bhagwat katha in hindi भागवत कथा इन हिंदी
इसप्रकार भगवत् भक्ति के कारण प्रेत धुंधुकारी दिव्य रूप धारण कर भगवान् के दिव्य लोक में चला गया। हम सामान्य मनुष्य भी भागवत कथा को ध्यान से सुनें, तो हमें भी भगवान् के धाम में स्थान मिल जायेगा। विधिवत् सप्ताह श्रवण वहाँ केवल धुंधुकारी ने ही किया था, इसलिए भगवान् के पार्षद् केवल धुंधुकारी को ही विमान पर चढ़ाकर ले गये।
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यह सारा प्रकरण सुनाकर सनत्कुमार ने नारदजी से कहा कि हे नारदजी ! सप्ताह कथा के श्रवण के फल अनन्त हैं, उनका वर्णन संभव नहीं। जिन्होंने गोकर्ण द्वारा कही गयी सप्ताह कथा का श्रवण किया, उसे पुनः मातृ गर्भ की पीड़ा सहने का योग नहीं मिला।
वह मुनीश्वर शाण्डिल्य चित्रकुट पर इस पुण्य इतिहास को पढ़ते हुए परमानन्द में मग्न रहते हैं। पार्वण श्राद्ध में इसके पाठ से पितरों को अनन्त तृप्ति होती है। प्रतिदिन इसका श्रद्धापूर्वक पाठ करने से मनुष्य पुनः जन्म नहीं लेता।
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इस सप्ताह यज्ञ में निमंत्रण पत्र भेजकर देशभर में जहाँ कहीं भी अपने कुटुम्ब के लोग हों, उन्हें इस समारोह में बुलावें। ज्ञानी, महात्मा, सन्तजनों को भी विशेष रूप से निमंत्रित कर बुलावें। विवाह के समारोह में जैसी व्यवस्था होती है, उसी तरह व्यवस्था करें। तीर्थ में भागवत कथा को श्रवण करना चाहिए या वन-उपवन में कथा श्रवण समारोह आयोजित करना चाहिए। यह संभव नहीं हो तो घर में भागवत कथा श्रवण की व्यवस्था करें।
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“रहस्यम् गोप्यं तच्छृणु येन कलि संसारं तरिष्यसि।भगवत आदिपुरुषस्य नारायणस्य नामोच्चारणमात्रेण निर्धूतकलिर्भवति।नातः परतरोपायः सर्व वेदेषु दृश्यते।”
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नारदजी ने इसी तरह उपर्युक्त नियमों के अनुसार भागवत कथा का आयोजन किया था। ज्ञान और वैराग्य, वृन्दावन में भागवतकथा समारोह के आयोजन होते ही तरुण हो गये। भक्ति देवी प्रसन्नता से अपने दोनों पुत्रों ज्ञान और वैराग्य की तरुणाई देखकर नाचने लगी।
इसकी पुष्टी अन्यत्र ग्रन्थों की कथा से होती है कि एक बार नारदजी एवं श्री शुकदेवजी में देवर्षि एवं संत होने की प्रतियोगिता हो गयी। आहार शुद्धि से स्मृति होती है। नारदजी एवं शुकदेवजी दोनों भ्रमण में थे। दोनों में साधुता की प्रतियोगिता थी। नारदजी तो शाप दे देते हैं परन्तु शुकदेवजी ने कभी किसी को शाप नहीं दिया।
यह भागवतकथा एक ऐसा अपूर्व फल है, जिसमें कोई विकृति नहीं है। यह एक दिव्य अमृत है। अतः इसके पान करने से जन्म मृत्यु धन्य हो जाते हैं। श्री शुकदेवजी द्वारा इस कथा को जूठा किया हुआ है यानी श्री शुकदेवजी ने भागवत पुराण के रस को ग्रहण किया है।
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शौनकजी! मनुष्य का शरीर पाकर जिसने भागवत कथा नहीं सुनी, भजन नहीं किया, सुकृत नहीं कियावह पृथ्वी के लिए भार है। भागवतकार कहते हैं कि हर तरह के दुःखी भी यदि प्रभु श्रीमन्ननारायण की शरणागति करे, तो उसे परमानन्द की प्राप्ति होती है।
।। श्रीमद्भागवत महापुराण माहात्म्य कथा समाप्त ।।