bhagwat katha hindi story भागवत कथा

Share This Post

bhagwat katha hindi story भागवत कथा

‘सत्कर्मसूचको नूनं ज्ञानयज्ञः स्मृतो बुधैः । श्रीमद्भागवतालापः स तु गीतः शुकादिभिः ।।
श्रीमद् भा० मा० २/६०

अर्थात सत्कर्म का अर्थ विद्वानों ने ज्ञानयज्ञ कहा है। ज्ञानयज्ञ को ही भागवत कथा कहते हैं। भागवत कथा की ध्वनि से ही कलि के दोष एवं दैहिक दैविक, भौतिक कष्टों का निवारण हो जाता है। भक्ति की प्राप्ति होती है और ज्ञान-वैराग्य का प्रचार एवं प्रसार होता है।

नारदजी द्वारा जिज्ञासा करने पर कि वेद, उपनिषद्, वेदान्त एवं गीता में भी भागवत कथा ही वर्णित है, फिर अलग से भागवत कथा क्यों ? सनकादि ऋषियों ने बताया कि जिस तरह आम्रवृक्ष में आम का रस जड़ से पत्ते तक विद्यमान रहता है, लेकिन उसका फल ही आम का रस देता है।
उसी तरह वेद, वेदान्त, उपनिषद् में व्याप्त भक्ति रस आम के वृक्ष के सदृश हैं या दूध में घी की तरह सार रूप मे है। परन्तु यह भागवत आम वृक्ष के फल के समान परम मधुर एवं लोकोपकारी तथा मुक्तिदायक है। वही भागवत कथा को आप श्रवण करके उन भक्ति देवी के पुत्रों को स्वस्थ्य कर सकते हैं। वह भागवत पुराण की रचना ज्ञान, वैराग्य एवं भक्ति की स्थापना के लिए ही हुई है।
उन्होंने नारदजी को स्मरण कराया कि चतुःश्लोकी भागवत सुनाकर ही आपने व्यासजी की उद्विग्नता का शमन किया था। तब श्रीनारदजी ने सनकादि ऋषियों को आभार व्यक्त करते हुए निवेदन किया कि हे मुनीश्वरों ! बड़े भाग्य से आपके दर्शन हुए हैं। आपके दर्शन एवं उपेदश से मेरे अज्ञान, मोह एवं मद का नाश हो गया। आपलोगों ने एकसमय जिस भागवतरुपी अमृतकथा को शेषजी से श्रवण किया है, उस प्रेमामृत का प्रकाश मेरे लिए भी करें।
हे ऋषिगण ! मेरी इच्छा भी उसी ज्ञानयज्ञ के आयोजन की है, जिससे लोक में भक्ति, ज्ञान एवं वैराग्य की स्थापना हो, उनका प्रचार-प्रसार बढ़े। अब आपलोग कृपया बतायें कि आयोजन का स्थान कौन सा हो और यह कितने दिनों तक कथा चलेगी ?
नारद जी की सहज उत्कंठा देखकर शनकादि ऋषियो ने हरिद्वार में गंगा नदी के तट पर आनन्दवन नामक स्थान में एक सप्ताह के लिए भागवत कथा आयोजित करने की बात कही। इसके बाद सनकादि मुनियों के साथ नारदजी हरिद्वार के आनन्द वन में गंगातट पर पहुंचे। इनके पहुँचते ही तीनों लोकों में चर्चा फैल गयी।
भगवान् के भक्त- भृगु, वसिष्ठ, गौतम, च्यवन, विश्वामित्र, व्यास इत्यादि सभी ऋषि महर्षि अपनी सन्ततियों के साथ वहाँ आ गये। आनन्दवन में भागवत कथा पारायण का आयोजन किया गया, मंडप बनाया गया।
चारों दिशाओं में भागवत कथा समारोह आयोजन की चर्चा होने लगी। भक्त श्रोतागण चारों तरफ से जय-जयकार करते, शंख ध्वनि करते, नगाड़ा बजाते हुए समारोह स्थल पर एकत्रित होने लगे इस प्रकार सनकादि ऋषियों में सबसे बड़े सनत्कुमार ने भागवत कथा की महिमा बतलाते हुए प्रवचन शुरू किया और कहा कि :-

bhagwat katha hindi story भागवत कथा

सदा सेव्या सदा सेव्या श्रीमद्भागवतीकथा।  यस्याः श्रवणमात्रेण हरिश्चित्तं समाश्रयेत् ।।
श्रीमद् भा० मा० ३/२५ “
यत्फलं नास्ति तपसा न योगेन समाधिना। तत्फलं लभते सम्यक् कलौ केशवकीर्तनात् ।।
हे नारदजी ! यह भागवत कथा को हमेशा और बार-बार सुनना चाहिए क्योंकि भागवत कथा के श्रवण मात्र से भगवान् हृदय में विराजमान हो जाते हैं, अज्ञान एवं अमंगल का नाश हो जाता है। विविध वेदों, उपनिषदों के पढ़ने से, जो लाभ होता है, उससे अधिक लाभ भागवत कथा के श्रवण मात्र से होता है कल्याणकामी मनुष्य यदि प्रतिदिन कम-से-कम एक या आधा श्लोक भी पढ़े तो उसका कल्याण होगा।
जो व्यक्ति प्रतिदिन सरल भाषा में भागवत कथा के अर्थ को आमलोगों को सुनाता है, उसके करोड़ों जन्मों के पापों का नाश हो जाता है। मनुष्य का जीवन धारण कर जिसने एक बार भी भागवत कथा का श्रवण नहीं किया, उसका मनुष्य योनि में जन्म लेना निरर्थक है। उसका जीवन तो चाण्डाल एवं गदहे के समान व्यर्थ हैं- ऐसा समझा जाय। भागवत के श्रवण का सुअवसर करोड़ों जन्मों के भाग्यफल के उदय होने पर होता है।
अतः इस श्री भागवत को बार-बार तथा हमेशा एवम् हर समय श्रवण करना चाहिए। लेकिन जीवन की अनिश्चितता एवं सिमित आयु को देखते हुए भागवत कथा को सप्ताह में श्रवण का विधान किया गया है।
कलियुग में यज्ञ, दान तप, ध्यान, स्वाध्याय, यम, नियम- ये सभी साधन कठिन है। लेकिन भागवत कथा सर्वसुलभ है। इन सभी साधनाओं का फल केवल भागवत कथा सप्ताह श्रवण से संभव है। यह भक्ति, ज्ञान, वैराग्य को जीवन्त कर उनका प्रचार-प्रसार करनेवाला है।
सप्ताह के सामने तप, ध्यान, योग सभी की गर्जना समाप्त हो जाती है। अर्थात् श्री भगवान् की कथा रूपी कीर्तन या नामरूपी कीर्तन से कलियुग में भगवान् शीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं।
इस प्रकार भगवान् के प्रसन्न करने के अनेक साधन हैं। जैसे-
उक्तं भागवतं नित्यं कृतं च हरिचिन्तनम्। 
तुलसी पोषणं चैव घेनूना सेवनं समम् ।। श्रीमद् भा० मा० ३/३६ 
अर्थात इन साधनों में मुख्यतः भगवान् के नाम का जप, भागवत कथा श्रवण, गाय की सेवा, तुलसी रोपने एवं सींचने से वे प्रभु अति प्रसन्न होते हैं।

bhagwat katha hindi story भागवत कथा

वे भगवान् श्रीकृष्ण जब इस लीला विभूति के लीला शरीर को छोड़कर जाने लगे तो उद्धवजी ने पूछा- हे भगवन् ! आप जा रहे हैं और इधर कलियुग आनेवाला है। चारों तरफ दुष्टों, अत्याचारियों की बाढ़ होगी। सत्पुरुष नष्ट या विचलित हो जायेंगे। हे प्रभो कोई उपाय बातयें। प्रत्युत्तर में भगवान् ने अपना दिव्य तेज भागवत में निहित कर दिया और स्वयं उसी में प्रविष्ट हो गय। अतः यह भागवत-

“तेनेयं वांगमयी मूर्तिः प्रत्यक्षा वर्तते हरेः । 
सेवनाच्छ्रवणात्पाठाद् दर्शनात्पापनाशिनी” श्रीमद् भा० मा० ०३/६२ 
यानि यह भागवत स्वयं भगवान का स्वरूप है। यह भागवत साक्षात् भगवान् की मूर्ति ही है। अतः इस भागवत के सेवन, दर्शन, श्रवण, पठन से सभी प्रकार के पापों का नाश होता है।
आगे श्री सूतजी ने कहा कि हे शौनकजी ! जब सनकादि ऋषिगण भागवत कथा के महत्त्व का वर्णन कर रहे थे, उसी समय तरुणी भक्ति देवी-
भक्तिः सुतौ तौ तरुणी गृहीत्वा प्रेमैकरूपा सहसाऽविरासीत् । 
श्रीकृष्ण गोविन्द हरे मुरारे नाथेति नामानि मुहुर्वदन्ती।। श्रीमद् भा० मा० ३/६७ 
वह तरुणी भक्ति देवी अपने दोनों तरुण पुत्रों – ज्ञान और वैराग्य को लेकर उस समारोह स्थल पर भगवत् नाम कीर्तन करती प्रकट हो गई यानी भागवतजी की महिमा से स्वस्थ होकर वह वृन्दावन-मथुरा से हरिद्वार के पावन कथा स्थल पर पहुँच गयी।
वह दिव्य रूप में भक्ति माता, उनके तरुण दिव्य दोनों पुत्रों-ज्ञान एवं वैराग्य को देखकर सभी लोग आश्चर्यचकित हो गये। सभी ने प्रश्न किया कि भक्ति देवी अपने ज्ञान-वैराग्य पुत्रों के साथ कैसे पहुँच गई ? सनत्कुमार ने कहा कि भक्ति देवी भागवत कथा के प्रेमरस से आविर्भूत हुई हैं।
भक्ति देवी ने सनकादि ऋषिकुमारों से कहा ‘आपने भागवत कथा रस से हमें परिपुष्ट कर दिया अब कृपया बतायें कि मैं कहाँ निवास करूँ ?’ सनकादि ऋषियों ने उन्हें सदा भक्तों के हृदय में निवास करने को कहा अतः तभी से भक्ति बराबर भक्तों के हृदय में निवास करती है।
इसीलिए भक्तों के पुकारने पर भगवान चले आते हैं। वह मनुष्य धन्य है जिसके हृदय में भगवान् निवास करते हैं। भक्ति देवी के आ जाने से वहाँ का वातावरण उत्साह से भर गया। सभी लोग हर्षित हो उठे और वे जोर जोर से शंखध्वनि तथा नगाड़े बजाने लगे, अबीर गुलाल उड़ाने लगे।
जब भक्ति देवी आ गई तो भगवान् नारायण भी सभा मण्डप में सपरिवार दिव्य रूप में आ पहुँचे। इससे सभामण्डप में हर्ष एवं उल्लास सहित जय-जयकार करते हुए भक्त श्रोतागण अपने अनेक वाद्योंसहित शंख ध्वनि करने और लगे नगाड़े बजाने लगे।
all part list-

2  3  4  5  6  7  8  9  10  11  12  13  14  15  16  17  18  19  20  21  22  23  24  25  26  27  28  29  30  31  32  33  34  35  36  37  38  39  40

भागवत कथा ऑनलाइन प्रशिक्षण केंद्र 

भागवत कथा सीखने के लिए अभी आवेदन करें-

bhagwat katha hindi story भागवत कथा

यह जानकारी अच्छी लगे तो अपने मित्रों के साथ भी साझा करें |
spot_img

Related Posts

Shiv Puran Katha Notes: Essential Hindu Scripture

Shiv Puran Katha Notes: Essential Hindu Scripture शिव पुराण हिंदू...

रामायण सार- मंगलाचरण ramayan sar hindi

रामायण सार- मंगलाचरण ramayan sar hindi बंदना * नमामि भक्त वत्सलं...

भागवत कहां सिखाई जाती है bhagwat katha classes

भागवत कहां सिखाई जाती है bhagwat katha classes भागवत श्री...

भागवत सप्ताहिक कथा bhagwat saptahik katha PDF

भागवत सप्ताहिक कथा bhagwat saptahik katha PDF     भागवत सप्ताहिक कथा:...

श्री राम कथानक Ram katha Notes

श्री राम कथानक Ram katha Notes   श्री राम कथा, जिसे...

bhagwat bhajan lyrics pdf भागवत भजन माला

bhagwat bhajan lyrics pdf भागवत भजन माला   भागवत भजन माला...
- Advertisement -spot_img