संस्कृत नीति श्लोक अर्थ सहित sanskrit niti shlok arth sahit
आदौ माता गुरोः पत्नी ब्राह्मणी राजपत्निका।
धेनुर्धात्री तथा पृथ्वी सप्तैता मातरः स्मृताः॥
अपनी जननी, गुरु-पत्नी, ब्राह्मण-पत्नी, राजपत्नी, गाय, धात्री (दूध पिलानेवाली दाई) और पृथ्वी-ये सात माताएँ कही गयी हैं ॥
आपदां कथितः पन्था इन्द्रियाणामसंयमः।
तज्जयः सम्पदा मार्गो येनेष्टं तेन गम्यताम्॥
इन्द्रियोंको वशमें नहीं लाना सब विपत्तियोंका मार्ग बतलाया गया है और इनको जीत लेना सब प्रकारके सुखोंका उपाय है। इन दोनोंमें जो मार्ग उत्तम है उसीसे गमन करना चाहिये ॥
संस्कृत नीति श्लोक अर्थ सहित sanskrit niti shlok arth sahit
समुद्रावरणा भूमिः प्राकारावरणं गृहम्।
नरेन्द्रावरणो देशश्चरित्रावरणाः स्त्रियः॥
पृथ्वीकी रक्षा समुद्रसे, गृहकी रक्षा चहारदिवारीसे, देशकी रक्षा राजासे और स्त्रीकी रक्षा उत्तम चरित्रसे है ॥
परोपकरणं येषां जागर्ति हृदये सताम्।
नश्यन्ति विपदस्तेषां सम्पदः स्युः पदे पदे॥
जिन सज्जनोंके मनमें सदा परोपकार करनेकी इच्छा बनी रहती है, उनकी विपत्तियाँ नष्ट हो जाती हैं और उन्हें पग-पगपर सम्पत्ति प्राप्त होती है ॥
नास्ति विद्यासमं चक्षुर्नास्ति सत्यसमं तपः।
नास्ति रागसमं दुःखं नास्ति त्यागसमं सुखम्॥
विद्याके समान नेत्र नहीं, सत्यके समान तप नहीं, [संसारकी वस्तुओंमें] आसक्तिके समान दु:ख नहीं और त्यागके समान सुख नहीं है।
संस्कृत नीति श्लोक अर्थ सहित sanskrit niti shlok arth sahit
पादपानां भयं वातात् पद्मानां शिशिराद्भयम्।
पर्वतानां भयं व्रजात् साधूनां दुर्जनाद्भयम्॥
वृक्षोंको आँधीसे, कमलोंको ओससे, पर्वतोंको वज्रसे और साधुओंको दुर्जनसे डर है ॥
सुभिक्षं कृषके नित्यं नित्यं सुखमरोगिणः।
भार्या भर्तुः प्रिया यस्य तस्य नित्योत्सवं गृहम्॥
जो कृषिकर्म करता है, उसके अन्नका अभाव नहीं रहता, जो नीरोग है वह सदा सुखी रहता है और जिस स्वामीकी स्त्री उसको प्यारी है उसके घरमें सदा आनन्द रहता है ।
संस्कृत नीति श्लोक अर्थ सहित sanskrit niti shlok arth sahit
प्रथमे नार्जिता विद्या द्वितीये नार्जितं धनम्।
तृतीये नार्जितं पुण्यं चतुर्थे किं करिष्यति॥
जिसने प्रथम अवस्था (लड़कपन) में विद्या नहीं पढ़ी, दूसरी (युवा) अवस्थामें धन नहीं कमाया और तीसरी (प्रौढ़) अवस्थामें धर्म नहीं किया; वह चौथी अवस्था (बुढ़ापे) में क्या करेगा? ॥
क्षमया दयया प्रेम्णा सूनृतेनार्जवेन च।
वशीकुर्याज्जगत् सर्वं विनयेन च सेवया॥
क्षमा, दया, प्रेम, मधुर वचन, सरल स्वभाव, नम्रता और सेवासे सब संसारको वशमें करना चाहिये ॥
संस्कृत नीति श्लोक अर्थ सहित sanskrit niti shlok arth sahit
अजरामरवत् प्राज्ञो विद्यामर्थञ्च चिन्तयेत्।
गृहीत इव केशेषु मृत्युना धर्ममाचरेत्॥
बुद्धिमान्को उचित है कि अपनेको अजर और अमर समझकर विद्या एवं धनका उपार्जन करे और मृत्यु केश पकड़े खड़ी है-यह सोचकर धर्म करे ॥