bhagwat katha hindi mein श्रीमद् भागवत कथा
bhagwat katha hindi mein श्रीमद् भागवत कथा
विदुरजी जानते थे कि थोड़ा अपराध करने से उन्हें दासीपुत्र के रूप में जन्म लेना पड़ा है। वे कौरवों के अनाचार में किसी तरह शामिल होना नहीं चाहते थे तथा उन्हें नेक सलाह देते थे, जो दुर्योधन तथा कौरवों को अच्छा नहीं लगता था।
एक दिन एकान्त में विदुरजी ने धृतराष्ट्र से कहा कि- हे भाई धृतराष्ट्र आपकी मृत्यु होने वाली है। मृत्यु को कोई रोकनेवाला नहीं। जिन पांडवों को आपने अग्नि में जलाकर मारने का षड्यंत्र किया, उन्हीं की सेवा स्वीकार कर रहे हैं।
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सुबह होने पर धर्मराज अपने चाचा-चाची को प्रणाम करने गये। वहाँ धृतराष्ट्र एवं गान्धारी को नहीं पाकर बहुत दुःखी हुए। धर्मराज ने संजय से पूछा कि मेरे नेत्रहीन माता-पिता नहीं हैं।
धीर पुरुष काल-चक्र के अनुसार संसार की व्यवस्था देखकर दुःखी नहीं होते। काल मनुष्य को संयोग और वियोग कराता है। जो स्वयं कालग्रसित है, वह दूसरों की रक्षा कैसे कर सकता है? यानी आपके बिना वे कैसे जीवित होंगे, इसकी चिन्ता छोड़ दें।”
वे धृतराष्ट्र गांधारी के साथ हिमालय में ऋषियों के आश्रम पर तपस्या कर रहे हैं। वे केवल जल पीकर रात दिन भगवत् भजन कर रहे है। उन लोगों ने इन्द्रियों को जीत लिया है। आज से पूर्व दिन वे ध्यान करते हुए शरीर त्यागकर भगवत धाम में जानेवाले हैं।