीं करेंगी ।
अरे ऐसा करने पर तो हमें करोड़ों वर्षों तक नरक भोगना पड़ेगा, हम यह कार्य कदापि नहीं कर सकती ।
तब भगवान श्रीकृष्ण यही बात एक दूत के द्वारा ब्रज में गोपियों को समाचार भेजवाया जैसे ही गोपियों ने सुना कि हमारे श्यामसुंदर कष्ट में हैं दुखी हो गई।
और उस दूत की बात सुनकर वे गोपिया तुरंत अपने पैरों के नीचे की मिट्टी उस दूत को देते हुए कहा कि भाई शीघ्र जाओ और यह मिट्टी हमारे श्याम सुंदर को खिला दो जिससे वह सुखी हो जाएं।
भले इस कार्य के लिए विधाता हमें लाखों करोड़ों वर्षों तक नर्क में भेजें हमें नर्क जाने से डर नहीं लगता , बस हमारे श्यामसुंदर को कभी कष्ट ना हो । ऐसा अनंत प्रेम जब रानियों ने सुना मन ही मन गोपियों को प्रणाम किया ।
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