Tuesday, September 17, 2024
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संपूर्ण हवन विधि मंत्र havan vidhi mantra

संपूर्ण हवन विधि मंत्र havan vidhi mantra

संपूर्ण हवन विधि मंत्र havan vidhi mantra
संपूर्ण हवन विधि मंत्र havan vidhi mantra
अथ होमप्रकरणम्
हवन सामग्री – हवन के लिए सबसे अधिक तिल, तिल से आधे चावल, चावल से आधे जौ, जौ से आधी शक्कर और घी इतना होवे कि सब सामग्री , उसमें मिल जावे । मेवा यथाशक्ति लें।
 
  कुशकण्डिका

यजमान या आचार्य अग्नि (होम वेदी) के दक्षिण में ब्रह्मा को आसन पर बैठाकर त्वं ब्रह्मा भव ऐसा कहे तथा ब्रह्मा भवामि कहे । 
 
उत्तर में प्रथम कुशपत्र के आसन पर प्रणीता पात्र रखकर ब्रह्मा की आज्ञा से उसमें जल भरकर कुशा से ढक दे। फिर ब्रह्मा का मुख देखकर द्वितीय आसन पर रखें। 
 
अग्नि के चारों ओर एक-एक कुशा बिछाकर उत्तर दिशा में होम के लिए उपयोगी सभी सामग्री क्रमशः रख लें।

जैसे – कुशा पवित्रछेदनार्थ, प्रोक्षणीपात्र, आज्यस्थाली (घृतपात्र), चरुस्थाली’ पाँच सम्मार्जन कुशा, सात उपयमन कुशा, तीन समिधाएँ, स्रुवा, घी, पूर्णपात्र, नवग्रहसमिधा और हवनसामग्री आदि उपयोगी वस्तुएँ। 

 
दो कुशाओं के ऊपर तीन कुशा रखकर दो कुशाओं को जड़ से घुमाकर अनामिका और अंगुष्ठ से तीन कुशाओं को तोड़कर त्याग दें तथा दो को ग्रहण कर प्रणीता से जल लेकर तीन बार प्रोक्षणी में डालें। 
 
उस जल को कुशपवित्र से तीन बार उछालें। प्रोक्षणी को बायें हाथ में लेकर दाहिने से उस प्रोक्षणी जल को ऊपर उछालें। प्रणीता जल से प्रोक्षणी का प्रोक्षण करें। फिर प्रोक्षणी जल से सभी वस्तुओं का प्रोक्षण करें। 
 
प्रोक्षण के पश्चात् प्रोक्षणी को असञ्चर स्थान (प्रणीता और अग्नि के बीच) में रखें। घृतपात्र में घी डालकर अग्नि पर चढ़ावें । जलती हुई लकड़ी को हवन वेदी के चारों ओर सीधा घुमाकर पुनः उलटा घुमावें।

तत्पश्चात् अधो मुख स्रुवा को अनि में तपाकर सम्मार्जन कुशा के अग्रभाग से मुख का तथा मूल से बाहरी भाग का मार्जन कर प्रणीता जल से प्रोक्षण करें तथा संमार्जन कुशा अग्नि में छोड़ दें। 

 
अग्नि से घृतपात्र को उतार कर घी को कुशा से उछालें तथा उसमें देखें कि कुछ गिरा हो तो निकाल कर कुशा से प्रोक्षणी जल को उछालें। सात उपयमन कुशा बायें हाथ में ले खड़े होकर दाहिने हाथ से घी में भीगी हुई तीन समिधाएँ मन से अग्नि में छोड़ें। 
 
दाहिने हाथ में प्रोक्षणी लेकर जल छोड़ते हुए अग्नि के चारों ओर सीधा घुमाकर पुनः उल्टा घुमावें । कुश पवित्र को प्रणीता में रख दाहिना घुटना झुकाकर, ब्रह्मा से कुशा या मौली से संबन्ध कर, जलती हुई अग्नि में निम्नलिखित मन्त्रों से घी की आहुति दें । आहुति से बचे हुए घी का बिन्दु इदं न मम कहकर प्रोक्षणी में डालें-

ॐ प्रजापतये स्वाहा ( मन में बोलकर), इदं प्रजापतये न मम ॥
ॐ इन्द्राय स्वाहा । इदमिन्द्राय न मम ॥ 

ॐ अग्नये स्वाहा । इदमग्नये न मम ॥ 
ॐ सोमायस्वाहा । इदं सोमाय न मम । इत्याघाराज्यभागौ ॥

गणेश जी को एक आहुति दें-

ॐ गणानान्त्वा० स्वाहा ॥

नवग्रहों को नवग्रह समिधाओं से आहुति दें। 

ॐ आ कृष्णेन० स्वाहा ॥ 
ॐ इमन्देवा० स्वाहा॥ 
ॐ अग्निर्मूर्द्धा० स्वाहा ॥
ॐ उद्बुध्यस्वाग्ने० स्वाहा॥
ॐ बृहस्पते० स्वाहा॥ 
ॐ अन्नात्परिस्स्रुतो० स्वाहा ॥ 
ॐ शन्नो देवी० स्वाहा ॥ 
ॐ कया नश्चित्र० स्वाहा ||
ॐ केतुं कृण्वन्न० स्वाहा ॥

तत्पश्चात् आवाहित देवों तथा प्रधान देव की आहुति देकर, अग्नि पूजन करके स्विष्टकृद् होम तथा प्रायश्चित्त नवाहुति करें-

ॐ अग्नये स्विष्टकृते स्वाहा । इदं अग्नये स्विष्टकृते न मम ।।
ॐ भूः स्वाहा। इदमग्नये न मम ।। 

ॐ भुवः स्वाहा । इदं वायवे न मम ।। 
ॐ स्वः स्वाहा। इदं सूर्याय न मम ।।
 
ॐ त्वन्नोऽअग्ने वरुणस्य विद्वान्देवस्यहेडो ऽअवयासिसीष्ठाः । 
यजिष्ठो वह्नितमः शोशुचानो विश्वाद्वेषा गुंग सि प्रमुमुग्ध्यस्मत् स्वाहा ॥ 
इदमग्नीवरुणाभ्यां न मम ।।

ॐ सत्वन्नोऽअग्नेऽवमोभवोतीनेदिष्ठोऽ अस्याऽउषसो व्युष्टौ । 
अवयवनो वरुण गुंग रराणोवीहिमृडीक गुंग सुहवोन एधि स्वाहा || 
इदमग्नीवरुणाभ्यां न मम ।।

ॐ अयाश्चाग्नेऽस्यनभिशस्तिपाश्च सत्वमित्वमयाऽअसि । 
अयानो यज्ञं वहास्ययानो धेहि भेषज गुंग स्वाहा ॥ 
इदमग्नये असे न मम ।।

ॐ ये ते शतं वरुण ये सहस्त्रं यज्ञियाः पाशा विततामहान्तः । 
तेभिन्नो अद्य सवितोत विष्णुर्विश्वे मुञ्चन्तु मरुतः स्वर्काः स्वाहा ॥ 
इदं वरुणाय सवित्रे विष्णवे विश्वेभ्यो देवेभ्यो मरुद्भ्यः स्वर्केभ्यश्च न मम ।।

ॐ उदुत्तमं वरुणपाशमस्मदवाधमं विमध्यमं श्रथाय । 
अथावयमादित्यव्रते तवानागसोऽअदितये स्याम स्वाहा ॥ 
इदं वरुणायादित्यायादितये च न मम ।।

ॐ प्रजापतये स्वाहा। इदं प्रजापतये न मम ॥

  पूर्णाहुतिहोम:

स्रुचि (पात्र) में घी और सामग्री से युक्त नारियल या सुपारी लेकर पूर्णाहुति करें-

ॐ मूर्द्धानन्दिवोऽअरतिंपृथिव्या वैश्वानरमृतऽआजातमग्निम्। 
कवि गुंग सम्म्राजमतिथिं जनानामासन्नापात्रञ्जनयन्तदेवाः॥ 
 
पूर्णादर्व्वि परापत सुपूर्णा पुनरापत । 
व्वस्नेव विक्रीणावहाऽइषमूर्जं गुंग शतक्रतो स्वाहा || 
इदमग्नये वैश्वानराय वसुरुद्रादित्येभ्यः शतक्रतवे सप्तवते अग्नये अद्भ्यश्च न मम।।
 
ॐ वसोः पवित्रमसि शतधारं वसोः पवित्रमसि सहस्त्रधारम् । 
देवस्त्वा सविता पुनातु वसोः पवित्रेण शतधारेण सुप्वा कामधुक्षः स्वाहा॥ 
इदमग्नये वैश्वानराय न मम।।

  भस्मधारणम्

ॐ त्र्यायुषं जमदग्नेः ललाट में। 

कश्यपस्य त्र्यायुषम् ग्रीवा में । 
यद्देवेषु त्र्यायुषम् दक्षिण और वाम भुजा में। 
तन्नोऽअस्तुत्र्यायुषम् हृदय में।

प्रोक्षणी पात्र में रखा हुआ घी यजमान को खिलाकर आचमन करायें । तत्पश्चात् ब्रह्मा के लिए पूर्णपात्र दान निम्न संकल्प बोलकर करें-

अद्य कृतस्य… कर्मणः सांगतासिद्धये तत्सम्पूर्ण फलप्राप्तये च इदं पूर्णपात्रं. सदक्षिणाकं ब्रह्मणे तुभ्यमहं संप्रददे । द्यौस्त्वा ददातु पृथिवी त्वा प्रतिगृह्णातु ||
इसके बाद प्रणीता को भूमि पर उलटा कर उपयमन कुशाओं से प्रणीता जल को यजमान के शिर पर छिड़कें-

ॐ आपः शिवा शिवतमाः शान्ताः शान्ततमास्तास्ते कृण्वन्तु भेषजम् ॥
 
उपयमन कुशाओं को अग्नि में छोड़ दें। यजमान दक्षिणा संकल्प करे-

अद्य कृतस्य अमुककर्मणः साङ्गतासिद्ध्यर्थं तत्सम्पूर्णफलप्राप्त्यर्थं च आचार्यादिभ्यः मनसोद्दिष्टां दक्षिणां दातुमहमुत्सृजे ॥
  ब्राह्मणभोजनसंकल्पः  

अद्य कृतस्य अमुककर्मणः साङ्गतासिद्ध्यर्थं यथोपन्नेन अन्नेन यथासंख्यकान् ब्राह्मणान् भोजयिष्ये ॥
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