bhagwat pratham skandh katha भागवत कथा
प्रथम् स्कन्ध प्रारम्भ
आगे सुतजी ने कहा कि हे ऋषियों ! अबतक अपलोग भागवत कथा का माहात्म्य श्रवण कर रहे थे। आज से भागवत की कथा को श्रवण करेंगे। इसमें भागवत यानी भक्तों की कथा कही गयी है। कथा कल्पवृक्ष के समान मनुष्य के सभी मनोरथों को पूर्ण करनेवाली है।
जन्माद्यस्य यतोऽन्वयदितरतश्चार्थेष्वभिज्ञः स्वराट् ।तेने ब्रह्म हृदा या आदिकवये मुह्यन्ति यत्सूरयः ।।तेजोवारिमृदां यथा विनिमयोयत्र विसर्गोऽमृष।धाम्ना स्वेन सदा निरस्तकुहकं सत्यं परं धीमहि।।श्रीमद् भा० १/१/१
bhagwat pratham skandh katha भागवत कथा
इस प्रकार श्रीवेदव्यासजी ने श्रीमद्भागवत की रचना करते समय भागवत् के प्रधान देवता परमेश्वर का ध्यान करते हुए सत्यस्वरुप परमात्मा के वंदना करके मंगलाचरण के प्रथम श्लोकों को पूर्ण किया। आगे मंगलाचरण के दूसरे श्लोक में कहा गया है कि वह सत्य स्वरूप परमात्मा को धर्म के द्वारा ही प्राप्त किये जा सकते हैं।
धर्मः प्रेज्झितकैतवोऽत्र परमो, निर्मत्सराणां सतां,वेद्यं वास्तवमत्र वस्तु शिवदं तापत्रयोन्मूलनम् ।श्रीमद्भागवते महामुनिकृते किं वा परैरीश्वरः,सद्यो हृद्यवरुध्यतेऽत्र कृतिभिः शुश्रूषूभिस्तक्षणात्।।श्रीमद् भा० ०१/१/२
नमो धर्माय महते नमः कृष्णाय वेधसे ।ब्राह्मणेभ्यो नमस्कृत्य धर्मान् वक्ष्ये सनातनम्।।श्रीमद् भा० १२/१२/१
धृतिः क्षमा दमो स्तेयं शौचमिन्द्रयनिग्रहः ।धी विद्या सत्यमक्रोधो दशकम् धर्मलक्षणम्।।या “घियतेधः पतनपुरुषोऽनेनेति धर्मः या धारणात् धर्मः”।।
आहारानेद्राभय मैथुनं च सामान्यमेतत् पशुभिर्नराणाम् ।बहुत अन्तर तेषामधिको विशेषो धर्मेण हीनाः पशुभिः समानाः।।
धर्मो हि अष्टादशपुराणेषु व्यासस्य वचनम् द्वयम्।परोपकारः पुण्याय पापाय परपीडनम् ।।
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इस तरह मंगलाचरण के दूसरे श्लोक में धर्म को कह कर व्यासजी ने धर्ममय परमात्मा का अनुसंधान एवं वर्णन किया है।
आगे फिर श्रीव्यासजी ने मंगलाचरण के तीसरे श्लोक म भागवत को संसार का सर्वश्रेष्ठ ग्रन्थ बताकर श्रद्धा एवं विश्वास के साथ भागवतरूपी फल के रस को पान करने को बताया है।
निगमकल्पतरोर्गलितं फलम् शुकमुखादमृतद्रवसंयुतम् ।पिबत भागवतं रसमालयम् मुहुरहो रसिका भुवि भावुकाः।।श्रीमद्भा० १/१/३
इस प्रकार इस ग्रन्थ की रचना करते समय ग्रन्थ एवं जगत के मंगल हेतु प्रथम श्लोक के मंगलाचरण में मंगलकामना हेतु सत्यस्वरूप प्रभु को प्रणाम, ध्यान किया गया है एवं दूसरे श्लोक में ग्रन्थ के विषय (धर्म) का निर्देश किया गया है और तीसरे श्लोक में इस ग्रन्थ की महिमा एवं मधुरता को बतलाकर मुनिवर श्री व्यासजी ने आगे की कथा लिखना प्रारम्भ करते हैं। इसप्रकार आगे कि कथा को लिखते हुये महर्षि वेदव्यास ने कहा है कि :
bhagwat pratham skandh katha भागवत कथा
एक बार गोमती नदी के पावन तट पर पावन तीर्थ क्षेत्र नैमिषारण्य में अठासी हजार संत, ऋषियों सहित शौनकादि ऋषिगण उपस्थित हुए तथा श्रीभगवान् की केवल प्राप्ति के उद्देश्य से हजार वर्षों में पूर्ण होनेवाले यज्ञादि का अनुष्ठान किया। नित्य यज्ञादि करने के बाद समय मिलने पर कुछ न कुछ भगवत् चर्चा भी करते थे।