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shrimad bhagwat katha in hindi
( अथ नवमो अध्याय: )
भगवान श्री कृष्ण ने देखा कि बहुत समझाने के बाद भी युधिष्ठिर का शोक दूर नहीं हो रहा है बे उन्हें लेकर पितामह भीष्म के पास गए, अन्य ऋषि गण भी वहां आए पितामह ने ऋषियों को तथा भगवान को प्रणाम किया |
पांडवों को भगवान की महिमा बताई कि जिन्हें वे ममेरा भाई समझ रहे हैं, वह साक्षात परमात्मा है | महाभारत के नाम पर जो कुछ हुआ वे सब उनकी लीला मात्र थी पितामह ने भगवान की स्तुति की—
श्लोक-1.9.33 shrimad bhagwat katha in hindi
जिनका शरीर त्रिभुवन सुंदर है श्याम तमाल के समान सांवला है , जिन पर सूर्य के समान पीतांबर लहरा रहा है , मुख पर घुंघराले अलकें लटकी हैं, उन अर्जुन सखा श्री कृष्ण में मेरी निष्कपट प्रीति हो इस प्रकार स्तुति करते हुए उनके प्राण परमात्मा मैं विलीन हो गये, वे शांत हो गए आकाश में बाजे बजने लगे फूलों की वर्षा होने लगी पांडव हस्तिनापुर लौट आए तथा युधिष्ठिर धर्म पूर्वक राज्य करने लगे |
इति नवमो अध्यायः
अथ दसमो अध्यायः
द्वारिका गमन– पितामह भीष्म से ज्ञान प्राप्त कर युधिष्ठिर समस्त पृथ्वी का धर्म पूर्वक एक छत्र राज्य करने लगे महाभारत का उद्देश्य पूर्ण कर भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर से द्वारिका चलने की आज्ञा ली, सबने अश्रु पूरित नेत्रों से भगवान को विदा किया |
अर्जुन सारथी बन रथ में बैठा भगवान को पहुंचाने चले, रास्ते में स्थान स्थान पर उनका स्वागत हुआ जहां रात्रि हो जाती वही स्नान संध्या कर विश्राम करते |
इति दशमो अध्यायः
shrimad bhagwat katha in hindi
अथ एकादशो अध्यायः
द्वारका में श्री कृष्ण का राजोचित स्वागत–
द्वारका में प्रवेश करते समय भगवान ने अपना पाञ्चजन्य शंख बजाया, शंख की ध्वनि सुनते ही द्वारका बासी भगवान के दर्शनों के लिए दौड़ पढ़े और बाहर भगवान की अगवानी करने आए और अनेक भेंट रखकर भगवान का भव्य स्वागत किया | सर्वप्रथम भगवान अपने माता-पिता से मिले फिर अपने परिवार जनों से मिले |
इति एकादशो अध्यायः
अथ द्वादशो अध्यायः
परीक्षित का जन्म– अश्वत्थामा के अस्त्र से अपनी मां के गर्भ में ही जब परीक्षित जलने लगे तब गर्भ में ही रक्षा करते हुए भगवान के दर्शन उन्हें हो गए थे i एक अगुंष्ट मात्र ज्योति उनके चारों ओर घूम रही शुभ समय पाकर वे गर्भ से बाहर आए |
युधिष्ठिर बहुत प्रसन्न हुए उन्होंने ब्राह्मणों को बुलवाकर स्वस्तिवाचन करवाया और बालक के भविष्य को पूछा ब्राह्मणों ने बताया बड़ा तेजस्वी होगा इसका नाम विष्णुरात होगा इसे परीक्षित के नाम से भी जानेंगे |
श्लोक-1.12.30 shrimad bhagwat katha in hindi
ब्राह्मणों को दक्षिणा देकर विदा किया |
इति द्वादशो अध्यायः
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अथ त्रयोदषो अध्यायः
विदुर जी के उपदेश से धृतराष्ट्र गांधारी का वन गमन– विदुर जी तीर्थ यात्रा कर हस्तिनापुर लौट आए उन्हे देख युधिष्ठिर बहुत प्रसन्न हुए पांचों भाई पांडव कुंती द्रोपती धृतराष्ट्र गांधारी भी उन्हें देखकर बड़ा प्रसन्न हुए | विदुर जी ने अपनी तीर्थ यात्रा के समाचार सुनाएं, वे धृतराष्ट्र से बोले–
श्लोक-1.13,21-22 shrimad bhagwat katha in hindi
आपके पिता भ्राता पुत्र सगे संबंधी सभी मारे जा चुके हैं आप की अवस्था भी ढल चुकी पराए घर में पड़े हुए हैं , यह जीने की आशा कितनी प्रबल है जिसके कारण भीम का दिया हुआ टुकड़ा खाकर कुत्ते के समान जीवन जी रहे हैं ,निकलो यहां से | वन में जा कर भगवान का भजन करो |
यह सुनते हि धृतराष्ट्र गांधारी विदुर के साथ रात्रि में वन में चले गए , आज जब युधिष्ठिर को पता चला तो वह बड़े दुखी हुए वन में धृतराष्ट्र ने अपने प्राण त्याग दिए गांधारी सती हो गई |
इति त्रयोदशो अध्यायः
shrimad bhagwat katha in hindi
अथ चतुर्दशो अध्यायः
अपशकुन देखकर महाराज युधिष्ठिर का शंका करना अर्जुन का द्वारका से लौटना— एक समय अर्जुन भगवान से मिलने द्वारका गए थे, बहुत समय बाद भी जब वे नहीं लौटे तो युधिष्ठिर को अपशकुन होने लगे दिन में उल्लू बोल रहे हैं , उल्कापात हो रहे हैं, गाय दूध नहीं देती, इन्हें देख वे बड़े चिन्तित हुए लगता हैं, बहुत खराब समय आ गया है लगता है हमारे ऊपर कोई बड़ी विपत्ति आने वाली है |
इस प्रकार युधिष्ठिर चिंतित हो रहे थे इतने में कांति हीन होकर नेत्रों से अश्रु पात्र गिराते हुए अर्जुन उनके चरणों में अ पड़े हैं, उसकी यह दशा देख युधिष्ठिर ने पूछा द्वारका में सब कुशल है से हैं ना, और तुम कुशल हो , तुम कोई पाप करके तो नहीं आये हो श्री हीन कैसे हो गए हो |
इति चतुर्दशो अध्यायः
shrimad bhagwat katha in hindi
अथ पंचदशो अध्यायः
कृष्ण विरह व्यथित पाण्डवों का परिक्षित को राज्य देकर स्वर्ग सिधारना– इस प्रकार युधिष्ठिर के पूछने पर अर्जुन बोले– हे भाई भगवान श्री कृष्ण हमें छोड़ कर चले गए इसलिए मैं तेज हीन हो गया, अब हमारा कोई नहीं रहा |
भगवान के गोलोक धाम जाने की बात सुनकर पांडवों ने स्वर्गारोहण का निश्चय किया उन्होंने परिक्षित को राज्य सिहांसन पर बिठालकर रिमालय की ओर प्रस्थान किया- केदारनाथ, बद्रीनाथ होते हुए सतोपथ पहुंचे वहीं से क्रमशः द्रौपदी, सहदेव, नकुल ,अर्जुन, भीम गिरते गए पर किसी ने भी मुडकर नहीं देखा |
युधिष्ठिर सदेह स्वर्ग को चले गये, विदुर ने भी प्रभास क्षेत्र में अपना शरीर छोड़ दिया, पांडवों की यह महाप्रयाण कथा बडी पुण्य दायी है |
इति पंचदशो अध्यायः
shrimad bhagwat katha in hindi
(अथ षोडषो अध्याय: )
परीक्षित की दिग्विजय तथा धर्म और पृथ्वी का संवाद— पांडवों के महाप्रयाण के पश्चात परीक्षित धर्म पूर्वक राज्य करने लगे उन्होंने कई अश्वमेघयज्ञ किए | जब दिग्विजय कर रहेथे तब उनके शिविर के पास एक अद्भुत घटना घटी वहां धर्म एक बैल के रूप में एक पैर से घूम रहा था वहां उसे गाय के रूप में पृथ्वी मिली जो दुखी होकर रो रही थी |
धर्म ने पृथ्वी से पूछा कल्याणी तुम क्यों रो रही हो तुम्हारा स्वामी कहीं दूर चला गया है अथवा तुम मेरे लिए दुखी हो रही हो कि मेरा पुत्र एक पैर से है |
पृथ्वी बोली धर्म तुम जानते हो कि जब से भगवान गोलोक धाम गए हैं तुम्हारे एक ही चरण रह गया संसार कलियुग की कुदृष्टि का शिकार हो गया है बस इसी का मुझे दुख है |
इति षोडशो अध्यायः
shrimad bhagwat katha in hindi
( अथ सप्तदशो अध्यायः )
महराजा परीक्षित द्वारा कलियुग का दमन- दिग्विजय करते हुए परीक्षित जब पूर्व वाहिनी सरस्वती के तट पर पहुंचे तो देखा कि एक राजवेश धारी शूद्र गाय बैल के एक जोड़े को मार रहा है !
उसे परीक्षित ने ललकारा और कहा ठहर दुष्ट तुझे मैं अभी देखता हूं , हाथ में तलवार ली राजा को आते देख कलियुग बोला – हे राजन् मैं जहां जहां जाता हूं आप सामने दिखते हैं कृपया मुझे रहने को स्थान बताइए |
राजा ने कहा—–
श्लोक-1.17.38-39/shrimad bhagwat katha in hindi
मदिरा पान, जुआ, स्त्री संग,हिंसा इन चार स्थानों के बाद और मागने पर स्वर्ण में भी स्थान दे दिया |
इति सप्तदशो अध्याय: